*कविता : अशोक सिंह*
*एक कथा काव्य : उमो सिंह की ढोलक*
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( अपने गाँव के एक मात्र ढोलकिया उमो सिंह की व्यथा-कथा सुनकर )
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दो भैंसे की लड़ाई में
झाड़-पात के हुए निनान की तरह
टूटे-बिखरे परेशान हैं
हमारे गाँव के उमो सिंह
उमो सिंह
हमारे गाँव के एक मात्र ढोलकिया उमो सिंह
हैरान हैं, परेशान हैं
परेशान है कि आज वही लोग
उनकी ढोलक के दुशमन बन गये
जो कभी उनके दो हाथ बन
उनकी ढोलक की थापों पर
एक सूर-ताल में उठते-गिरते थे
एक ने फरमान जारी कर रखा है
कि अगर उसके दरवाजे से इस बार
फगुवा की शुरूआत नहीं हुई तो
उनकी ढोलक सहित उनको उठाकर
जलती होलिका में फेंक दिया जायेगा
दे रखी है धमकी दूसरे ने भी कि
अगर उमो सिंह उस पक्ष के लोगों के साथ मिलकर
फगुवा में ढोलक बजायेंगे
तो इस बार गाँव में खून की होली होगी
उमो सिंह
गाँव के एक मात्र ढोलकिया उमो सिंह
जो अपनी एक मात्र बची-खुची ढोलक से
पूरी बस्ती को एक सूर-ताल में बाँधकर जोड़ते रहे
आज वही ढोलक उनके जी का जंजाल बन गया है
जी का जंजाल बन गया आज वही ढोलक
जिसने उमो सिंह को गाँव में सबका चहेता बनाया
लोग कहते हैं
जब उमो सिंह ढोलक बजाते हैं
तो बस्ती में दुश्मनी की सारी दीवारे ढ़ह जाती हैं
और हर कोई उनकी चौपाल पर खींचा चला आता है।
उनकी सूर-ताल में अपनी ताल मिलाने
यहाँ तक भी कहते हैं लोग कि
जब बस्ती में
लोगों की लाठियाँ आपस में टकराती हैं
तब पूरी बस्ती का दर्द फूटता है
उनकी ढोलक की थाप से…
पर आज बेचारे उमो सिंह
सीधे-सादे भोले-भाले उमो सिंह
दो पाटों के बीच
जौ-गेहूँ की तरह पीसा रहे हैं।
पीसा रहे हैं दो पाटों के बीच उमो सिंह
और हैरान परेशान सबका मुख ताकते
दौड़ रहें हैं कभी मुकून्द सिंह
तो कभी महादेव सिंह, भूलो सिंह के पास
और सबके सब हैं कि चुप्पी साधे बैठे हैं
दीवार में खूँटी पर टंगे उनकी ढोलक की तरह
चुप्पी साधे बैठे हैं अपने सूने दरवाजे पर
गाँव के सबसे बड़े बबुआन बाबू बाल मुकून्द सिंह
वे चुप हैं कि अब उनकी कोई नहीं सुनता
भूलो सिंह भी क्या करें
वे भी तंग-तंगा गये हैं गाँव की राजनीति से
भूल गये हैं किसी को टोका-टोकी करना
और महादेव सिंह तो महादेव ही हैं
पड़े हैं दरवाजे पर स्थापित
किसी शिवलिंग की तरह पथराये हुए
एक मुखिया जी थे भला-बूरा देखने-सुनने वाले
वह भी मुखियागिरी करते-करते चले गये
यह कहकर
कि अब यहाँ हर कोई अपने आपमें मुखिया है
ऐसे में गाँव के मुखिया बनने का समय नहीं रह गया अब
सच को सच
और झूठ पूरी ताकत से झूठ बोलने वाले
आम्बिका सिंह उर्फ भोथी बाबा भी
चले गये गरियाते-गरियाते यह कह कर कि
गाँव एक दिन शमशान बन जायेगा
और चौबट्टी पर कुकुर-सियार भुकेंगे
गाँव गरम है
पर चारो तरफ एक ठंड़ी चुप्पी पसरी है
कहीं अगर कुछ कोई बोल रहा है तो वह
गाँव की गोबरटोली मेें जहाँ चर्चा गरम है
अबकी बार होली में
गाँव में अच्छा रंग में भंग जमेगा
ऐसे में चुप्पी के इस गहराते सन्नाटे में
डरे सहमे उदास उमो सिंह आज आखिरी बार
ढोलक की जगह
अपनी छाती को पीट-पीटकर बजाना चाहते हैं
बजाना चाहते हैं अपनी छाती को
ढोलक की तरह पीट-पीटकर
और निकालना चाहते हैं एक ऐसा सुर-ताल
जैसा आज तक पूरे जीवन में
कभी नहीं बजाया
अब ऊब चुके हैं उमो सिंह गाँव से
ऊब चुके हैं जीवन भर
ढोलक बजा-बजाकर अपनी ढोलकियागिरी से
कर लिया है उन्होंने फैसला
अब अपने ही घर को होलिका जलाकर
डाल देंगे उसमें अपनी वह ढोलक
जो आज उनके जी का जंजाल बन गया है
और चले जायेंगे गाँव छोड़कर दूर बहुत दूर….
कभी न वापस आने के लिए।
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*जनमत शोध संस्थान*
*पुराना दुमका केवटपाड़ा,*
*दुमका-814101 (झारखण्ड)*
