उतार-चढ़ाव
उतार-चढ़ाव
सूरज तपता है सबके लिये , नदी बहती है सबके लिये ,दीपक
जलता है सबके लिये , साधु होता है सबके लिये । हमारा जीवन अनिश्चिताओ के भँवर में उतार – चढ़ाव के दौर से गुजरता रहता हैं ।कहते है कि रोज गरिष्ठ भोजन खाया नहीं जाता हैं ठीक इसी तरह जीवन में उतार और चढ़ाव नहीं आये तो हमको सही और ग़लत काकैसे भान होगा तथा साथ में कैसे मालूम होगा कि कोन अपना है कौन पराया हैं । हम देखते हैं साल भर में कई बार पेड़ के पत्ते गिरते हैंऔर नये आ जाते हैं। यह प्रकृति का अपना स्वभाव हैं ।इसी तरह मानव जीवन में भी स्वभाववश कई बार उतार-चढ़ाव आते ही रहते हैं ।यह सही से स्वीकार कर लेना ही समभाव हैं । प्रकृति ने हमारे अंतर्मन को इस उतार-चढ़ाव से जूझने की शक्ति दी है पर अधिकांशत : नहीं जानते हैं अंतर्मन की इस शक्ति को और सही से विपरीत परिस्थिति को झेल नहीं पाते हैं । ज़िंदगी एक इंद्र धनुष जैसी होती है।जैसेइंद्र धनुष में सात रंग होते हैं,वैसे ही ज़िंदगी में समय-समय पर रंग बदलते रहते हैं और उतार-चढ़ाव आते रहते हैं।कभी खुशहाल नुमाइसमें माहौल होता है,तो कभी अवसाद भरा,कभी अति लाभ होता है,तो कभी हानि,कभी इच्छाओं के अनुकूल होती है ज़िंदगी,तो कभीइच्छाओं के विपरीत,कभी नये सदस्य के आगमन से खुशहाल होती है ज़िंदगी,तो कभी अपनो के विक्षोह के कारण दुखी होती है ज़िंदगी।इसी का नाम है ज़िंदगी। हमारा जीवन संसार में रहते हुए सामुदायिक होता है ।यहां जिंदगी में शांति और समन्वय से सहिष्णुतापूर्वकअनेकान्तदृष्टि के सदुपयोग से राह को राजपथ बना सकते हैं।और उस राजपथ पर चलते हुए हम सबके प्रति मंगलभाव रखते हुए सम्यकआचार से मुक्तिश्री को भी पा सकते हैं।हमारे आत्म विश्वास से सब कुछ सम्भव है । हम राजपथ के राही है,राजपथ हम स्वयं अपनेकर्तृत्व से बना सकते हैं सम्यक पुरुषार्थ से।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)