कम समय में बोर्ड परीक्षा के लिए प्रभावी ढंग से अध्ययन करने के टिप्स
यदि आपको आगामी परीक्षा के लिए अध्ययन करना है, लेकिन आपके पास तैयारी के लिए कम समय है तो परीक्षा के लिए अच्छी तरह से अध्ययन करने के लिए इन युक्तियों और युक्तियों का पालन करें। यहां जानिए कम समय में परीक्षा की तैयारी के लिए कुछ जरूरी टिप्स। अंतिम परीक्षाओं के लिए डेट शीट की घोषणा की जा रही है, छात्र परीक्षा में अच्छा स्कोर करने के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं। हालाँकि, अधिकांश छात्र इस बात को लेकर असमंजस में हैं कि परीक्षा की तैयारी कैसे करें क्योंकि उन्हें एक वर्ष का पूरा पाठ्यक्रम कुछ ही हफ्तों में पूरा करना होता है। चिंता मत करो! यदि आपको आगामी परीक्षा के लिए अध्ययन करना है, लेकिन आपके पास तैयारी के लिए कम समय है तो परीक्षा के लिए अच्छी तरह से अध्ययन करने के लिए इन युक्तियों और युक्तियों का पालन करें। यदि आपके पास परीक्षा के लिए कुछ महीने या कुछ दिन का समय है तो भी ये युक्तियाँ सहायक हैं। यहां कम समय में परीक्षा के लिए अध्ययन करने के टिप्स दिए गए हैं – 1. पिछले वर्षों के प्रश्न पत्रों का विश्लेषण करें – आपके पास पहले से ही प्रत्येक चीज़ का अध्ययन करने के लिए कम समय बचा है, इसलिए परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए, आपको अपने समय का कुशलतापूर्वक उपयोग करने की आवश्यकता है। आपको अपनी आगामी परीक्षाओं के पाठ्यक्रम के अनुसार पिछले वर्षों के प्रश्नपत्रों के विश्लेषण से शुरुआत करनी होगी। इसके लिए आपको निम्नलिखित कार्य करने होंगे – कम से कम 5-10 वर्षों के पिछले वर्षों के प्रश्न पत्र एकत्रित करें विभिन्न अध्यायों के प्रश्नों के वेटेज को क्रॉस-चेक करें, ताकि अधिक वेटेज और कम महत्वपूर्ण अध्यायों वाले अध्यायों की पहचान की जा सके। आपको उन प्रश्नों और अध्यायों के बारे में पता चलेगा जो कठिन, औसत और आसान स्तर के हैं। इससे आपको प्रत्येक अध्याय के महत्वपूर्ण विषयों को समझने में मदद मिलेगी जिनका आपको परीक्षा के लिए अध्ययन करना चाहिए। 2. प्राथमिकता के अनुसार अध्ययन कार्यक्रम निर्धारित करें – अब आपको प्रश्नों की संख्या, अंक वेटेज और कठिनाई स्तर के अनुसार महत्वपूर्ण अध्यायों के लिए प्राथमिकता निर्धारित करने की आवश्यकता है। प्राथमिकता सूची के अनुसार प्रत्येक अध्याय के लिए समय निर्धारित करें और अधिक महत्व वाले या आसान अध्यायों से शुरुआत करें, ताकि आप कठिन अध्यायों की तैयारी के लिए अपना समय और प्रयास बचा सकें। सबसे महत्वपूर्ण बात, अपने टाइम टेबल/अध्ययन योजना में बार-बार बदलाव न करें। बस प्राथमिकता सूची के अनुसार एक अध्ययन कार्यक्रम निर्धारित करें और बेहतर परिणामों के लिए उसका पालन करें। 3. पढ़ाई करते समय बिंदु बनाएं – जब आप अपनी तैयारी शुरू करते हैं, तो उस विषय को पढ़ें जिसे आपको सीखना है, और फिर आसानी से सीखने के लिए संकेतक वाक्य बनाएं। इसे सरल बनाने के लिए, आप उत्तरों और संबंधित विषयों को दर्शाने के लिए बुलेट्स, नंबरिंग, विशेष प्रतीकों या माइंड मैपिंग यानी आरेख का उपयोग कर सकते हैं। 