गाड़गेबाबा 30 वषों तक पंढरपुर में आषाढ़ और कार्तिक पूर्णिम में गये ।परंतु एक मर्तबा भी पत्थर के देवता के दर्शन हेतु मंदिर में नही गये ।उन्हें यह मंज़ूर ही नही था की भगवान मंदिरो और पत्थरों में बसते है ।उन्होंने एक मर्तबा भी आषाढ़ और कार्तिक का उपवास नही किया । लोगों ने गंदा किया हुवा चंद्रभागा नदी किनारा का कचरा ख़ुद झाड़ू लेकर साफ़ करते और शाम को हज़ारों लोगों के सामने खड़े रहते और उनका जागृति प्रबोधन शुरू ;-
भगवान देखा है कि नही ? तुम्हारा भगवान कहा रहता है ? तुम्हारा ईश्वर नहाता है क्या ? तुम ईश्वर को प्रसाद चढ़ाते हो वह कोन ले जाता है ? मंदिर में सिर्फ़ पुजारी का पेट रहता है ,भगवान का नही । आदि सामान्य सामान्य बातों से जन सामान्य को जागृत करने का भरपूर प्रयास करते ।
फिर कहते चलता फिरता भगवान किसीने देखा क्या ? लोग इधर उधर देखते ,वह “भाऊराव पाटिल “ को आगे करते और कहते ,ये महार माँगो के बच्चों को पढ़ाते है । यह चलता फिरता भगवान है ।
इससे हमें यह मालूम पड़ता है की गाड़गेबाबा शिक्षा को लेकर कितने गम्भीर थे और इसी शिक्षा के महत्व को बाबासाहेब आंबेडकर ने अपने तीन सूत्र “ शिक्षित बनो ,संघर्ष करो ,संगठ