शिक्षा प्रणाली की परीक्षा
हाल में जारी इंडियाज ग्रेजुएट स्किल इंडेक्स-2025 की रिपोर्ट चिंतित करने वाली है। इसकी मानें तो भारतीय स्नातकों को कौशल की कमी के चलते नौकरी नहीं मिल रही है। सरकारी रिपोर्ट हों या निजी सर्वेक्षण, हर जगह एक ही कहानी सामने आती है- डिग्रीधारी बेरोजगारों की संख्या बढ़ती जा रही है। एक तरफ देश में स्किल इंडिया और आत्मनिर्भर भारत जैसे अभियान चलाए जा रहे हैं और दूसरी तरफ 57.4 प्रतिशत ग्रेजुएट बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं? क्या हमारी शिक्षा प्रणाली युवाओं को सिर्फ डिग्री लेने की मशीन बना रही है? स्कूल और कालेजों में घंटों बैठकर किताबी ज्ञान रटने वाले छात्र जब नौकरी के लिए इंटरव्यू देने जाते हैं, तो उन्हें यह कहकर बाहर कर दिया जाता है कि उनमें व्यावहारिक कौशल की कमी है। क्या शिक्षा सिर्फ परीक्षाओं में अच्छे अंक लाने तक ही सीमित हो गई है? रिपोर्ट बताती है कि करियर में सफलता के लिए 55.1 प्रतिशत संचार कौशल, 54.6 प्रतिशत क्रिटिकल थिंकिंग और 54.2 प्रतिशत विश्लेषणात्मक क्षमता की आवश्यकता होती है, लेकिन क्या हमारी शिक्षा प्रणाली इन कौशलों को विकसित करने पर ध्यान दे रही है ?
रोजगार पैदा करने के लिए सिर्फ योजनाएं बनाना काफी नहीं, बल्कि शिक्षा व्यवस्था को मौलिक रूप से बदलने की जरूरत है। क्यों न हमारी शिक्षा प्रणाली को इस तरह से विकसित किया जाए कि हर छात्र को नौकरी के लिए मोहताज न होना पड़े, बल्कि वह अपने कौशल के दम पर खुद रोजगार पैदा कर सके। क्या शिक्षा सिर्फ एक कागजी प्रमाणपत्र बनकर रह गई है या वास्तव में जीवन संवारने का जरिया है ? समस्या सिर्फ नीति निर्धारकों की नहीं, बल्कि समाज की मानसिकता की भी है। अभिभावक आज भी बच्चों को डाक्टर, इंजीनियर या सरकारी नौकरी
की दौड़ में धकेल रहे हैं, बिना यह सोचे कि उनकी वास्तविक रुचि और क्षमता क्या है । क्या हर किसी को नौकरी की तलाश में भटकना चाहिए या उसे अपने भीतर के हुनर को पहचानने का अवसर मिलना चाहिए?
तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देने की बात होती है, लेकिन व्यावसायिक शिक्षा का भी उतना ही महत्व दिया जाना चाहिए। एक बढ़ई, एक प्लंबर, एक इलेक्ट्रीशियन का काम भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि एक इंजीनियर या डाक्टर का, लेकिन क्या समाज उन्हें समान सम्मान देता है ? शायद नहीं। यह मानसिकता भी बदलनी होगी। आज जरूरत है कि शिक्षा को सिर्फ डिग्री और अंकों की दौड़ से निकालकर व्यावहारिक ज्ञान और उद्यमिता से जोड़ा जाए। हर छात्र में कोई न कोई प्रतिभा होती है, जरूरत है उसे सही दिशा देने की। अगर हम शिक्षा को केवल नौकरी पाने का जरिया बनाएंगे, तो बेरोजगारी की समस्या बनी ही रहेगी। शिक्षा का असली उद्देश्य आत्मनिर्भरता और नवाचार को बढ़ावा देना होना चाहिए।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार मलोट पंजाब