4. पढ़ाई करते समय केवल वही चीजें रखें जिनकी आपको जरूरत है – आमतौर पर ऐसा होता है कि छात्र पढ़ाई के दौरान अपने मोबाइल, लैपटॉप, टैबलेट साथ ले जाते हैं जिससे उनका ध्यान लगातार भटकता रहता है। पढ़ाई करते समय कभी भी ऐसे उपकरण अपने पास नहीं रखने चाहिए, इससे आपकी एकाग्रता पर असर पड़ता है और आपका समय बर्बाद होता है। आपको केवल वही चीजें लेनी चाहिए जिनकी आपको वास्तव में अध्ययन करने के लिए आवश्यकता है जैसे नोटबुक, सिलेबस, प्रश्न पत्र और स्टेशनरी आदि। इसके अलावा, जिन चीजों की आपको आवश्यकता है उन्हें एक स्थान पर रखें ताकि आपको पढ़ाई के लिए उठना या अपनी पढ़ाई बीच में न छोड़नी पड़े। उन्हें। 5. पढ़ाई के दौरान बार-बार या लंबे समय तक ब्रेक न लें – आमतौर पर विशेषज्ञों द्वारा आपकी तैयारी के बीच में ब्रेक लेने की सलाह दी जाती है, लेकिन उनमें से किसी ने भी समय अवधि और ब्रेक की संख्या का उल्लेख नहीं किया है। आदर्श रूप से, आपको अध्ययन के हर 45 मिनट के दौर में 15 मिनट का ब्रेक लेना चाहिए। इसके अलावा, 15 मिनट के ब्रेक को 10+5, 5+10 या 5+5+5 में विभाजित न करें क्योंकि इससे आपका ध्यान भटक जाएगा। इसलिए, पढ़ाई के दौरान एकाग्रता बनाए रखने के लिए एक घंटे में छोटा ब्रेक लें यानी 60 मिनट = 45 मिनट की पढ़ाई + 15 मिनट का एक ब्रेक 6. अच्छी नींद लेंऔर स्वस्थ भोजन करें – याद रखने वाली सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पढ़ाई के दौरान खुद को चौकस रखने के लिए आपको स्वस्थ भोजन करना चाहिए और अच्छा आराम करना चाहिए। इसके लिए, आपको 6-7 घंटे सोना चाहिए फल, सब्जियाँ, फलों का रस/स्मूदी जैसे स्वास्थ्यवर्धक भोजन ही करें कुछ शारीरिक व्यायाम और ध्यान करने के लिए समय निकालें, इससे आपको शारीरिक और मानसिक फिटनेस में सुधार करने में मदद मिलेगी इसके अलावा, कृपया जंक फूड, चीनी लेपित उत्पादों और कैफीन से बचें क्योंकि ये चीजें आपके शरीर को अधिक थका देती हैं और आप पढ़ाई के दौरान ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब
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जलवायु परिवर्तन से खेती पर खतरा
विजय गर्ग
भारत ही नहीं, दुनिया भर में जलवायु संकट का असर खेती-किसानी पर पड़ रहा है। पिछले एक दशक में अतिशीत, लू, अतिवृष्टि, बाढ़, तूफान और बादल फटने की घटनाओं से जान-माल का नुकसान हुआ है। करोड़ों हेक्टेयर में खड़ी फसल नष्ट हो गई। आग लगने की घटनाओं से अरबों रुपए का जो नुकसान हुआ, उसका कोई लेखा-जोखा नहीं है। सवाल है कि जलवायु संकट के दौर में ऐसी प्राकृतिक आपदाओं से जान-माल और खेती- -बागवानी के नुकसान का जिम्मेदार कौन है ? भारत में केंद्र और राज्य सरकारें ऐसे में किसानों के लिए राहत की पोटली तो खोलती हैं, लेकिन उसका फायदा कितने प्रभावित किसानों तक पहुंचता है, यह बताने की जरूरत नहीं है। किस वजह से नहीं। पहुंचता, हुंचता, यह भी सभी जानते हैं। सवाल है कि जिस किसान वक्त पर अन्न, सब्जी और फल पैदा करने की जिम्मेदारी है, उसकी हालत कब तक ऐसी बनी रहेगी? क्या सरकारी राहत से किसानों के नुकसान की पूरी भरपाई हो पाती है?
