जलवायु परिवर्तन के कारण पक्षियों की आबादी में गिरावट
पक्षी हमारे ग्रह के सबसे कोमल और सुंदर जीवों में से एक हैं। ये न केवल हमारे पारिस्थितिकी तंत्र का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं, बल्कि मानव जीवन और संस्कृति में भी उनका विशेष स्थान है। भारत में तो पक्षियों को धार्मिक, सांस्कृतिक एवं पारिस्थितिकी दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। सुंदर पंख और मधुर आवाज वाले खूबसूरत पक्षियों को देखने का एक अलग ही आनंद होता है, जो हमें प्रकृति के अप्रतिम सौंदर्य का अनुभव कराता है। फूलों के चारों ओर भिनभिनाने वाले ‘हमिंग बर्ड’ से लेकर हवा में हजारों फुट की ऊंचाई पर उड़ने वाले चील तक, हर पक्षी विलक्षण प्रतीत होता है, जो रेगिस्तान से लेकर वर्षा वन तक के विशाल वातावरण में स्वयं को ढाल लेते हैं और जीवित रहने की असाधारण क्षमता दिखाते हैं। कुछ पक्षी सालभर में हजारों मील की तय करते हैं, तो कुछ जटिल घोंसले बनाते हैं और कुछ भोजन खोजने के लिए रचनात्मक रणनीतियां बनाते हैं। पक्षियों की यह अविश्वसनीय विविधता और अनुकूलनशीलता हमें पृथ्वी पर जीवन की विशाल समृद्धि की याद दिलाती है।
पक्षी खाद्य श्रृंखला का अहम हिस्सा हैं, जो प्राकृतिक कीटनाशक के रूप में कार्य करते हैं और पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखने में बड़ी भूमिका निभाते । वे परागण और बीज फैलाने में अहम भूमिका अदा करते जिससे जैव विविधता बनी रहती है। विभिन्न प्रकार के पक्षी विभिन्न प्रकार के आवास में रहते हैं और वे पारिस्थितिकी तंत्र को समृद्ध बनाते हैं। पक्षियों को प्रायः ‘बायोइंडिकेटर’ के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जिसका अर्थ है कि उनका स्वास्थ्य और उनकी जनसंख्या पर्यावरण की स्थिति दर्शाती है। पक्षी प्रजातियों में गिरावट प्रायः संकेत देती है कि प्रदूषण, आवास की कमी अथवा जलवायु परिवर्तन जैसे कारकों के कारण पारिस्थितिकी तंत्र तनाव में है दुनियाभर में पक्षियों की कई प्रजातियों की आबादी में तेजी से गिरावट आ रही है। नतीजतन, हमारे आसपास की दुनिया शांत होती जा रही है। प्रकृति में अजीब-सा सन्नाटा छा है।
विश्व में पक्षियों की दस हजार से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से भारत में ही पक्षियों की तेरह सौ से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं। चिंता का कारण यह है कि वनों के कटाव, शहरीकरण और कृषि विस्तार के कारण पक्षियों के प्राकृतिक आवास तेजी से नष्ट । इसके अलावा जलाशयों तथा ‘वेटलैंड्स’ (आर्द्रभूमि) के सूखने से जलपक्षियों की संख्या में भी भारी गिरावट आई है। शहरीकरण, औद्योगिक विकास और कृषि विस्तार के कारण जंगल, आर्द्रभूमि, घास के मैदान तथा अन्य प्राकृतिक आवास शहरों, सड़कों और कृषि भूमि में तब्दील हो रहे हैं। जैसे-जैसे पक्षियों के प्राकृतिक आवास सिकुड़ते जाते हैं, पक्षी आवश्यक घोंसले बनाने के स्थान, भोजन स्रोत और प्रवास गलियारे खो देते हैं, जिससे उनकी जनसंख्या में गिरावट आती है।
जलवायु परिवर्तन के कारण भी पक्षियों के प्रजनन और खाद्य उपलब्धता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। वायु और जल प्रदूषण पक्षियों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन रहा है। बढ़ता तापमान, समुद्र के जलस्तर में वृद्धि और चरम मौसमी घटनाएं भी पक्षियों के जीवन चक्र को प्रभावित कर रही हैं। कई पक्षियों का अवैध शिकार भी उनकी प्रजातियों को संकटग्रस्त प्रजाति में परिवर्तित कर रहा है। कुछ पक्षियों का शिकार उनके चमकीले पंखों अथवा शरीर के अन्य अंगों के लिए किया जाता है, जिससे उनकी आबादी में घटती जाती है। पक्षियों की कई प्रजातियां मानव स्वास्थ्य के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जैसे परागण में मदद करने वाली मधुमक्खियां इन प्रजातियों के
विलुप्त होने से मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। *इंटरनेशनल यूनियन फार कंजर्वेशन आफ नेचर’ (आइयूसीएन)
की ‘रेड लिस्ट’ के अनुसार, विश्व में चौदह सौ से भी ज्यादा पक्षी प्रजातियां संकट में हैं। भारत में भी करीब सौ प्रजातियों को संकटग्रस्त श्रेणी में रखा गया है। ‘बर्ड लाइफ इंटरनेशनल’ की नवीनतम रपट के अनुसार, विश्व में पक्षियों की 48 फीसद प्रजातियों की आबादी में गिरावट आई है। भारत में भी स्थिति चिंताजनक है, जहां कई सामान्य पक्षी प्रजातियों की आबादी में 80 फीसद तक की कमी देखी गई है। ‘आइयूसीएन रेड लिस्ट’ में भारत के कई पक्षियों को लुप्तप्राय या उलट संकटग्रस्त श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है।
कार्नेल लैब आफ आनिंथोलाजी के अनुसार, पिछले दशक में गौरैया की आबादी में 20 फीसद से अधिक कमी आई है, जो शहरीकरण और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग के कारण हो सकती है। गौरैया जैसी सामान्य प्रजाति, जो . जो पहले हमारे बाग-बगीचों और घरों में आम थी, अब नगण्य होती जा रही है। इसके पीछे शहरीकरण और आर्द्रता में तथा कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग मुख्य कारण हो सकते हैं। भारतीय गिद्धों की संख्या में तो पिछले दो दशकों में 95 फीसद तक की कमी आई है। ‘ग्रेट इंडियन बस्टर्ड’ प्रजाति गंभीर संकटग्रस्त श्रेणी में पहुंच चुकी । प्रवासी पक्षी साइबेरियाई सारस तो भारत में अब लगभग विलुप्त हो चुके हैं। हालांकि कई योजनाएं लागू करते हुए पक्षियों के संरक्षण के लिए प्रयास किए जा हैं। कई पक्षी प्रजातियों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित किया गया है
केंद्र सरकार द्वारा नई ‘राष्ट्रीय पक्षी संरक्षण योजना’ भी शुरू की गई है। राष्ट्रीय जैव विविधता कार्य योजना पक्षियों के संरक्षण के लिए विशेष प्रावधान करती है। भारत में सौ से अधिक पक्षी अभयारण्य स्थापित किए में भरतपुर का केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, चिल्का झील और न प्रमुख हैं। जलपक्षियों की गए हैं, जिनमें भरत सुंदरबन जैवमंडल संरक्षण की पहल की जा रही है। इन प्रयासों के सुरक्षा लिए आर्द्रभूमि के बावजूद पक्षियों का अवैध शिकार और व्यापार, जलवायु परिवर्तन के कारण प्रवासी पक्षियों मार्ग में बाधा, प्लास्टिक प्रदूषण, कीटनाशकों और रसायनों का प्रभाव आदि पक्षियों के संरक्षण के मार्ग में बड़ी चुनौतियां हैं। पक्षियों की आबादी में गिरावट एक गंभीर पर्यावरणीय चिंता है, जो पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है और अगर समय रहते आवश्यक कदम नहीं उठाए गए, तो कई पक्षी प्रजातियां लिए विलुप्त हो सकती हैं। इसलिए हमें पक्षियों के संरक्षण 1 के लिए न केवल सरकारी प्रयासों का समर्थन करना चाहिए, बल्कि व्यक्तिगत स्तर पर भी पक्षियों संरक्षण के लिए प्रयास करने चाहिए। घरों के आसपास पक्षियों के लिए जल और भोजन की व्यवस्था करना, वृक्षारोपण
हमेशा को बढ़ावा देना तथा पक्षियों के संरक्षण लिए जागरूकता फैलाना जैसे कदम उठाना आज समय की बड़ी मांग है। अगर हम चाहते हैं कि हमारी आने वाली पीढ़ियां भी पक्षियों के कलरव का आनंद ले सकें, तो हमें अभी ठोस कदम उठाने होंगे। इसके लिए हम अपने घरों में भी छोटे-छोटे ‘बर्ड फीडर’ लगा सकते हैं। इसमें अनाज, बीज, फल और गुड़ से बनी चीजें रखी जा सकती हैं। ग्रीष्मकाल में मासूम परिंदों की प्यास बुझाने के लिए पानी के कटोरे रख सकते हैं और अधिक से अधिक पेड़ लगा सकते | अगर हम समय रहते जागरूक नहीं हुए तो वह दिन दूर नहीं, जब हमारी सुबह पक्षियों की मधुर चहचहाहट से पूरी तरह वंचित हो जाएंगी।
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विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्राचार्य शैक्षिक स्तंभकार गली कौर चंद एमएचआर मलोट