आधुनिकता के अंधी दौर में सामाजिक पतन की शुरुआत
नर्मदेश्वर प्रसाद चौधरी
इंसानों में जैसे- जैसे सोचने व समझने की प्रवृत्ति जागृत होती गई, वैसे – वैसे इंसानों के अंदर छल कपट की प्रवृत्ति भी जागृत होती गई। इंसान जब तक कंद मूल या आखेट पर निर्भर था, तब तक इंसान के अंदर उस तरह की पाशविक प्रवृत्ति नही थी। जबसे इंसान अन्न का उत्पादन करने लगा, उस समय से इंसान का वास्तविक स्वरूप ही बदल गया। जमीन को लेकर इंसानों में जंग लड़ने की स्थिति पैदा हो गई। ज्यादा से ज्यादा जमीन का टुकड़ा उसके कब्जे में रहे, वह अब इंसानों का ध्येय बनकर रह गया और जो आज तक कायम है। जैसे जैसे सभ्यता का विकास होते गया, तैसे- तैसे मनुष्य और असभ्य होता चला गया। आज हम अपने आप को बहुत आधुनिक और प्रगतिशील समझ रहे हैं लेकिन वास्तविकता ये है कि हम दिन प्रतिदिन गर्त में डूबते जा रहे हैं।
आज पूरे विश्व में अराजकता का माहौल है। आज रूस और यूक्रेन युद्ध में रोज न जाने कितने बेगुनाहों की जान जा रही है। उसी तरह गाजा पट्टी में कितने मासूमों की जान जा रही है। आज पूरा विश्व सभ्यता के किस मोड़ पर खड़ा है, इसको ध्यान में रखकर सोचना होगा। युद्ध के नित्य नए नए ठिकाने ढूंढे जा रहे हैं। रोज मानवता शर्मसार होती जा रही है। आज भारत में ही आये दिन कहीं न कहीं से दिल दहला देने वाली खबर आती है। प्रेम प्रसंग में रोज एक न एक कत्ल का खुलासा होता है। आजकल एक नया ट्रेंड चल पड़ा है कि प्रेमी के संग मिलकर पति की हत्या करना। दरअसल आज समाज किस दिशा में जा रहा है, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। आधुनिकता के इस दौर में हम समाज को कहाँ लेकर जा रहे हैं और इसका खामियाजा क्या होगा, इस पर गौर करने की जरूरत है।
किसी भी सिक्के के दो पहलू होते हैं और कौन सा पहलू उचित है और कौन सा अनुचित, इसका फैसला हमें ही करना होगा। आज नारियाँ स्वतंत्र होती जा रही हैं और ये अच्छी बात है लेकिन इसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं। समाज में व्यभिचार अपने चरम सीमा पर है। इसमें किसी एक पक्ष को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। इसके लिए स्त्री या पुरूष समान रूप से जिम्मेदार हैं।जब समाज स्वछंद होगा तो समाज में इस तरह की विकृति जरूर आएगी। इसलिए ये समाज को एक सुनिश्चित करना होगा कि हम अपने आप को कहाँ तक स्वछंद रखें। ऐसा कोई भी दिन नहीं गुजरता जिसमें कोई खून खराबे की खबर नहीं आती हो। आज इंसान इंसान का दुश्मन हो गया है। सच तो ये है कि आज मानवता नाम की कोई चीज ही नही रह गई। समाज की जो आज स्थिति है उसमें ये आकलन करना मुश्किल है कि हम सभ्य समाज में रह रहे हैं या असभ्य समाज में।
किसी जमाने में संस्कार नाम की कोई चीज हुआ करती थी ,आज उसका सर्वथा लोप हो चुका है। पहले पश्चिमी देशों में इसका खात्मा हुआ और धीरे धीरे पूर्व के देशों में इसका प्रभाव होता गया है। भारत भी इसके प्रभाव से अछूता नहीं रहा। दुनिया भर में भारत ही एकमात्र ऐसा देश था जहाँ कुछ नहीं तो संस्कारों की दुहाई अवश्य दी जाती रही है लेकिन दुर्भाग्यवश आज भारत में ही संस्कार अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है। दरअसल इसके जिम्मेदार हम स्वयं हैं। आजादी मिलने के बाद हम इतने उच्छृंखल हो गए कि हमें इसका ध्यान ही नहीं रहा कि आगे इसके दुष्परिणाम भी होंगे। हमने अपने बच्चों की परवरिश में ढील देनी शुरू कर दी। गार्जियनशिप का रोल ही खत्म हो गया। आज बच्चे न अपने माँ – बाप की सुनते हैं और न शिक्षकों की । इसका नतीजा ये हो रहा है कि बच्चों में अनुशासन नाम की कोई चीज ही नहीं रह गई है। भौतिकता के क्षेत्र में हम दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की अवश्य कर रहे हैं लेकिन अपने अच्छे संस्कारों को पीछे छोड़ते जा रहे हैं।
दरअसल हम आधुनिकता की कीमत चुका रहे हैं। एक तरफ तो हम मंदिर- मस्जिद भी जाते हैं वहीं दूसरी ओर वहाँ से क्या लेकर समाज में जाते हैं, इसका आपको पता ही नही रहता। मंदिर- मस्जिद केवल धार्मिक स्थल ही नहीं है अपितु उन जगहों से आपको अच्छे इंसान बनने की सीख मिलती है लेकिन शायद ही कोई व्यक्ति इस बात को समझता होगा। आज दुनिया में बहुत सी लड़ाइयां ही धर्म के नाम पर लड़ी जा रही हैं। अगर लोगों में धार्मिक सहिष्णुता हो जाये तो आधी दुनिया की लड़ाई ही खत्म हो जाये। उसी तरह दैनिक जीवन मे शुचिता पैदा हो जाये तो समाज में व्याप्त व्यभिचार स्वतः खत्म हो जाएगा।
दरअसल इंसान को केवल अपने जज्बात पर काबू पाने की आवश्यकता है। ये काम असंभव नही है। बच्चों को अगर शुरुआत से ही नैतिकता का पाठ पढ़ाया जाए तो इन समस्याओं का समाधान मुमकिन है। इसके पूरे विश्व को सामाजिक स्तर पर काम करना होगा। ये एक दिन में नहीं हो सकता है लेकिन एक दिन अवश्य हो सकता है। इसके लिए समाज को दृढ़ प्रतिज्ञ होना होगा। आज विश्व को युद्ध की जरूरत कदापि नहीं है। आज पूरे विश्व को विस्तारवादी नीति को छोड़ना होगा। रूस और चीन को सबसे पहले इस नीति पर कार्य करना होगा। दरअसल भारत को विश्व में अमेरिका और रूस की तरह अग्रणी राष्ट्र बनकर उभरना होगा। हमें परमाणु क्षमता और अत्याधुनिक हथियारों से लैस होना पड़ेगा। जबतक भारत सशक्त नहीं होगा, तबतक विश्व में शांति सम्भव नहीं है।
विश्व में एक जिम्मेदार राष्ट्र का सशक्त होना जरूरी है। एक समय था जब अमेरिका की तूती बोलती थी लेकिन आज ट्रम्प के आने के बाद अमेरिका की मिट्टी पलीद हो चुकी है। अब उसकी विश्व में कोई सुनने वाला नहीं है। यूक्रेन एवं रूस के युद्ध को मिनटों में खत्म करवाने का दावा टाँय- टाँय फिस्स हो गया। इजराइल और हमास के बीच के युद्ध को नहीं रुकवा सका। पाकिस्तान और भारत के बीच युद्ध रुकवाने की बात भी ट्रम्प का बड़बोलापन साबित हुआ। अलास्का में क्या हुआ, ये जग जाहिर है। इसलिए अब अमेरिका का विश्व में कोई मोल नहीं रह गया है और ट्रम्प अपने बाकी के कार्यकाल में अमेरिका की और मिट्टी पलीद करेगा। भारत को इसी कालखंड में अपने आप को कूटनीतिक स्तर पर एक प्रमुख राष्ट्र के रूप में स्थापित करना होगा। आज हमें रूस और चीन के साथ अपने संबंधों को और मजबूत करना होगा। अमेरिका का टैरिफ गया तेल लेने। इससे हमें डरने की जरूरत नही है। इस सबके लिए भारत की कूटनीति काफी कारगर साबित हो रही है।