भारत सहित दुनिया भर के किसान प्राकृतिक आपदाओं और दूसरी तमाम समस्याओं को झेलते रहते हैं, लेकिन किसानी से मुंह नहीं मोड़ते। यह बात भी सच है कि अब करोड़ों लोग कृषि कार्य से खुद को अलग कर रहे र रहे हैं। इसका कारण खेती का घाटे में जाना और बढ़ती प्राकृतिक कृतिक आपदाओं की वजह से हर साल 10.2 लाख करोड़ रुपए का घाटा उठाते रहना है। खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की रपट के मुताबिक प्राकृतिक आपदाओं के कारण दुनिया भर के किसानों पर हर साल गहरी चपत पड़ रही है। यह किसान को बर्बादी के कगार पर
खड़ा होने के लिए मजबूर कर रही ‘कर रही है। रपट बताती है कि किसानों पर पड़ रही यह मार वैश्विक स्तर पर कृषि क्षेत्र के वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद करीब पांच फीसद है। गौरतलब है कि प्राकृतिक आपदाओं की घटनाएँ प वर्षो तेजी से बढ़ी हैं। ऐसे आने वाले सालों में किसानों | और ज्यादा आर्थिक : क्षति का सामना करना पड़ सकता है। इसकी भरपाई कौन करेगा?
..कृषि क्षेत्र में रुचि वैश्विक स्तर पर कम होती जा रही है। एफएओ के आंकड़े के अनुसार जहां वर्ष 2000 में करीब 102.7 करोड़ लोग यानी वैश्विक । ‘श्रमबल का करीब 40 1 फीसद हिस्सा कृषि से जुड़ा था, वह 2021 घट कर महज 27 फीसद रह गया। यानी अब 87.3 करोड़ लोग अपनी जीविका के लिए खेती पर निर्भर हैं। भारत में जिस तेजी से लोगों में खेती- बागवानी पर निर्भरता कम हो रही है, अपने कृषि प्रधान देश के लिए बहुत चिंता की बात है। केंद्र और राज्य सरकारों को इसके पीछे के कारणों पर विचार कर खेती करने वालों को ऐसी सुविधाएं देनी चाहिए, जिससे प्राकृतिक आपदाओं और दूसरी समस्याओं की वजह से फसलों की बर्बादी या फसल का बहुत कम दाम मिलने पर किसानों को किसी तरह का घाटा न उठाना पड़े और न ही कर्ज की हालत में कभी आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़े खाद्य एवं कृषि संगठन की ‘स्टैटिस्टिकल ईयर बुकः वर्ल्ड फूड एंड एग्रीकल्चर 2023’ के अनुसार वर्ष 1991 से 2021 के दौरान बाढ़, तूफान, अकाल और ओले गिरने तथा बादल फटने की घटनाओं से फसलों की बर्बादी हुई। पशुधन की मौत से करीब 321,6 लाख करोड़ रुपए का नुकसान झेलना पड़ा है। इन आपदाओं का सबसे ज्यादा खमियाजा भारत सहित पूरे एशिया के किसानों को भुगतना पड़ा। किसी और क्षेत्र में इतनी बड़ी चपत आमतौर पर देखने में नहीं आती। अगर आती भी है, तो उन देशों की सरकारें उनके साथ हर हाल में खड़ी रहती हैं। रपट बताती है कि भारत सहित एशिया के किसानों को पिछले तीन दशक के दौरान करीब 143.2 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। अमेरिका और यूरोप आनुपातिक रूप से अधिक प्रभावित हुए हैं। वहीं अगर कृषि क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लिहाज से देखें, तो इन आपदाओं से अफ्रीका में किसानों को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है। इससे यह तस्वीर उभर कर सामने आती है कि प्राकृतिक आपदाएं भारत के किसानों के लिए ही नहीं, वैश्विक स्तर पर किसानों