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क्या कहती है कलम

क्या कहती है कलम

कलम वही कहेगी जो हमारे भीतर में भाव होंगे । मेरे साथ प्रायः यह स्थिति हो जाती है की लेखन और मेरे भाव एक साथ हो जाते है । कहते है कि लिखेगा वही जो उसके भीतर भाव होंगे ।हालाँकि भावों को शब्दों में लिखना पूर्ण रूप से सम्भव भी नहीं होता है फिर भी कलम हमारी वही लिखती है जो हमारे भीतर में भाव होते हैं ।आज के समय में लिखी हुई बात का बहुत महत्व होता है अपेक्षा से मौखिक बात का । जब भी बोलो जबान की कलम इस्तेमाल करने से पहले दिल की दवात में डुबो लो। कलम अब भी है और पहले भी रही है ।बड़ी बड़ी हस्तियों के
हस्ताक्षर की साक्षी भी तो कलम है ।नामी-गिरामी साहित्यिक लेखक व रचनाकार इसी के नाम से जाने जाते हैं। इसीलिए तो वे क़लमकार कहलाते हैं। कलम के लिये कहते है की सही हाथ लगे तो यह मिसाल बनती है । गलत हाथ में लगे तो जंजाल बनती है । तलवार से भी तेज है धार इसकी । जो लग जाये तो ज़िंदा हलाल करती है । साथ दे तो मालामाल करती है । मुँह मोड़ ले तो कंगाल करती है । बड़े – बड़े सिर झुकाते है इसके आगे जो ठान ले तो जीना मुहाल कर देती है । अतः जिसकी ताकत को कोई नकार ना सके वो कलम हैं । हर कोई अन्याय के खिलाफ जो हुंकार भरे वो कलम हैं । जो सिर्फ सच्चाई को स्वीकार करे वो कलम हैं। क़लम का अपना वर्चस्व है कही पर कभी का कूच हुआ पत्र लेखन का जमाना आज भी सही सलामत है । दुनियाभर में कभी कही जहाँ मतभेद होता है वहाँ यह देखा जाता है की लिखित में क्या है । कलम काग़ज़ पर जो मन की आवाज़ कहती है वही लिखती है।इसी आधार पर ही सब जगह मुखजबानी की बजाय लिखित की कीमत पुख्ता मानी जाती है।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )

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