
बीते कुछ सालों में जमीन से ज्यादा समंदर दुनिया के कई बड़े दशों के बीच मतभेद का मुद्दा बना हुआ है. कहा जाता है कि जिसने समंदर पर राज कर लिया उसके लिए जमीन पर राज करना आसान है. शायद यही वजह है कि बीते कुछ सालों में चीन, दक्षिण चीन सागर, हिंद महासागर और प्रशांत महासगार में अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश में जुटा है. उधर, रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग में भी पुतिन का ब्लैक सी पर बड़ा फोकस है. इस बीच अब भारत भी समंदर को लेकर ऐसी योजनाओं के साथ आगे बढ़ रहा है जिसने भारत के दो बड़े दुश्मन चीन और पाकिस्तान में टेंशन पैदा कर दी है. अब जरा भारत की इस योजना को विस्तार से समझिए. भारत के समंदर में बड़ी योजनाओं में से एक है- कारवार नेवल बेस. भारत के कर्नाटक जिले में स्थित कारवार नेवल बेस 11,000 एकड़ के इलाके में फैला है. दावा किया जा रहा है कि, आने वाले समय में यह एशिया का सबसे बड़ा नेवल बेस बनने जा रहा है. यह नेवल बेस युद्धपोतों को सहायता देने और उनके रख-रखाव के लिए बनाया जा रहा है. इस नेवल बेस पर भारतीय विमानवाहक पोत, 30 युद्धपोत और सबमरीन तैनात किए जा सकेंगे. बता दें कि, भारत की नौसेना में जल्द शामिल होने वाले विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत कारवार नेवल बेस पर तैनात रहेगा.
बीते कुछ महीनों में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह कई बार इस नेवल बेस का दौरा कर चुके हैं. बीते 24 मई को भी राजनाथ सिंह इस बेस पर पहुंचे थे और इसके निर्माण कार्य की समीक्षा भी की थी. इस नेवल बेस पर एयरबेस भी बनाया जा रहा है ताकि यहां पर फाइटर जेट्स भी उतारा जा सके. विशेषज्ञ मानते हैं कि हिंद महासागर में चीन की मौजूदगी और उसके विस्तार पर लगाम लगाने में यह बेस बड़ी मदद करने वाला है. इसी तरह भारत श्रीलंका में हंबनटोटा पोर्ट, मालदीव में माराओ पोर्ट, बांग्लादेश में चटगांव पोर्ट पर अपने कंट्रोल बढ़ाने का प्लान पर तेजी से काम कर रहा है. हिंद महासागर को भारत की चौखट समझा जाता था, लेकिन अब वैश्वीकरण के इस दौर में इस पर दबदबे की कोशिशें तेज हो गई हैं. साल 2013 से चीनी पनडुब्बियां साल में दो बार आती हैं और यह अजीब पैटर्न लगातार जारी है. हिंद महासागर की अहमियत आप ऐसे भी समझिए कि समंदर का ये इलाका हमेशा से वैश्विक महाशक्तियों के निशाने पर रहा है. इसका एक कारण ये भी है कि समंदर का ये इलाका बड़ी मात्रा में प्राकृतिक संसाधनों जैसे तेल, खनिज, और मछलियों से भरपूर है. इतना ही नहीं, दुनियाभर के कारोबार का बड़ा हिस्सा इसी समुद्री रास्ते से होकर गुजरता है. ऐसे में चीन के बढ़ते प्रभाव के बीच भारत के लिए भी यह जरूरी है कि वो इस इलाके में अपने दबदबे को कायम रखे.
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