कहानी:परी की सलाह
गोलू अपने माता-पिता की इकलौती संतान था। उसके माता-पिता यह सोचकर कि वे उसे बहुत समय नहीं दे पाते हैं, उसकी हर मांग पूरी करते थे। इससे वह स्वार्थी बन गया था।
असल में उसका नाम पार्थ था। गोलू के पास किसी चीज की कमी नहीं थी, लेकिन उसके दोस्त नहीं थे। कोई उसकी प्रशंसा नहीं करता था, क्योंकि वह किसी के साथ कुछ भी बांटना पसंद नहीं करता था। वह अकेला था और हमेशा उदास रहता था। इस वजह वह चिड़चिड़ा हो गया था ।
गोलू को खाने के लिए रोज पैसे मिलते थे। वह खाने में खुशी ढूंढ़ता था। बच्चे उसे नापसंद करते थे, इसलिए वह उनके प्रति नाराजगी रखता था। एक दिन टीचर ने पढ़ाते हुए बताया कि हमारे देश में हजारों-लाखों ऐसे बच्चे हैं जिन्हें एक वक्त का खाना भी नहीं मिलता। उस दिन जब वह कैंटीन से खाने के लिए चीजें खरीदने गया तो उसे टीचर की बात याद आई। उस दिन उसने कुछ नहीं खरीदा। वह स्कूल बस से उतर कर घर के पास ही बनी एक मिठाई की दुकान के पास रखी बैंच पर जाकर बैठ गया।
तभी एक परी उसके पास आकर बैंच पर बैठ गई। ‘क्या तुम जानते हो कि लाखों बच्चे ऐसे हैं जो अक्सर भूखे रहते हैं ? ‘मुझे मालूम है।’
गोलू ने धीरे से कहा। गोलू, तुम्हें जो रोज पैसे मिलते हैं, इनसे चाकलेट, चिप्स, केक, टाफी जैसी चीजें खरीदने के बजाय जिनसे मोटापा बढ़ता है तुम बीज खरीद सकते हो ?’ ‘मैं बीज क्यों खरीदूं? मुझे भूख लग रही है। मैं मिठाई खरीदने जा रहा हूं’। गोलू ने चिढ़ते हुए कहा । ‘तुम अगर मेरी बात मानोगे तो तुम्हारा वजन कम हो जाएगा। तुम फिर सबके साथ खेल भी पाओगे। दो दुकानें छोड़कर जो दुकान है तुम वहां जाओ और सब्जियां उगाने के लिए बीज खरीदो।’
‘मैं कोई किसान हूं जो सब्जी उगाऊंगा। यह मेरा काम नहीं है।’ गोलू गुस्से से बोला । ‘तुम अपने घर के बगीचे में इन्हें लगाना। तुम्हारे मम्मी- पापा को भी खुशी होगी और वे अवश्य ही तुम्हारी मदद भी करेंगे। जब सब्जियां उग जाएं तो उन्हें उन भूखे बच्चों को देना । बगीचे की देखभाल करने से तुम्हारा वजन भी कम हो जाएगा। जानते हो, यह एक तरह का व्यायाम ही ‘है। फिर तुम मजे से फुटबाल और अन्य दौड़ने वाले खेल भी खेल पाओगे।’ परी ने उसे समझाया।
गोलू ने परी की बात मान ली। परी उसे बताती जा रही थी कि कौन से बीज खरीदने हैं। परी को अभी केवल वही देख सकता है, वह पहले ही बता चुकी थी। उसका कहना था कि वह जब चाहे दूसरों को भी दिख सकती है। लेकिन कब, यह वही तय करती है।
घर आकर गोलू ने बीज अपने कमरे में एक कोने में किसी कूड़े की तरह रख दिए । अगले दिन जब वह स्कूल बस में बैठा तो परी भी उसकी बगल में आकर बैठ गई। ‘तुमने बीज मिट्टी में नहीं डाले ? मुझे बड़ी निराशा हुई यह देखकर। मैंने सोचा था कि मैं तुम्हारी दोस्त बन गई हूं और तुम मेरी बात मानोगे।’ परी ने दुखी स्वर में कहा।
गोलू कुछ नहीं बोला। कक्षा में भी उसका मन नहीं लगा। मैं घर के बगीचे में सब्जियां उगाना चाहता हूं। आपने जो पैसे दिए थे उनसे मैंने खाने की चीजें न खरीदकर बीज खरीदे हैं।’ रात को खाना खाते वक्त उसने यह बात अपने मम्मी-पापा को बताई। उसके मम्मी-पापा को उसकी बात सुन हैरानी हुई। उन्हें लगा कि अवश्य ही गोलू की तबीयत ठीक नहीं है।
अगले दिन शनिवार था और स्कूल की छुट्टी भी सुबह बगीचे में जाकर उसने पापा की मदद से बीज मिट्टी में डाले । उसने आज बहुत मेहनत की थी, पर बैठकर हमेशा की तरह चिप्स, नमकीन, चाकलेट, केक नहीं खाया था । उसकी मम्मी ने जब उसे दाल-रोटी और सब्जी खाने को दी, तो उसने पिज्जा, बर्गर की मांग नहीं की। उसकी मम्मी को यह देख खुशी हुई।
एक दिन किस्म-किस्म की सब्जियां उगी देख गोलू खुशी से नाचने लगा। टमाटर, पालक, भिंडी, सलाद के पत्ते, खीरा और न जाने कितनी सब्जियां लहरा रही थीं। ‘बताओ गोलू, आज तुम इनमें से कौन सी सब्जी खाना पसंद करोगे ?
‘मैं इन सब्जियों को उन बच्चों में बांटना चाहता हूं जिन्हें भरपेट खाना नहीं मिलता।’ गोलू की बात सुन उसकी मम्मी की आंखें भर आईं। गोलू कितना बदल गया है। उसका मोटापा भी कम हो रहा था और बाहर की चीजें खाने की बजाय वह घर का खाना खाने लगा है। जो पैसे उसे मिलते हैं उनसे वह बीज खरीदता है।
सबसे ज्यादा हैरानी की बात थी कि गोलू जितनी सब्जियां तोड़ता, उतनी ही कुछ दिनों बाद फिर पैदा हो जातीं। एक दिन रात को उसके मम्मी-पापा ने उसे बगीचे में जाते देखा तो उसको छुप कर वे देखने लगे। उन्होंने देखा कि खरगोश, चूहे, गिलहरियां और बहुत सारे पक्षी मिट्टी में कुछ पाउडर छिड़क रहे हैं। एक परी उन्हें निर्देश देती जा रही थी कि कैसे क्या करना है। दोपहर में ही गोलू ने नए बीज मिट्टी में डाले थे। जल्दी से पौधे निकलें और सब्जियां उग जाएं, इसके लिए परी पाउडर का छिड़काव करवा रही थी । उस पाउडर की चमक बहुत निराली थी। एक सुबह, जब वह स्कूल जाने के लिए उठा तो उसकी मम्मी यह देखकर विस्मित रह गईं कि गोलू अब गोल- मटोल नहीं रहा था। गोलू के अब बहुत सारे दोस्त थे और कोई उसे मोटा कहकर चिढ़ाता भी नहीं था। वह अपनी हर चीज बांटकर खाता था। और हां, परी उससे मिलने अब भी आती है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब
