आज में जीने का मतलब
जिन्दगी खिलते हुए गुलाब की तरह है मुस्कराते हुए जीओ। बंशी की मधुर तान की तरह मंद-मंद गुनगुनाते हुए जीओ ।अंधेरों के साये मे भी रात किसी तरह खामोशी मे गुजर जायेगी पर जीवन में जिन्दादिल जीना है तो दीपक की तरह टिमटिमाते हुए जीओ।
ज़िंदगी हो हमारी कैसी हम जैसा चाहे होगी वैसी ही ।ज़िंदगी हो हमारी ऐसी की सफलता का क़दम चुमें । हमारी सोच हमारे अपने ज्ञान पर निर्भर हो। अपेक्षा हमे हमेशा दुःख देती हैं इसलिए जैसा हम सोचेंगे वैसा पाएँगे । वास्तविकता को सही से हम स्वीकार-नकारात्मकता को रोकेगे तो हर परिस्थिति में आनंद से जी पायेंगे । जीवन में सकारात्मक विचार ऊर्जा से भरे होंगे ।बीते कल का अफ़सोस,वर्तमान की चिंता,आनेवाला कल कैसा ।इस बात का अफ़सोस नही तो कभी आत्मविश्वास नही डगमग़ायेग़ा।साथ में जीवन में समय की परिवर्तनशीलता को स्वीकारने से ज़िंदगी बहुत ख़ुशनुमा बनती है । हम ही हमारे दोषी है । यह धरती तो वज्रदिल बन सब कुछ सहती है एक माँ की तरह । सरिता उतार – चढ़ाव में भी अविरल बहती है एक माँ की तरह ।और हम नादान बच्चे अपनी नादानी के कारण दुःख के कगार तक पहुँच जाते है जहाँ सिर्फ़ और सिर्फ़ हताशा है निराशा है दोषारोपण हैं ।हम समझे ज़रा हमें जीवन में सही से कुछ संभलने का मौक़ा भी दिया हैं । जिससे भक्ति में रमे और बन सार्थक स्वर्ण कसौटी पर खरे उतरे । बीज-धूप- खाद-जल रूपी कार्य सिद्धि से सही दिशा में आगे बढ़े।वरना आख़िर होगा तेरा जाना कोई भी ना साथ तेरा निभाएगा । तेरे कर्मों का फल बंदे साथ तुम्हारे आएगा । हम सही से चिंतन कर ले इन बातों का तो जन्म सफल हो जाएगा ।किसी को दोष देने से बेहतर है हम ख़ुद सम्भले ।अपने जीवन की नींव हिलने से पहले ये गुनगुना ले मेरी भक्ति में कोई कमी तो नही फिर भी गाना ना आए तो में क्या करूँ । कैसे शब्दों की सीमा में बान्धू तुम्हें तेरा दिल ना रिझाए तो में क्या करूँ ।
प्रदीप छाजेड़
(बोरावड़ )