कामकाजी महिलाओं की चुनौतियां
वैश्वीकरण के दौर में शुरू किए गए आर्थिक और तकनीकी परिवर्तनों के फलस्वरूप महिलाओं की तुलना में पुरुषों को आमतौर पर अपेक्षाकृत अधिक प्रशिक्षण और रोजगार के अवसर मिले। इसके कारण अधिकतर महिलाओं को अनौपचारिक क्षेत्र या आकस्मिक श्रमबल में प्रवेश करना पड़ा। भारत में कुल कामगारों में से असंगठित क्षेत्र में कार्यरत कार्यबल का लगभग 33 फीसद हिस्सा महिलाओं का है। यह स्पष्ट है कि अनौपचारिक क्षेत्र भारत में बड़ी संख्या में महिला श्रमिकों को आजीविका प्रदान करता है।
भारतीय परिवारों पर आर्थिक दबाव दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। देश में जीवन निर्वाह लागत, बच्चों की शिक्षा के लिए खर्च और आवास संपत्तियों की लागत में तेजी से वृद्धि हुई है, जिससे हर परिवार को अपनी आय बढ़ाने के 5 तरीके तलाश करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। इस कारण देश में रोजगार मामले में महिलाओं की सहभागिता बढ़ी है। भारत सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय की रपट के अनुसार असंगठित क्षेत्र में महिलाओं के स्वामित्व वाले प्रतिष्ठानों की संख्या वर्ष 2022-23 के 22.9 फीसद से स बढ़ कर वर्ष 23-24 में 26.2 फीसद हो गई। श्रम मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के नए सदस्यों में महिलाओं की हिस्सेदारी बीते सितंबर के 26.1 फीसद से बढ़ कर अक्तूबर में 27.9 फीसद हो गई। यह वृद्धि कोई उल्लेखनीय नहीं कही जा सकती।
कामकाजी महिलाओं के संबंध में ‘एनएसओ’ की वर्ष 2024 में जारी रपट के अनुसार शहरों में कुल 52.1 फीसद महिलाएं और 45.7 फीसद पुरुष कामकाजी हैं। मगर ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं नौकरियों में अब भी पुरुषों से पीछे हैं, हालांकि पिछले छह वर्षों में उनकी हिस्सेदारी दोगुनी हो गई और यह 5.5 फीसद से 10.5 फीसद तक पहुंच गई। शहरी कामकाजी महिलाओं में से 52.1 फीसद नौकरीपेशा, 34.7 फीसद स्वरोजगार में तथा 13.1 फीसद अस्थायी श्रमिक हैं। ‘इंडिया एट वर्क’ की रपट 2024 अनुसार इस साल नौकरियों के लिए कुल सात करोड़ आवेदन आए, जिनमें 2.8 करोड़ महिलाओं के थे। यह संख्या 2023 की तुलना में 20 फीसद अधिक है। देश के रोजगार परिदृश्य में बदलाव आ रहा है और कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है। रपट के अनुसार 2023 के मुकाबले 2024 में महिला पेशेवरों के औसत वेतन में भी 28 फीसद की वृद्धि हुई। इस सब के बावजूद संगठित क्षेत्र में असंगठित क्षेत्र की तुलना में महिलाओं के कम रोजगार का मुख्य कारण कम कौशल और कम वेतन पर काम करने के लिए तैयार होने की मजबूरी है। देश में पुरुषों और महिलाओं के बीच वेतन में लगभग 25.4 फीसद का अंतर है। अधिकांश असंगठित क्षेत्र के व्यवसाय जैसे मिट्टी के बर्तन बनाने, कृषि, निर्माण कार्य, हथकरघा, घरेलू सेवाएं और घरेलू उद्यमों में महिलाएं कार्यरत हैं। असंगठित क्षेत्र में महिला श्रमिक आमतौर पर बहुत कम वेतन पर बीच-बीच में काम करने वाले आकस्मिक श्रमिक के रूप में कार्यरत हैं। उनको अत्यधिक शोषण का सामना करना पड़ता है, जिनमें काम की लंबी अवधि अस्वीकार्य कार्य परिस्थितियां और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बनी रहती हैं।
भर्ती एजंसी ‘टीमलीज सर्विसेज’ की एक रपट के अनुसार भारत में दस में से पांच महिला कर्मचारियों ने किसी न किसी तरह के लैंगिक भेदभाव का अनुभव किया है। यह भेदभाव वेतन, कार्य के घंटे, अवकाश, अवसर और पदोन्नति के मामले में है। इस सर्वेक्षण के अनुसार, गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चों वाली महिलाओं को भी भर्ती प्रक्रिया के दौरान और नौकरी की संभावनाओं के लिए प्रतिस्पर्धा करते समय नुकसान उठाना पड़ता है। कामकाजी महिलाएं हों या अपना कारोबार करने वाली, उन्हें काम पर तुलनात्मक रूप से अधिक चुनौतियों का सामना सिर्फ इसलिए करना पड़ रहा है, क्योंकि वे महिला हैं। यह धारणा कि महिलाएं केवल विशिष्ट कार्यों के लिए ही उपयुक्त हैं। यहां तक कि बेहतर योग्यता वाली महिलाओं के समांतर समान योग्यता वाले पुरुष उम्मीदवार को वरीयता दी जाती है। भले ही कानून भर्ती और पारिश्रमिक में समानता की घोषणा करता है, लेकिन इसका हमेशा पालन नहीं किया जाता है। एक ही काम के लिए महिलाओं और पुरुषों को अलग-अलग वेतन मिलता है। देश में संगठित और असंगठित कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी में सुधार के लिए समय-समय पर प्रयास भी किए गए हैं। इसके लिए बने कार्यबल ने अगस्त 2024 में अपनी सातवीं बैठक में इस बात पर जोर दिया कि कार्यबल में महिलाओं की सक्रिय और सार्थक भागीदारी को बढ़ावा देना सामाजिक न्याय के साथ-साथ जीवंत, नवोन्मेषी और समतामूलक समाज के निर्माण के लिए आवश्यक आर्थिक और रणनीतिक अनिवार्यता है। टास्क फोर्स ने देखभाल अर्थव्यवस्था को एक ऐसे क्षेत्र के रूप में पहचाना, जिसमें महिला कार्यबल भागीदारी बढ़ाने की महत्त्वपूर्ण संभावना है। टास्क फोर्स ने उद्योग संघों आग्रह किया कि वे आर्थिक गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए जागरूकता पैदा और नियोक्ताओं को प्रोत्साहित करें।
महिला रोजगार की स्थिति को संतोषजनक बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी समय-समय पर प्रयास हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि हमारी प्राथमिक अवधारणा यह है कि महिलाओं के लिए समान अवसर होने चाहिए। महिलाओं को रोजगार में समान अवसर दिलाने की दृष्टि से वर्ष 2006 के अंतरराष्ट्रीय श्रम सम्मेलन में इस हेतु प्रस्ताव में इसकी पुष्टि भी की गई। महिलाओं के अधिकारों की स्थिति पर आयोग ने कई अहम मुद्दों पर सिफारिशें की हैं, जिनका लक्ष्य पुरुषों और महिलाओं के लिए समान अधिकार के सिद्धांत को व्यवहार में लाना है।
देश में कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न ( रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के माध्यम से महिलाओं को उनके कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए प्रावधान किए गए हैं। मातृत्व लाभ (संशोधन) विधेयक, 2016 में संगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं को मौजूदा 12 सप्ताह से बढ़ा कर 26 सप्ताह का मातृत्व अवकाश देने का प्रावधान किया गया। यह कानून दस या उससे अधिक कर्मचारियों वाले सभी व्यवसायों पर लागू है। अन्य कानूनों जैसे कारखाना अधिनियम, समान मजदूरी अधिनियम, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम आदि में भी यथास्थान महिलाओं के हितों की सुरक्षा के लिए प्रावधान किए गए हैं।
देश के संगठित और असंगठित क्षेत्र में महिलाओं के रोजगार की गुणवत्ता में सुधार की दृष्टि से सरकार व्यावसायिक संगठनों और अन्य सभी संबंधित पक्षकारों के मिले-जुले प्रभावी प्रयासों से ही महिलाओं के रोजगार अवसरों में वृद्धि और कार्यदशाओं में सुधार संभव है। उनको घर का काम भी करना पड़ता है। ऐसी महिलाओं को अंशकालिक रोजगार के समुचित अवसर मिलने चाहिए। जो महिलाएं पढ़ी-लिखी हैं वे आनलाइन पोर्टल के जरिए अपना काम शुरू कर सकती हैं जैसे शिक्षण, कपड़ा व्यवसाय, फास्ट फूड जैसे केक, पिज्जा बर्गर आइसक्रीम आदि का कारोबार वे घरों से सिलाई, कढ़ाई, मेहंदी, पापड़, अचार और टिफिन सेंटर जैसे गृह कार्यों से अपना व्यवसाय शुरू कर सकती हैं। परंपरागत लघु उद्योगों को नई तकनीक से शुरू कर महिलाओं को ज्यादा अवसर दिए जा सकते हैं।