के लिए बेहद नुकसानदेह साबित हो रही हैं, इसलिए वैश्विक स्तर पर इस पर गहन विचार करना चाहिए और वैश्विक स्तर पर ऐसी नीति जरूर बनानी चाहिए, जिससे हर देश के किसान को प्राकृतिक आपदाओं की मार से बचाया जा सके। सर्वेक्षण बताते हैं कि खेती में लागत पहले से । कई गुना ज्यादा बढ़ गई है। इस वजह से भारत के से भारत के करोड़ों किसान साल के बारहों महीने कर्ज से दबे रहते हैं। केंद्र और राज्य सरकारों की कोई सकारात्मक नीति न होने से भारत के लाखों किसान जहां आर्थिक समस्याओं में उलझे रहते हैं, वहीं पारिवारिक समस्याओं से भी परेशान रहते हैं। | स्वामीनाथन आयोग की रपट आज तक लागू नहीं हो पाई है। इसलिए भारत के किसी भी राज्य का किसान खुशहाल नहीं बन पाया है। सरकारों ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया कि लोगों में कृषि की तरफ रुचि फिर से पैदा हो और बेरोजगारी की विकराल समस्या से से लोगों को छुटकारा मिल सके।
एफएओ की रपट के अनुसार भारत की कृषि खाद्य प्रणालियों की छिपी लागत 91 लाख करोड़ रुपए है। वहीं वैश्विक स्तर पर खाद्य प्रणालियों की छिपी लागत करीब 1,057.7 लाख करोड़ रुपए है। इसमें भारत की हिस्सेदारी 8.8 फीसद है। इस तरह अमेरिका और चीन के बाद दुनिया में तीसरी सबसे अधिक लागत है। कृषि में छिपी लागत किसानों के लिए सबसे चिंता का विषय है। रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल पर्यावरण प्रदूषण की एक बड़ी वजह है। की एक बड़ी वजह है। वैज्ञानिक शोध के मुताबिक ग्रीनहाउस गैसों की वजह से प्राकृतिक आपदाएं बढ़ रही हैं और ऋतुचक्र में बेतहाशा बदलाव देखा जा जा रहा है। । नतीजा। फसल चक्र पर पर असर पड़ मस्याएं और बीमारियां बढ़ रही हैं। इससे किसान रहा है, जिससे तमाम समस्याएं सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। परीक्षण से पता चला है कि रासायनिक कीटनाशकों की वजह से अन्न उत्पादन या पाए जाने लगे हैं, जो कई गंभीरफली में एस हानिकारक तत्त्व की रपट के मुताबिक करीब 62 फीट की वजह बन रहे हैं। एफएओ इक्कीस वर्षों में कीटनाशकों के उपयोग में 162 फीसद का इजाफा हुआ है। । हालांकि 2021 में दुनिया के 2022 में दनिया भर आधे कीटनाशकों की खपत केवल अमेरिका में हुई थी। भारत सहित एशिया के कई देशों में कीटनाशकों का इस्तेमाल लगातार बढ़ रहा है। भारत के किसान विकसित देशों के किसानों से से बहुत गरीब हैं। यहां को बहुत कम मिलती
● इसलिए
सहूलियतें भी उन देशों की अपेक्षा! इन्हें हैं। केंद्र और राज्य सरकारों को कृषि को घाटे वाले क्षेत्र से निकाल कर मुनाफे वाले क्षेत्र में लाने के लिए सार्थक कदम उठाने चाहिए। सिंचाई, खाद, बिजली की सुविधाएं, बीज, श्रम और छिपी लागत से किसानों पर पड़ रहे अतिरिक्त बोझ से छुटकारा दिलाने के लिए गंभीरता से विचार करना चाहिए। प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देकर भी खेती को मुनाफे वाली बनाया जा सकता है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब
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मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालती है सामाजिक असमानता
विजय गर्ग
विज्ञानियों ने एक अध्ययन में पाया कि सामाजिक असमानता का सीधा संबंध मस्तिष्क में होने वाले परिवर्तनों से है। यह उम्र बढ़ने और डिमेंशिया से संबंधित माना जाता है। आने वाले वर्षों में डिमेंशिया के मामलों में वृद्धि का अनुमान है। खासकर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में इसका प्रभाव अधिक देखने को मिल सकता है। इसे देखते हुए अध्ययनकर्ताओं ने इस बात पर बल दिया कि मस्तिष्क स्वास्थ्य असमानताओं के मूल कारणों का इलाज करने के लिए स्थानीय सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य पर भी ध्यान देने की जरूरत है।
आयरलैंड के ट्रिनिटी कालेज डबलिन के शोधकर्ताओं ने अल्जाइमर सहित अन्य न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों से पीड़ित 2,100 से अधिक व्यक्तियों और स्वस्थ लोगों को अपने अध्ययन में शामिल किया। पाया गया कि सामाजिक-आर्थिक असमानताओं का मस्तिष्क की संरचना और कनेक्टिविटी में परिवर्तन से सीधा जुड़ाव था। खासकर स्मृति और संज्ञानात्मक कार्य के लिए आवश्यक क्षेत्रों में, जो उम्र बढ़ने और डिमेंशिया से प्रभावित होने के लिए जाने जाते हैं। यह अध्ययन नेचर एजिंग पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। शोध में शामिल अल्जाइमर से पीड़ित लैटिन अमेरिका के लोगों पर इसका सर्वाधिक गंभीर प्रभाव देखा गया, जिससे पता चलता है कि सामाजिक असमानता के माहौल में बद्ध होने वाली आबादी में न्यूरोडीजनरेशन की स्थिति और खराब हो सकती है।
शोध मानसिक स्वास्थ्य को आकार देने में सामाजिक असमानता की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करता है। विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में डिमेंशिया की दरों में वृद्धि को देखते हुए निष्कर्ष मस्तिष्क स्वास्थ्य असमानताओं के मूल कारणों पर ध्यान देने के लिए हस्तक्षेप की आवश्यकता पर जोर देता है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब
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क्वांटम कंप्यूटर में क्रांतिकारी कदम
विजय गर्ग
गूगल ने इसी महीने ‘विलो’ नाम की क्वांटम चिप बना कर तकनीक के क्षेत्र में हलचल पैदा कर दी है। अत्यंत सूक्ष्म, महज चार वर्ग सेंटीमीटर की यह चिप एक तरफ तो तीस वर्ष से भी ज्यादा पुरानी समस्या का हल खोजने में सक्षम है, वहीं यह पांच मिनट में ऐसे काम कर सकती है, जिन्हें करने में सबसे तेज सुपर कंप्यूटर को भी अरबों साल लग सकते हैं। इस चिप से कृत्रिम बुद्धि, फ्यूजन ऊर्जा तथा तारामंडल के ग्रह-नक्षत्रों का अध्ययन करने में मदद मिलेगी। मौसम और प्राकृतिक आपदाओं की सटीक भविष्यवाणी करने में सुविधा होगी। तकनीकी क्षेत्र में इस नवीन उपलब्धि की सभी जगह चर्चा है। एलन मस्क जैसे लोग इस उत्पाद को लेकर अचंभित हैं। इसलिए इसे ‘सुपर ब्रेन’ की संज्ञा दी रही है। ‘विलो’ चिप व्यावसायिक रूप में क्वांटम कंप्यूटिंग की नई दिशा तय करती हुई मील का पत्थर साबित होगी।
