Life Styleलेख

अन्न (काव्यांजलि)

मैंने देखा
उसके पास कुछ बची-खुची रोटियां थीं
गर्म नहीं, ठंडी बासी
उसके पास थोड़ा तैल था,
और
था कुछ नमक भी,
सब्जी नहीं थी
उसने रोटी को माथे लगाया
ईश्वर को याद किया
रोटियों पर तैल-नमक लगाया
ग्रास लेकर
शांति संयम से
बिना किसी गिलवे-शिकायत के
खाया
और ईश्वर का शुक्र मनाया
शायद
उसे पता है
कि
अन्न ब्रह्म होता है !

सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।

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