कानपूर: यूपी के कानपुर में बेटी के युद्धग्रस्त यूक्रेन से लौटने पर भी एक मां की खुशी अधूरी रह गई. बेटी के पहुंचने पर मां ने उसे गले लगाया. उनके चेहरे पर बेटी के लौटने की खुशी थी, लेकिन आंखों में बेटे के यूक्रेन में ही छूटने का गम भी था. उन्होंने रुंधे गले से बेटी से अपने बेटे को लेकर पूछा कि तुम तो आ गई बेटी, भाई कहां छोड़ आई. उसको साथ क्यों नहीं लाई. भाई कैसे छूट गया. ये सवाल पूछते-पूछते उस मां की आंखें आसूंओं से भर आईं.
यूक्रेन से लौटी लड़की का नाम अक्षरा यादव है. चार दिन पहले खारकीव स्टेशन पर जब अक्षरा और उसका भाई आरव यादव ट्रेन पर बैठने को तैयार थे. तभी बम के धमाकों के बीच ऐसी भगदड़ मची कि भाई-बहन स्टेशन पर ही बिछड़ गए. बहन तो किसी तरह वहां से पोलैंड बॉर्डर पहुंची फिर रविवार को कानपुर पहुंच गई है. लेकिन भाई उस दिन ऐसा बिछड़ा कि आज तक यूक्रेन में फंसा हुआ है और शायद इसलिए बेटी के आने पर भी मां की वो सुकून नहीं मिला है, दोनों बच्चों के आने पर मिलता.
दरअसल, कानपुर के ग्वालटोली की रहने वाली डॉक्टर मधुरिमा सिंह के बेटी अक्षरा और बेटा आरव यादव दोनों खारकीव मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस कर रहे थे. दोनों एक साथ पढ़ाई करने गए थे. एक ही साथ रहते थे. जब यूक्रेन-रूस की लड़ाई शुरू हुई तो उन्होंने वहां से निकलने की काफी कोशिश की लेकिन निकल नहीं पाए, क्योंकि सारा यातायात बंद हो गया था.
भारत सरकार की तरफ से भी लोगों को एडवाइजरी दी गई कि आप जल्द से जल्द किसी भी तरह खारकीव छोड़ दें. यह दोनों भाई बहन भी जान-जोखिम में डालकर किसी तरह के कई किलोमीटर पैदल चलकर खारकीव स्टेशन पहुंचे थे. वह दोनों स्टेशन पर ट्रेन में चढ़ने वाले थे कि तभी स्टेशन के बाहर बम धमाके होने लगे. इससे स्टेशन पर एकदम भगदड़ मच गई. इसी भगदड़ में दोनों भाई बहन बिछड़ गए.
अक्षरा यादव का कहना है कि भगदड़ में भाई ने मुझे तो ट्रेन में चढ़ा दिया लेकिन खुद स्टेशन पर रह गया और बिछड़ गया. अक्षरा ट्रेन से पहले पोलैंड बॉर्डर पहुंची. वहां उसका फोन स्विच ऑफ हो गया. इस वजह से उसकी भाई आरव से बात नहीं हो पाई. 3 दिन बाद अक्षरा को पोलैंड बॉर्डर से फ्लाइट के जरिए दिल्ली लाया गया, जहां से वह रविवार को अपने घर पहुचीं है. अक्षरा को भी अपने भाई के छूटने का गम है. वहीं, मां-बाप की भी खुशी अधूरी है क्योंकि बेटा वहां बॉर्डर पर फंसा है.
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