बहुत याद आते हो प्यारे बाबा ……
ये आँखें तरस रही हैं आपका हंसता मुस्कुराता चेहरा देखने को।।
ये कान तरस रहे हैं आपकी पुकार में अपना नाम सुनने को।।
ये कैची सी जुबान तरस रही है बिना बात आपसे लड़ जाने को।।
ये सांसे तरस रही है आपकी मौजूदगी की महक पाने को।।
ये हाथ तरस रहे हैं आपका हाथ थामने को, आपका सिर सहलाने को।।
ये पांव तरस रहे हैं आपकी एक पुकार पर दौड़ जाने को।।
ये आँखों से बहते आंसू तरस रहे हैं आपके हाथ से पोछे जाने को।।
ये दुःखी मन तरस रहा है रूठ जाने पर कसमें देकर तो कभी पांव छूकर मनाए जाने को।।
ये पीठ तरस रही है, बिना काबिलियत के हर पल शाबाशी पाए जाने को।।
ये दिल तरस रहा है, बिना हुनर के तारीफों के पुल बंधते देख खुश हुए जाने को।।
ये खाली जेबें तरस रही हैं आपके कांपते हाथों से मिले नोटों से भर जाने को।।
ये बारिश का बहता पानी तरस रहा है आपके हाथ की बनी काग़ज़ की कश्ती तैराने को।।
ये रातों की गायब नींदें तरस रही है आपकी लोरी सुनकर अंखियों में लौट आने को।।
ये रूह तरस रही है फिर बच्चा बन आपकी गोद में छिप जाने को।।
ये निहारिका तरस रही है श्री ब्रज किशोर इटावी जी, नातिन होकर प्यार से इन्ना (मां) कहकर पुकारे जाने को।।
आपकी सोना बिटिया बहुत तरस रही है बाबा, हर जन्म परिचय में आपकी ‘पहली भूख’ कहलाने को।।
निहारिका सक्सेना
किशोर सदन कचहरी रोड मैनपुरी
