आजकल हर सुबह, सूरज की सुनहरी किरणों से पहले, स्क्रीन की नीली रोशनी हमारे चेहरों को छूती है। उंगलियां बेकाबू होकर स्क्राल करती हैं, और रातें नोटिफिकेशंस की बाढ़ में डूब जाती हैं। यह महज आदत नहीं, बल्कि डिजिटल लत का वह जाल हैं, जो मन को धीरे- धीरे खोखला कर देता है। हमने तकनीक के दम पर दुनिया को अपने हाथों में थाम लिया, मगर अपने मन की शांति को खो दिया। फोन अनगिनत एप्स, रील्स और संदेशों से भरे हैं, लेकिन मन? वह खाली, बेचैन और एक ऐसी तृष्णा से भरा है, जो स्क्रीन की चकाचौंध में कभी शांत नहीं होती । इस डिजिटल अंधेरे में जैन धर्म का ध्यान एक जगमगाते दीपक की तरह चमकता है, जो हमें न केवल आंतरिक शांति की राह दिखाता है, बल्कि हमें हमारे असली स्वरूप से जोड़ता है।
डिजिटल लत कोई मामूली व्यसन नहीं है। यह केवल तकनीक का अतिरेक नहीं, बल्कि मन और आत्मा के गहरे खालीपन का दर्पण है। लोग फोन को इसलिए थामे रहते हैं, क्योंकि उनके पास मन को समृद्ध करने का कोई सार्थक रास्ता नहीं। इंटरनेट मीडिया पर लाइक्स की भूख, रील्स में खो जाना या गेम्स की आभासी दुनिया में डूबना – – यह सब उस भीतरी अशांति को छिपाने की नाकाम कोशिश है। जैन धर्म का अपरिग्रह सिद्धांत डिजिटल लत से मुक्ति का एक व्यावहारिक और गहन रास्ता दिखाता है। अपरिग्रह केवल भौतिक वस्तुओं का परित्याग नहीं, बल्कि मन की अतृप्त लालसाओं की प्रवृत्ति पर लगाम लगाने की कला है। आज स्मार्टफोन आदि आधुनिक परिग्रह के प्रतीक बन चुके हैं। हमारी आवश्यकताएं सीमित हैं, मगर इच्छाएं अनंत । हर अपडेट हमें डिजिटल भंवर में और गहरे डुबोता है। अपरिग्रह हमें सिखाता है कि तकनीक का उपयोग संयमित और विवेकपूर्ण हो ।
जैन परंपरा में मौन और स्वाध्याय की साधना डिजिटल लत से मुक्ति की एक शक्तिशाली औषधि है। मौन में व्यक्ति अपने विचारों का साक्षी बनता है, उन्हें गहराई से समझता है और धीरे-धीरे उन पर संयम स्थापित करता है। स्वाध्याय के माध्यम से आत्मा और कर्मों के सूक्ष्म संबंधों की खोज व्यक्ति को अपने अंतर्मन की गहराइयों तक ले जाती है। आज की युवा पीढ़ी, जो डिजिटल मायाजाल में सबसे अधिक उलझी है, उसके लिए ये साधन न केवल लाभकारी, बल्कि अपरिहार्य हैं।
आज का युग डिजिटल डिटाक्स से आगे बढ़कर आत्मिक शुद्धिकरण की मांग करता है। इसके लिए कुछ सरल, किंतु शक्तिशाली कदम जीवन को रूपांतरित कर सकते हैं। प्रतिदिन 20 मिनट का समायिक अभ्यास मन को गहन स्थिरता और स्पष्टता प्रदान करता है। सप्ताह में एक दिन डिजिटल उपवास स्क्रीन से पूर्ण विराम, आत्मा से गहरा जुड़ाव स्थापित करता है। ये छोटे कदम जीवन को एक नई, सार्थक दिशा की ओर ले जाते हैं।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट
