तेजी से बढ़ रही है शिक्षित घरेलू सहायिकाओं की मांग
दोहरी आय वाले परिवारों की बढ़ती संख्या और दैनिक काम के लिए बाहरी सहायता पर बढ़ती निर्भरता के कारण शिक्षित घरेलू सहायक- सहायिकाओं (मेड) की मांग कई गुना बढ़ गई है। भर्ती मंच वर्कइंडिया की रपट में यह जानकारी दी गई।
भर्ती मंच के मुताबिक, विभिन्न शिक्षा स्तर वाले घरेलू सहायकों की भूमिकाओं में 2024 में सालाना आधार पर तेज वृद्धि हुई। इस दौरान 10वीं कक्षा से कम शिक्षा प्राप्त लोगों की मांग में 112 फीसद की वृद्धि हुई। स्नातकों के लिए मांग में 102 फीसद, 10वीं पास के लिए 94 फीसद और 12वीं पास उम्मीदवारों के लिए असाधारण रूप से 255 फीसद की वृद्धि हुई। रपट में कहा गया कि 12वीं पास और स्नातक मेड की संख्या में तेज वृद्धि दर्शाती है कि नियोक्ता बच्चों की देखभाल, बुजुर्गों की देखभाल या घरेलू कामकाज संभालने जैसी भूमिकाओं के लिए अधिक शिक्षित व्यक्तियों की तलाश कर रहे हैं।
रपट के मुताबिक, पढ़ी-लिखी सहायिका होने से घरेलू कामकाज में भी काफी आसानी होती है। खासतौर से उन घरों में जहां बच्चे होते हैं। पढ़ी-लिखी सहायिका होने पर घरेलू कामकाज के अलावा बच्चों पर भी ध्यान देने में आसानी होती है। खासतौर से बच्चों के गृह कार्य से संबंधित कामकाज में आने वाली दिक्कतें काफी हद तक दूर होती हैं। इसके अलावा छोटी-मोटी व्यावहारिक परेशानियों से निजात मिलती है। वर्कइंडिया के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) और सह-संस्थापक नीलेश डूंगरवाल ने बताया कि भारत का घरेलू रोजगार बाजार एक महत्त्वपूर्ण बदलाव के दौर से गुजर रहा है। अनुभवी कर्मचारियों की बढ़ती मांग और आवेदनों में तेजी, एक विकसित होते घरेलू रोजगार पारिस्थितिकी तंत्र और नौकरी चाहने वालों के सामने आने वाली आर्थिक जरूरत, दोनों को दर्शाती है। रपट कहती है कि इससे घरेलू कामगारों के कौशल विकास का अवसर भी पैदा होता है, क्योंकि पेशेवर रूप से प्रशिक्षित और शिक्षित मेड की मांग सभी योग्यता स्तरों पर बढ़ती जा रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि कानून बनाने पर विचार करें: सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू कामगारों के अधिकारों की रक्षा के लिए कोई अखिल भारतीय कानून नहीं होने पर चिंता जताते हुए केंद्र सरकार को घरेलू कामगारों के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून बनाने पर विचार करने का निर्देश दिया। पीठ ने कहा, घरेलू कामगार एक आवश्यक कार्यबल हैं, बावजूद इसके उनके अधिकारों की रक्षा के लिए कोई
अखिल भारतीय कानून नहीं है। इसलिए वे नियोक्ताओं और एजेंसियों के शोषण का शिकार होते हैं। पीठ ने श्रम एवं रोजगार मंत्रालय व संबंधित मंत्रालयों को घरेलू कामगारों पर ऐसे कानून की व्यवहार्यता पर विचार के लिए विशेषज्ञ समिति बनाने का निर्देश दिया। इस पर छह सप्ताह के भीतर रिपोर्ट पेश करनी होगी। पीठ ने कहा, समिति की रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद केंद्र सरकार को घरेलू कामगारों की गरिमा और सुरक्षा को बनाए रखने के लिए कानून लाने के लिए प्रयास करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला घरेलू कामगार को गलत तरीके से बंधक बनाने और तस्करी के आरोपों से संबंधित एक आपराधिक अपील का निपटारा करते हुए ये बातें कही। पीठ ने कहा कि घरेलू कामगारों के शोषण का सीधा कारण कानून नहीं होना है। भारत में घरेलू कामगार काफी हद तक असुरक्षित हैं और उन्हें कोई व्यापक कानूनी मान्यता नहीं है। यही वजह है कि उन्हें कम वेतन, असुरक्षित वातावरण में काम करना पड़ता है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब
