मशीन से भावनात्मक जुड़ाव के खतरे
मशीन से भावनात्मक जुड़ाव के खतरे
हाल में अमेरिका के फ्लोरिडा में एक किशोर ने खुदकुशी कर ली। कहा गया कि वह कृत्रिम मेधा (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अर्थात एआइ) के ‘मोह’ में डूबा था। इस घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। इस बच्चे की मां का कहना है कि एआइ ने उनके बेटे को आत्महत्या के लिए उकसाया। उन्होंने एआइ कंपनी के खिलाफ आरलैंडो की संघीय अदालत में मुकदमा दायर किया है। इसमें मां ने दावा किया है कि एआइ ने उनके बेटे को ‘यौन केंद्रित और यथार्थवादी बातचीत’ का अनुभव कराया, जिसके परिणामस्वरूप उसे चैटबाट से गहरा लगाव हो गया।
इस घटना से मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी (एमआइटी) के एक मनोवैज्ञानिक अनुसंधानकर्ता शेरी तुर्कले की पांच महीने पहले | दी गई चेतावनी याद आई। । उन्होंने कहा था कि इंसानों को एआइ के साथ लगाव से बचना चाहिए। | तुर्कले ने इंसान और ‘एआइ चैटबाट’ के बीच भावनात्मक संबंध पर अपने शोध में में कहा था कि एआइ सिर्फ दिखावा करता है और वह आपकी परवाह नहीं करता। तुर्कले ने यह चेतावनी कई कारणों से दी थी, जो एआइ के साथ गहरे भावनात्मक संबंध स्थापित करने से उत्पन्न हो सकती है। हा है। अब चौदह वर्ष के एक लड़के के आत्महत्या कर लेने की घटना काफी कुछ पर मजबूर ‘करती है।
एआइ को लेकर कई तरह की चर्चाएं हैं। जहां एआई के लाभ 4 गिनाए जा रहे हैं, वहीं अंदेशा जताया जा रहा जताया जा रहा है कि यह लोगों को बेरोजगार कर देगा। इसी के -साथ यह आशंका भी उठ रही । इसी के साथ- भी उठ रही है कि एआई लोगों को भ्रम जाल में फंसा रहा है। इससे बचने के उपाय किए जाने चाहिए। यहां खुदकुशी करने वाले बच्चे की मा की मां के दावे पर गौर किया जाना चाहिए, जिसमें उन्होंने कहा है कि कंपनी ने अपने चैटबाट को एक वास्तविक व्यक्ति, एक लाइसेंस प्राप्त मनोचिकित्सक और एक वयस्क प्रेमी या प्रेमिका के रूप में डिजाइन किया। बच्चे ने ने चैटबाट के साथ एक मजबूत भावनात्मक संबंध बना लिए। मुकदमे में मां ने दावा किया है कि उसका बेटा चैटबाट से ‘प्यार’ करता था और उसके साथ यौन क्रिया-कलाप संबंधी संवाद करता था। बच्चे ने कई बार चैटबाट को ने अपने आत्मघाती विचारों से से भी ‘अवगत कराया |
इस घटना ने उन आशंकाओं को बल प्रदान किया है, जो एआइ के बारे में व्यक्त की जा रही हैं। संजीदा लोग इस घटना से चिंतित हैं और उनमें इस पर व्यापक विमर्श चल रहा है। यह संवेदनशील मुद्दा है। कई बार अकेलेपन या भावनात्मक जरूरतों के कारण लोग एआइ को एक साथी की तरह देखना शुरू कर देते हैं। इसका एक कारण यह भी है कि ‘एआइ चैटबाट’ स्वाभाविक और सहायक बातचीत करने के लिए डिजाइन किया गया गया है, जिससे लोग उनके साथ सहज महसूस कर सकते हैं। हालांकि, यह एकतरफा और गैर-मानवीय संबंध होता है, क्योंकि एआई भावनाओं को महसूस नहीं कर सकता।
विश्व में इस विषय पर शोध हो रहा है, नैतिक बहस भी चल रही है कि इस तरह संबंध लोगों की मानसिक स्थिति पर क्या प्रभाव डाल सकते हैं। मगर सवाल उठता है कि इस स्थिति के लिए लोग दोषी हैं या एआइ तकनीक ? यकीनन, एआइ तकनीक क्रांतिकारी है। इसकी बदौलत बहुत कुछ सरल होने लगा है। घंटों के काम चुटकी बजाते होने लगे हैं, लेकिन क्या एआइ के साथ भावनात्मक जुड़ाव और उसे वास्तविक संबंध समझने वाले लोगों को जागरूक करना जरूरी नहीं है? कई लोगों का अपनी भावनात्मक जरूरतों