45 करोड़ छात्रव्रत्ति घोटाले में 4 संस्थानों के चेयरमेन प्रबन्धक दोषी, होगी गिरफ्तारी
उत्तर प्रदेश और केन्द्र सरकार की योजना के तहत कमजोर श्रेणी के छात्रों को दी जाने वाली छात्रवृत्ति के घोटाले में चार संस्थानों के मैनेजर और प्रिंसिपल एसआईटी की जांच में दोषी पाए गए हैं।
एक दर्जन से अधिक छात्रों के बयान में इनके खिलाफ कई और साक्ष्यों का खुलासा हुआ है। इसी आधार पर दावा किया जा रहा है कि जल्दी ही इस मामले में एसआईटी आरोपित मैनेजरों और उनकी साठगांठ में शामिल प्रिंसिपल व कर्मचारियों की गिरफ्तारी करेगी। जांच में यह भी खुलासा हुआ है कि इस घोटाले के तार लखनऊ से दिल्ली तक जुड़े हुए हैं। अब तक 45 करोड़ रुपए के घोटाले की पुष्टि हो चुकी है।
इस घोटाले के सम्बन्ध में 30 मार्च को हजरतगंज कोतवाली में एसएसआई दया शंकर द्विवेदी ने एफआईआर दर्ज कराई थी। इसमें 10 संस्थानों के प्रबन्धक कर्मचारी समेत 18 लोग नामजद कराए गए थे। ये सब शुरुआती जांच में केन्द्र और प्रदेश सरकार की योजना के तहत पोस्ट मैट्रीकुलेशन छात्रवृत्ति वितरण में घोटाले के आरोपित मिले थे। इस प्रकरण की जांच ईडी ने भी की थी। इस मामले के तूल पकड़ने पर एसआईटी बनाकर जांच के आदेश दिए गए थे। यह एसआईटी संयुक्त पुलिस आयुक्त कानून व्यवस्था उपेन्द्र कुमार अग्रवाल के नेतृत्व में तीन सदस्यीय टीम के साथ जांच कर रही है।
चार संस्थानों के मैनेजर व कर्मचारी दोषी मिले
यह पहले ही सामने आ चुका था कि इन संस्थानों के मैनेजर ने अपने कर्मचारियों व काल्पनिक नामों से बैंक खाते खुलवाकर घोटाला किया। इन खातों के एटीएम भी अपने पास ही रख लिए थे। कई छात्रों का बैंक खाता एक ही ई-मेल आईडी से खोला गया। पता चला कि कई छात्रों का खाता एक ही ई-मेल आईडी से खोला गया। एसआईटी की जांच तेजी से आगे बढ़ी तो पता चला कि दिव्यांग छात्रों के नाम पर सबसे अधिक घोटाला किया गया है। इसके लिये संस्थानों के मैनेजर ही मुख्य रूप से दोषी है जिन्हें सब कुछ पता था। सीधे तौर पर लाभ भी उन्हें ही मिल रहा था। एफआईआर से पहले जांच में करीब 3000 फर्जी खाते मिले थे। एसआईटी ने सबसे पहले चार संस्थानों के प्रबन्धक के बयान लिए और घोटाले से जुड़े कई सवाल किए। फिर उनके संस्थान से जुड़े खातों का डिटेल खंगाला। इससे ही साफ हुआ कि छात्रवृत्ति के लिये संचालिक खाते इन संस्थानों के मैनेजर के अधिकार क्षेत्र में ही थे। इन मैनेजरों के आदेश पर ही बैंक खातों से रुपये निकाले जाते और फिर उन्हें अपने से सम्बन्धित लोगों के खातों में जमा किए गए। कई लोगों को नगद भी दिए गए। इन चारों संस्थानों के चेयरमैन व मैनेजर दोषी मिले हैं। साक्ष्य जुटा लिए गए हैं।
जांच के कुछ तथ्य
-वर्ष 2015-16 से 2022-23 तक इन संस्थानों ने काल्पनिक छात्रों के नाम से छात्रवृत्ति निकाली
-फर्जी हस्ताक्षर कई दस्तावेजों में किये गये
-लखनऊ से दिल्ली तक के अफसरों से रही साठगांठ
-प्रति छात्र डेढ़ लाख रुपये के करीब छात्रवृत्ति फर्जी खातों में जमा करायी गई
-छात्र नहीं चेयरमैन-मैनेजर के इशारे पर कर्मचारी करते रहे खातों का संचालन
-अब तक 45 करोड़ रुपये की छात्रवृत्ति के घोटाले की पुष्टि हो चुकी
ये हुए थे नामजद
प्रवीण कुमार चौहान, चेयरमैन-एसएस इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट मामपुर
इजहार हुसैन जाफरी उर्फ हनी वाइस प्रेसीडेंट, एजुकेशनल सोसाइटी एंड हाइजिया
सईद इशरत हुसैन जाफरी उर्फ लकी, सदस्य, ओरेगॉन एजुकेशनल सोसाइटी एंड हाइजिया ग्रुप
अली अब्बास जाफरी, मैनेजर-ओरेगन एजुकेशनल सोसाइटी
रवि प्रकाश गुप्ता, कर्मचारी-हाइजिया कॉलेज ऑफ फार्मेसी
संचालक-हाइजिया इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मेसी
संचालक-लखनऊ इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड एजुकेशन लखनऊ
शिवम गुप्ता, चेयरमैन-डॉ.ओम प्रकाश ग्रुप ऑफ इंस्टीटयूशन
डॉ. प्रभात गुप्ता-डॉ.ओम प्रकाश ग्रुप ऑफ इंस्टीटयूशन
श्रीराम गोपाल, सेक्रेटरी-डॉ भीमराव अंबेडकर फाउंडेशन फाउंडेशन एंड जीविका कॉलेज, हरदोई
श्रीमती पूनम वर्मा-प्रबन्धक, आरपीपी इंटर कालेज, हरदोई
विवेक पटेल, ज्ञानवती इंटर कॉलेज, हरदोई
विवेक कुमार, जगदीश प्रसाद वर्मा उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, हरदोई
सचिन दुबे, एरिया मैनेजर, फिनो पेमेंट बैंक
मो. साहिल अजीज, एजेन्ट-फिनो पेमेन्ट बैंक
अमित कुमार, एजेन्ट, फिनो पेमेन्ट बैंक
तनवरी अहमद, एजेन्ट फिनो पेमेन्ट बैंक
जितेन्द्र सिंह, एजेन्ट फिनो पेमेंट बैंक