विषय आमंत्रित रचना – व्यवहार
विषय आमंत्रित रचना – व्यवहार
आदमी का व्यवहार ही उसके संस्कारों को पुष्ट करता हैं । अपना व्यवहार आसान नहीं होते जिंदगी में निभाना । इतने सारे व्यवहार कुछ पसंद के कुछ बिना पसंद के हर व्यवहार में हम मुस्कुराते हैं । कुछ हमारे मन की इच्छाएं -कुछ दबी ख्वाहिशें तो कुछ चाहतें करते जाना दरकिनार । हम चलते रहते बस चलते रहते बनाकर खुद को औरों के साथ में व्यवहार । नाम, सुर्खियां , वाहवाही बटोरने झेलते जाते अपने दिल पर व्यवहार । सही गलत कुछ पता नहीं बस मान लेते इसी को हम जिंदगी का सार । चलो हम थोड़ा खुद को परखे खुद को पहचाने खुद को बना ले हम अपने व्यवहार से इतना दमदार । ना मारे मन को -समझे जीवन को हर कसौटी के खरे हो कलाकार की तरह हमारा व्यवहार ।है जिंदगी बहुत खूबसूरत व्यवहार हम रंगमंच दोस्तों कहलाए हम उम्दा अदाकार कहलाए । फिर परदा गिरे या उठे परवाह नहीं बस याद रहे निभाया हर व्यवहार । याद रहे निभाया हर व्यवहार । अहंकार में तकरार है । अहंकार में बड़ा भार है । इसलिए इससे मुक्त रहने की हमें बहुत दरकार है ।यदि चहुँ और ऊपर जाना है व्यवहार में व्यर्थ के अहंकार व घमंड को छोड़ो । और विनम्रता के साथ में व्यवहार को मिठास से अपना निकट का नाता जोड़ो ।सबके साथ प्रियता का व्यवहार हमें सबके निकट लाता है । यही व्यवहार व्यक्ति को ऊपर पहुंचता है और यही सफलता का दाता है । शरीर में कोई सुन्दरता नहीं है|सुन्दर होते हैं व्यक्ति के कर्म । उसके विचार उसकी वाणी , उसका व्यवहार, उसके संस्कार और उसका चरित्र |जिसके जीवन में यल सब है वही इंसान दुनिया का सबसे सुंदर शख्स है। हर इन्सान की अपनी सोच व व्यवहार हैं । सबको अपनी मस्ती में जीनें का अधिकार है । जब सब खुशहाल हैं तब क्यों हो कटु शब्दों की बौछार । अहं भरी मस्ती जिम्मेदार हैं । अनर्गल को सदैव कहा-अनसुना करें ।पर शान्ति से सही बात को कहना चाहिये । समय समय पर गलत व्यवहार का सही से उपचार करना चाहिये । जीवन को सदा हरा-भरा रखना चाहिये । ईमानदारी, ज्ञान तथा चारित्र ना बाजार में मिलता है न ही यह कभी उपहार में मिलता है ।यह गुणत्मकता व्यक्ति का खुद का अपना ही गुण हैं ।जो खुद के व्यवहार में मिलता है । यदि तुम अपने व्यवहार को सच्चा व अच्छा बनाओगे तभी अपने जीने के अर्थ को समझकर सही जीवन व्यवहार में जी पाओगे । यह सही की हमारा व्यवहार हमारे मनोभाव दर्शाता है और मन के भाव संस्कार पर निर्भर है। संस्कार ग्रहण करना अपनी क्षमता पर आधारित है क्योंकि संस्कार दिए नही जाते लिए जाते है। एक माँ अपनी हर संतान को समान रूप से परवरिश देती है यह उनके बुद्धि कौशल एवं निर्णय पर आधार उनकी दिशा तय करती है । भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गलत रोकने के लिए उकसा कर लाखों आदमियों को महाभारत के युद्ध में मरवा दिया-ख़ून की नदियाँ,लाशें ढा दी पर अर्जुन के कर्म बँधे नही । क्योंकि अर्जुन के मनोभाव पवित्र थे । पाप का विनाश और धर्म की स्थापना उद्देश्य था। दुनिया का भिखारी भी यदि दिल का धनी तो वह बादशाह गिना जाएगा उसके कर्म किस नियत से किए जा रहे है वह दर्ज होगा। सद्दभाव से फाँसी लगाने वाला जल्लाद भी पुण्यात्मा गिना जा सकता है। सीप की क़ीमत कुछ नही मोल तो मोती का है। असली तत्व तो संस्कार-संगत और भावना का है जिससे प्रेरित होकर काम किया गया है । एक व्यक्ति उदास मन से सेवा करता है दूसरा अत्यंत दया-सहानुभूति-उदारता-प्रेमपूर्वक करता है। बाहर से देखो तो दोनो काम समान पर पुण्य का परिणाम भावना की उदासीनता एवं प्रेमपूर्वक व्यवहार की तत्परता के किए गए मनोभाव कर है। हमारा जीवन हमारा व्यवहार हैं ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)