कुछ समय पहले तक असंभव सी लगने वाली चीजें आज प्रौद्योगिकी की मदद से सरलता से परिणाम तक पहुंच रही हैं। एक समय संगणक के विकास ने प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव किया था। अब कृत्रिम बौद्धिकता यानी एआइ ने चिकित्सा से लेकर हथियारों के निर्माण तक हर क्षेत्र में कंप्यूटर और रोबोट के प्रयोग को नया आयाम दिया है। पारंपरिक कंप्यूटर की दुनिया में इस प्रगति के समांतर एक और अनुसंधान चल रहा है, जिसका नाम है ‘क्वांटम कंप्यूटिंग’ यानी अति- सूक्ष्मता का विज्ञान भारत ने ने भी अब इस क्षेत्र में गति लाने का एलान कर दिया है। भौतिक शास्त्र के क्वांटम सिद्धांत पर काम करने वाली इस कंप्यूटिंग में असीमित संभावनाएं देखी जा जा रही हैं। शोध के के लिहाज से यह विषय किसी के लिए भी रुचि का हो सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार एक पूर्ण विकसित क्वांटम कंप्यूटर की क्षमता सुपर कंप्यूटर से भी ज्यादा आंकी जा रही है। इसकी शुरुआत के बाद भारतीय और पश्चिमी वैज्ञानिक मान रहे रहे हैं कि भाववादी सिद्धांत को जाने बिना अणु या कण में चेतना का आकलन नहीं किया जा सकता। क्वांटम कंप्यूटिंग या यांत्रिकी एक लैटिन शब्द है। इसका अर्थ कण है। इस विषय के अंतर्गत पदार्थ के अति सूक्ष्म व अतिसूक्ष्म कण कणों का अध्ययन किया जाता है। इनमें परमाणु, न्यूक्लियस तथा इलेक्ट्रान और प्रोटान सभी मौलिक कणों का अध्ययन शामिल है। इसमें इनके व्यवहार और उपयोगिता का अध्ययन किया जाता है। इस नवीन विषय के अध्ययन की नींव 1890 में वैज्ञानिक मैक्स प्लांक ने डाली थी। हालांकि इस समय तक वैज्ञानिक यह मान कर चल रहे थे कि भौतिकी में जितने नियमों का आविष्कार होना था, लगभग हो चुके हैं ज्ञान ने पहले परमाणु को ही ऐसा सबसे सूक्ष्मतम कण बताया था, जिसने विश्व का निर्माण किया है। फिर आगे की खोज से ज्ञात हुआ कि परमाणु भी विभाजित हो सकता है। यानी उसे और अत्यंत सूक्ष्म कणों में बांटा जा सकता है। फलतः ये सूक्ष्म कण, इलेक्ट्रान, प्रोटान और न्यूट्रान नाम के लघुतम रूपों में सामने आए।
कण यांत्रिकी को भविष्य का कंप्यूटर माना जा रहा है। यह परमाणु और उप परमाणु के स्तर पर ऊर्जा और पदार्थ की व्याख्या करती है। पारंपरिक कंप्यूटर बिट (अंश) पर काम करते हैं, वहीं क्वांटम कंप्यूटर में प्राथमिक इकाई क्यूबिट यानी कणांश होती है। पारंपरिक कंप्यूटर में प्रत्येक बिट का मूलाधार या मूल्य शून्य (0) और एक (एक) होता है। कंप्यूटर इसी शून्य और एक की भाषा में कुंजीपटल (की-बोर्ड) से दिए निर्देश को ग्रहण करके समझता और परिणाम देता है। वहीं क्वांटम की विलक्षणता यह होगी कि वह एक साथ शून्य और एक दोनों को ग्रहण कर लेगा। यह क्षमता क्यूबिट की वजह से विकसित होगी। नतीजतन, यह दो क्यूबिट में एक साथ चार मूल्य या परिणाम देने में सक्षम हो जाएगा। एक साथ चार परिणाम स्क्रीन पर प्रकट होने की इस अद्वितीय क्षमता के कारण इसकी गति पारंपरिक कंप्यूटर से बहुत ज्यादा होगी। उससे कहीं अधिक मात्रा में यह कंप्यूटर डेटा ग्रहण और