के कारण तकनीक के साथ असामान्य रूप से जुड़ जाना संभव है। अगर उनका मानसिक स्वास्थ्य कमजोर हो, तो एआइ की वास्तविक साथी समझने की प्रवृत्ति बढ़ सकती है। जानकारों का कहना है कि कुछ लोग एआइ को ऐसे तरीकों से इस्तेमाल करते हैं, जिसके लिए वह डिजाइन नहीं किया गया है। यह गलतफहमी या अत्यधिक निर्भरता कई जटिलताओं को को जन्म दे सकती है। वर्तमान में लोग व्यस्त हो गए हैं और अलग-थलग पड़े हुए हैं। सोशल मीडिया के कारण लोग पहले ही स्वयं को वास्तविक रिश्तों की स्वयं की रिश्तों की तुलना में । में आभासी दुनिया में अधिक आरामदायक महसूस कर रहे हैं। ऐसे में इंसान सा व्यवहार करने वाला एआइ लोगों को और अलग-थलग कर देगा। लिहाजा, इस खतरे से आंखें मूंद लेने को समझदारी नहीं कहा जा सकता है।
वर्तमान में अकेलापन बढ़ने से लोगों का मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। विश्व में एक बड़ी आबादी अकेलेपन का शिकार हो चुकी है। इसकी वजह से बहुत से स्वास्थ्य संबंधी जोखिम सामने आए हैं, जिनको ध्यान में रखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) भी अकेलेपन को एक गंभीर वैश्विक स्वास्थ्य खतरे के रूप में वर्गीकृत कर चुका है। वर्ष 2022 में जारी एक अन्य अध्ययन रपट के अनुसार भारतीय युवाओं में अकेलेपन की बढ़ती समस्या चिंताजनक है। पैंतालीस वर्ष की उम्र के करीब 20.5 फीसद वयस्क अकेलेपन के शिकार हैं, जिससे उनमें विभिन्न मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ रही हैं। अकेलेपन के शिकार लोग अपनी व्यथा सुनाने के लिए एआइ की ओर बढ़ रहे हैं क्योंकि एआइ से उन्हें किसी इंसान से बात करने जैसा ही अहसास होता • है। यही कारण दुनिया से से जुड़ाव बढ़ रहा है, लेकिन वास्तविक दुनिया से वे दूर होते जा रहे हैं।
कि उनका आभ मानसिक बीमारियां पहले ही विश्व भर ही विश्व भर में बड़ी समस्या बनी हुई हैं। एआइ के कारण भविष्य में लोगों का मानसिक स्वास्थ्य और अधिक प्रभावित होने का अंदेशा है। का अंदेशा है। मगर सवाल है कि इस खतरे से निपटा कैसे जाए? अब जरूरी है कि विशेष रूप से अभियान चला कर एआइ से जुड़े खतरों के बारे में लोगों को आगाह किया जाए। जब तक सचेत नहीं किया जाएगा, लोग एआइ का समझदारी से उपयोग करना जरूरी नहीं समझेंगे। इसके साथ-साथ एआइ निर्माताओं के लिए तकनीक के उपयोग की सीमाएं स्पष्ट करना भी अनिवार्य बनाया जाना चाहिए। निर्माताओं के लिए यह जरूरी हो कि वे एआइ को इस तरह डिजाइन करें, जिससे उससे जुड़ने वाले लोग अस्वस्थ स्थिति में पहुंचने से बच सकें। लोग भावनात्मक रूप भावनात्मक समस्याओं का हल तकनीक में नहीं, बल्कि इंसानी रिश्तों और मदद में है, लोगों को को यह बात समझानी होगी। सरकारों को ऐसे संवदेनशील मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए और एआइ के उपयोग के लिए नीति बना कर दिशा-निर्देश तैयार करना चाहिए। इसके लिए अभी समय है, क्योंकि फिलहाल, एक बड़े वर्ग की एआइ तक अब पहुंच नहीं बन पाई है। मगर अब हर हाथ में स्मार्ट फोन इसलिए वह दिन दूर र नहीं, जब प्रत्येक व्यक्ति एआइ का इस्तेमाल करने लगेगा। जब तक ऐसा हो, उससे पहले लोगों को जिम्मेदारी से तकनीक का इस्तेमाल करना सिखाना ही होगा। लोगों को बताना होगा कि एआइ एक मशीन है और इंसानों को उससे वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा वे अब तक मशीनों के साथ करते आ रहे हैं।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब