स्वर्ग की मुद्रा
पुण्य, सद्कर्म,आत्मिक धर्म आदि ऐसी स्वर्ग की मुद्रा है जो आत्मा को पावित करने के लिये अनमोल है । हम अपने देश से बाहर कईदूसरे देश में जाते है तो वहाँ की मुद्रा में अपनी मुद्रा को परिवर्तित करवाते हैं । ठीक इसी तरह हम अगले भव जाने की मुद्रा को संग्रहितकरने की और प्रयासरत रहे । आडंबर और दिखावे में हम कब तक जिएँगे , इन्हें तज़,जीवन में सादापन लाना चाहिए। जहाँ तक वस्त्रऔर स्तर आदि की बात हैं तो हमे महापुरुषों के दर्शन का व्यवहारिक पक्ष उनकी जीवनशैली से मिल सकता है जिसका अनुसरण करकेहम सादगीपूर्ण जीवन का आचरण स्वयं में ला सकते हैं ।हमें जो जीवन प्राप्त हुआ है उसको टिकाये रखने के लिए हम खाएं, खाने केलिए न जीयें । भोजन भी करें तो ऐसा जो स्वास्थ्य व साधना दोनों के अनुकूल हो| हमारा आनंद भोजन में नहीं भजन में हो | भोजनहितकर, मितकर व रिटकर हो व उसे हम शांति के साथ करें | स्तर-स्तर की अंधाधुँध दौड़ में जीवन की हर अंधी चाह-आकाँक्षा, के पीछेना भाग हम अपना जीवन न गँवाये ।सो यहॉं की इस भव की सम्पदा को हम सद्कर्मों में लगाये । पुण्य कमाये और उसका फल आगे केभव स्वर्ग आदि में पाये । उसके लिये सरल सादगी पूर्ण स्वस्थ जीवन को जी उत्सव से मना आगे के भव के लिये स्वर्ग की मुद्रा कोसंग्रहित करे ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)