सुरक्षित रखने होगा। इसीलिए दावा किया जा जा रहा है कि इसकी में समर्थ मदद स से आंकड़ों और सूचनाओं को कम से कम समय में प्रसारित किया जा सकेगा। एआइ जीपीटी चैट और चैटबाट जैसी तकनीक इसकी सहायता से और तेजी से गतिशील रहेंगी। मगर विलो चिप निर्माण की घोषणा ने सुपर कंप्यूटर के निर्माताओं को फिलहाल सकते में डाल दिया है, क्योंकि ‘विलो चिप’ की क्षमताएं ब्रह्मांड व्यास की तरह शक्तिशाली और असीमित बताई गई हैं।
क्वांटम कंप्यूटर की क्षमता को देखते हुए इसके विकास में भारत समेत अनेक देश लगे हैं। यही वजह है कि आविष्कार से पहले इसकी क्षमताओं का मूल्यांकन कर लेने वाले देश इसके अनुसंधान पर बड़ी धनराशि खर्च कर रहे हैं। चीन ने 15 अरब डालर खर्च करने की घोषणा की है। चीन की ई-कामर्स कंपनी अलीबाबा अलग से इस पर काम कर रही है। यूरोपीय संघ इस क्षेत्र में करीब आठ अरब डालर खर्च कर रहा है। भारत सरकार ने भी इस दिशा में शोध को बढ़ावा देने के लिए क्वांटम सूचना विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्था का गठन तो पहले ही कर लिया था, लेकिन केवल क्वांटम तकनीक पर नवीन शोध और आविष्कार के लिए 2023-24 से 2030-31 तक चलने वाले इस अभियान पर 6003.65 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। भारत इतनी बड़ी राशि पहली बार खर्च कर रहा है।
“फिलहाल ऐसा माना जा रहा है कि क्वांटम यांत्रिकी का क्षेत्र जितना महत्त्वपूर्ण है, उस तुलना में इस क्षेत्र में कुशल युवाओं की संख्या बहुत कम है। एक अनुमान के मुताबिक दुनियाभर में एक हजार से भी कम लोग क्वांटम अभियांत्रिकी या भौतिकी में शोधरत हैं। अनेक कंपनियां योग्य और कल्पनाशील लोगों की तलाश में है। हैरानी इस पर भी है कि क्षेत्र में भविष्य की आपार संभावनाएं होने के बावजूद इस जटिल विषय की युवा आकर्षित नहीं हो रहे हैं। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि है कि कुशाग्र बुद्धि वाले जो विद्यार्थी कल्पनाशील विचार रखते हैं, उन्हें हतोत्साहित कर कंपनियों के पारंपरिक कार्यों में खपाया या सरकारी नौकरियों के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसका सामना क्वांटम भौतिकी के जनक मैक्स प्लांक को भी करना पड़ा था। जब तब उन्होंने इस विषय पर काम करने प्लांक दसवीं कक्षा के छात्र छात्र थे, तब का विचार अपने गुरु को दिया, तो उनका उत्तर था, ‘ ‘भौतिकी में अब नए आविष्कारों की संभावनाएं खत्म हो चुकी हैं। इसमें जितना शोध और अनुसंधान होने की संभावनाएं थीं, वे पूरी हो चुकी हैं। अतः इस विचार को छोड़ दो।’ मगर यह मैक्स की दृढ़ इच्छाशक्ति थी कि उन्होंने अपने विचार को शोध के रूप में आगे बढ़ाया और क्वांटम भौतिकी को जन्म दिया। अब यही क्वांटम भौतिकी कंप्यूटर की क्वांटम यांत्रिकी बन रही है। ‘विलो’ चिप को इस कंप्यूटर का सुपर ब्रेन माना जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि इस क्षेत्र में जो देश बढ़-चढ़ कर नेतृत्व करेगा, वही दुनिया पर राज भी करेगा।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब