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अब ‘पश्चिम’ बंगाल नाम जारी रखने का कोई मतलब नहीं, जब कोई ‘पूर्व बंगाल’ है ही नहीं – Mamata Banerjee

Mamata Banerjee In Bardhaman

जो लोग हल्के मूड में विलियम शेक्सपियर के नाटक का जाना माना डायलॉग नाम में क्या है का हवाला देते हैं उन्हें यह प्रश्न पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ( CM Mamata Banerjee) से जरूर पूछना चाहिए. ममता बनर्जी चाहती हैं कि उनके राज्य का नाम बदल दिया जाए. उन्होंने इसके लिए केंद्र सरकार को कई बार अनुरोध भेजा है, जिसमें पश्चिम बंगाल का नाम बदलकर बांग्ला रखने की मांग की गई है. गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने मंगलवार को पुष्टि की कि केंद्र को इस संबंध में अंग्रेजी, हिंदी और बांग्ला सहित सभी भाषाओं में पश्चिम बंगाल का नाम बांग्ला करने का अनुरोध प्राप्त हुआ है.

हालांकि, उन्होंने इस मामले पर एक सवाल के जवाब में संसद में इस पर ज्यादा जानकारी नहीं दी. उन्होंने साफ नहीं किया की क्या केंद्र सरकार ममता बनर्जी की मांग को मान लेगी. उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि इसके लिए संविधान में संशोधन की जरूरत पड़ेगी.

भारत में अक्सर राज्यों के नाम बदले जाते रहे हैं

यह पहली बार नहीं है, जब किसी राज्य सरकार ने अपने प्रदेश का नाम बदलने की मांग की है. यह पहले कई बार किया जा चुका है. कुछ राज्यों के नाम भारत की आजादी के तुरंत बाद बदल दिये गये- कुछ कठिन नाम आसान करने के लिए तो कुछ मजबूरियों के कारण. यूनाइटेड प्रोविंस का नाम बदलकर उत्तर प्रदेश कर दिया गया जबकि उसका संक्षिप्त नाम यूपी ही रहा. त्रावणकोर और कोचिन की रियासतों को मिला कर नया नाम केरल दिया गया.

मुस्लिम बहुल पश्चिम पंजाब जब पाकिस्तान का हिस्सा बन गया तब भारत के पूर्व पंजाब का नाम बदलकर पंजाब हो गया. बॉम्बे को दो राज्यों में विभाजित किया गया. एक का नाम बदलकर महाराष्ट्र और दूसरे का गुजरात हो गया. हालांकि, किसी ने यह सोचने की जहमत नहीं उठाई कि बंगाल के साथ पश्चिम को जारी रखने की क्या जरूरत है जब पूर्व बंगाल अब अस्तित्व में ही नहीं है. क्योंकि आजादी के वक्त वह हिस्सा पूर्वी पाकिस्तान बन गया था, जो बाद में एक नया राष्ट्र बांग्लादेश बना.

मद्रास 1969 में बना तमिलनाडु

आजादी के बाद भी कुछ राज्यों के नाम प्रांतीय सरकारों की मांगों के आधार पर बदले गए. मद्रास 1969 में तमिलनाडु बन गया और मैसूर 1973 में कर्नाटक बन गया. 2000 में उत्तर प्रदेश को विभाजित कर उत्तरांचल बनाया गया और 2006 में उसका नाम उत्तराखंड नाम कर दिया गया. नाम बदलने वाला अंतिम राज्य उड़ीसा है, जो 2011 में ओडिशा बन गया जहां की भाषा उड़िया है.

ममता बनर्जी ने चार बार की पश्चिम बंगाल का नाम बदलने की मांग

ममता बनर्जी की पश्चिम बंगाल का नाम बदलने की मांग 11 साल से पूरी नहीं हो पायी है. मगर ममता दीदी को निराश करने के लिए अकेले केंद्र की नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. 2011 में पहली बार पश्चिम बंगाल में सत्ता में आने के तुरंत बाद ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल का नाम बदलकर पश्चिम बंगा करने के लिए केंद्र को चिट्ठी लिखी. केंद्र में तत्कालीन मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने इस अनुरोध को ठुकरा दिया.

2014 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद उन्होंने अपनी मांग फिर से दोहराई. अगस्त 2016 में पश्चिम बंगाल विधानसभा ने राज्य का नाम बदलने और इसे तीन नाम देने का प्रस्ताव पास किया- अंग्रेजी में Bengal, बांग्ला भाषा में बांग्ला और हिन्दी में बंगाल. मोदी सरकार ने इस मांग को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इस नाम पर आम सहमति नहीं है क्योंकि ममता बनर्जी वाम मोर्चा, कांग्रेस पार्टी और भाजपा को विश्वास में लेने में विफल रही हैं.

पश्चिम बंगाल का नाम बांग्ला रखने का था प्रस्ताव

ममता बनर्जी ने हार नहीं मानी और जुलाई 2018 में पश्चिम बंगाल विधानसभा ने बांग्ला नाम रखने का प्रस्ताव पारित किया. केंद्र ने 2019 में इसे फिर से बिना कोई स्पष्टीकरण दिए खारिज कर दिया. केंद्र का कहना था कि इसके लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता पड़ेगी. अब ममता बनर्जी ने उसी नाम को रखने के लिए केंद्र से एक बार फिर से सिफारिश की है और केंद्र ने फिर से वही पुराना रुख अपनाया है. हालांकि ममता बनर्जी की इस मांग को औपचारिक रूप से अब तक खारिज नहीं किया गया है.

पश्चिम बंगाल का नाम बदलने के खिलाफ क्यों है बीजेपी?

भाजपा का पश्चिम बंगाल का नाम बदलने के प्रयासों को रोकने का एक स्पष्ट कारण यह हो सकता है कि पार्टी खुद राज्य को एक तरफ उत्तर बंगाल और दूसरी तरफ दार्जिलिंग की पहाड़ियों को मिलाकर दो अलग-अलग राज्य बनाना चाहती हो. तीसरा राज्य पश्चिम बंगाल खुद हो जाएगा. दूसरा कारण यह हो सकता है कि पिछले कुछ वर्षों में भाजपा तेजी से पश्चिम बंगाल में दूसरी सबसे शक्तिशाली पार्टी के रूप में उभरी है. वह अब भी पश्चिम बंगाल को जीतने की मंशा रखती है. हालांकि अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के बाद भी बीजेपी ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को पछाड़ नहीं सकी है. 2021 के विधानसभा चुनावों में ममता बनर्जी के सत्ता में आने के बाद भाजपा कुछ भी ऐसा नहीं करेगी जिससे उन्हें फायदा हो.

पश्चिम बंगाल का नाम बदलना क्यों चाहती हैं ममता बनर्जी?

ममता बनर्जी खुद पश्चिम बंगाल नाम को बदलने को लेकर असमंजस में हैं. अंत में बांग्ला नाम देने से पहले वह तीन अलग-अलग भाषाओं में बंगा समेत कई नाम केंद्र को भेज चुकी हैं. जब कोई पूर्व बंगाल नहीं है तो पश्चिम बंगाल नाम रखने का कोई तर्क नहीं है. टीएमसी का राज्य का नाम बदलने को लेकर तर्क हास्यास्पद है. उन्होंने एक बार यह कह कर इसे सही ठहराया था कि पश्चिम बंगाल भारत के सभी राज्यों की सूची में सबसे नीचे आता है. अंग्रेजी का डब्ल्यू अक्षर अल्फाबेट में बिल्कुल नीचे आता है. सम्मेलनों में ए, बी, सी, डी के बाद डब्ल्यू से पश्चिम बंगाल का नाम काफी नीचे आता है. जब पश्चिम बंगाल के प्रतिनिधियों के बोलने का वक्त आता है तब तक आधा हॉल खाली हो चुका होता है. लोग थक कर जा चुके होते हैं.

यदि पश्चिम बंगाल बांग्ला या बी से शुरू होने वाला राज्य बन जाए तो वहां के प्रतिनिधियों को आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और असम के बाद चौथे राज्य का वक्ता बनने का मौका मिलेगा. वर्णानुक्रम के मुताबिक उसे बिहार से पहले आने का अधिकार मिल जाएगा. यह नहीं कहा जा सकता है कि मोदी सरकार केवल इसलिए ममता बनर्जी को फायदा नहीं पहुंचने देना चाहती क्योंकि वह एक विपक्षी शासित राज्य है. उत्तरांचल का नाम बदलकर उत्तराखंड तब किया गया था जब केंद्र में भाजपा सत्ता में थी और राज्य में कांग्रेस का शासन था.

उड़ीसा का नाम बदलकर हुआ ओडिशा

इसी तरह उड़ीसा का नाम बदलकर ओडिशा तब किया गया जब केंद्र में कांग्रेस पार्टी सत्ता में थी और नाम बदलने का सुझाव बीजू जनता दल (बीजद) ने दिया था जो 2000 से राज्य में सत्ता में है. ओडिशा के मौजूदा मुख्यमंत्री नवीन पटनायक कांग्रेस पार्टी के सहयोगी कभी नहीं रहे. ममता बनर्जी का राज्य का नाम बदलने के कुतर्कों को अलग रख दिया जाए, तो नाम बदलने की वाजिब वजह में एक तर्क तो जरूर समझ में आता है कि बंगाल नाम के साथ दिशा – पश्चिम – की क्या जरूरत है?

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