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लेख

कहानी: आदर्श मत बनना तनु

admin
Last updated: मार्च 14, 2025 8:17 पूर्वाह्न
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कहानी: आदर्श मत बनना तनु

सब के मन की करती तनु से उस की सास ने कहा कि बहू अपने मन की किया करो. यह सुन तनु पसोपेश में पड़ गई और फिर.
शाम के वक्त 7 बजे थे. अनिल ने औफिस से आते ही बैग सोफे पर पटका और फ्रेश होने चला गया. वहीं बैठी उस की मां माया उस के लिए चाय बनाने के लिए उठ गई. उन्होंने टाइम देखा, बहू तनु भी औफिस से आने ही वाली होगी, यह सोच कर उस के लिए भी चाय चढ़ा दी. चाय बनी ही थी कि डोरबैल बजी. तनु भी आ गई थी. माया को प्यार से देख कर मुसकराई. माया ने स्नेहपूर्वक कहा, ”बेटा, तुम भी फ्रेश हो जाओ, चाय तैयार ही है.”
माया के पति टी वी देख रहे थे. वे औफिस से जल्दी आते हैं. माया ने बहू व बेटे को चाय पिलाई. अनिल ने झींकते हुए कहा, ”तनु, आज सुबह सब्जी में कितना नमक था, बहुत गुस्सा आया मुझे. और एक तो यह गट्टे की सब्जी क्यों बनाई? मुझे जरा भी पसंद नहीं. मां,आप ने भी तनु को नहीं बताया कि मैं यह सब्जी नहीं खाता.

”तनु को पसंद है. तुम्हारी शादी को 5 महीने ही हुए हैं, तनु को इस सब्जी का शौक है और इस सब्जी को बनाने में उस ने सुबहसुबह बहुत मेहनत की है. कभी तुम उस की पसंद का खाओ, कभी वह तुम्हारी पसंद का खाए. और सब्जी तो बहुत ही अच्छी बनी थी, मुझे भी नहीं आती ऐसी बनानी.”
माया ने देखा, तनु का चेहरा उतर गया था. नयानया विवाह था. माया सोचने लगी, एक पत्नी को पति से मिली तारीफ़ से जितनी ख़ुशी मिलती है, उतनी किसी और की तारीफ़ से नहीं, वह भी जब नयानया विवाह हो. दुनिया नएनए खुमार से भरी ही तो लगती है. आजकल के कपल्स के बीच रोमांस, मानमनुहार के लिए समय ही नहीं. माया हैरान होती हैं अपने बेटेबहू का लाइफस्टाइल देख कर. दोनों के पास सबकुछ है. बस, समय नहीं है. उस पर भी अब अनिल अपनी नवविवाहिता के हाथ की बनी सब्जी की तारीफ़ करने के बजाय कमी निकाल रहा था. हां, नमक ज्यादा था, हो जाता है कभी कभी. पर सुबह के गए अब मिले हैं, तो इस बात को क्या तूल देना. खैर, उन की लाइफ है, बीच में ज्यादा बोलना ठीक नहीं.
अनिल उस के बाद भी चिढ़ा ही रहा. माया जानती हैं, उन के फूडी बेटे को खानेपीने में कोई कमी बरदाश्त नहीं. कितनी बार उन से भी उस की बहस होती ही रही है. इकलौता बेटा है,खूब नखरे दिखाता है. पर अब तनु क्यों सहे इतने नखरे. मैं मां हूं, मैं ने सह लिए. ये बेचारी क्यों सहे. सुबह जातेजाते कितनी हैल्प करवाती है. वे मना करती रह जाती हैं पर तनु जितना हो सकता है, उतने काम करवा कर जाती है. तनु कहती है, ”मां, मुंबई में सफर करने के बाद आ कर तो हिम्मत नहीं होती कुछ करने की, कम से कम सुबह तो कुछ करने दें.”
माया मेड के साथ सब काम मैनेज कर ही लेती हैं पर तनु सुबह कुछ न कुछ कर ही जाती है. तीनतीन टिफ़िन होते हैं, काफी काम होता है. मेड सब के जाने के बाद ही आती है. माया एक पढ़ीलिखी हाउसवाइफ हैं. खाली समय वे टीवी में नहीं, किताबों के साथ बिताती हैं. उन की खूब पढ़ने की आदत है. खुली सोच वाली शांतिपसंद महिला हैं वे. तनु को खूब स्नेह देती हैं, वह भी उन्हें खूब मान देती है. माया के पति और बेटा कुछ आत्मकेंद्रित से हैं, तनु सब को समझने की कोशिश में लगी हुई है. वे जानती हैं कि तनु भी मुंबई की ही लड़की है, उस का मायका भी मुंबई में ही है. पेरैंट्स और एक छोटी बहन सब कामकाजी हैं.
लौकडाउन के बाद औफिस शुरू हुए ही थे. अभी तीनों को हफ्ते में 3 दिन ही जाना पड़ रहा था. बाकी दिन सब वर्क फ्रौम होम करते थे. ऐसे में सब को खूब परेशानी हो रही थी. टू बैडरूम फ्लैट था. लिविंगरूम में रखे डाइनिंग टेबल पर सुधीर काम करते थे. अनिल के रूम में एक टेबल थी जिस पर वह बैठ जाता था. तनु कभी इधर कभी उधर अपना लैपटौप उठाए घूमती रहती. एक दिन झिझकती हुई बोली, “मां, आप के रूम में बैठ कर एक कौल कर लूं, अर्जेंट है, बौस से बात करनी है?”

”और क्या, आराम से बैठो, तब तक मैं किचन में कुछ कर लेती हूं.”
”थैंक्स मां, अनिल तो एक मिनट के लिए भी अपनी टेबल नहीं देता.”

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माया को दुख हुआ, बोलीं, ”जब मन हो, मेरे रूम में बैठ कर काम कर लेना.”

तनु की मीटिंग लंबी चली. बैड पर गलत पोस्चर में बैठेबैठे उस का कंधा अकड़ गया. माया ने जब सब को खाने के लिए आवाज दी, सब ने थोड़ी देर के लिए लैपटौप बंद किया. माया ने कहा, ”तनु को बहुत परेशानी हुई बैड पर बैठेबैठे, उसे भी एक टेबल चाहिए. तनु, या तो तुम यहीं पापा के साथ बैठ जाया करो या अनिल अपनी टेबल इसे मीटिंग के लिए तो दे दिया कर.”
सुधीर ने कहा, ”मुझे कोई दिक्कत नहीं है, बेटा. पर मुझे बहुत फ़ोन करने होते हैं, तुम डिस्टर्ब तो नहीं होगी?”

”मुझे अपनी डैस्क पर ही आराम मिलता है,” अनिल ने कहा, ”दो दिन की ही तो बात होती है, कहीं भी एडजस्ट कर लो.”

तनु चुप ही रही. माया बहुत कुछ सोचने लगी थीं. कुछ समय और बीता. एक दिन तनु औफिस से थोड़ा पहले आ गई थी. माया फोन पर अपनी फ्रैंड से एक कोने में ही बैठ कर बात कर रही थीं. तनु जो मूवी देख रही थी,वह ख़तम होने ही वाली थी. अनिल जैसे ही औफिस से आया, उस ने कहा, “अरे तनु, इसे बंद कर दो, बेकार मूवी है और मेरे लिए बढ़िया सी चाय बनाओ.” जुर अनिल ने टीवी बंद कर दिया.
तनु का अपमानित चेहरा देख माया फोन पर फिर बात न कर सकीं, उन्होंने जल्दी ही फोन रख दिया पर चुप रहीं. बेटे पर बहुत गुस्सा आया पर रोजरोज उसे बहू के सामने टोकना शायद उसे अच्छा न लगता.
माया तनु को देखती, हैरान होती कि यह क्यों हर बात में एडजस्ट किए जा रही है जैसे अपनी किसी चीज में कोई इच्छा हो ही न. वही पहनती जो अनिल को पसंद था, वही बनाती जो घर में सब को पसंद हो, कोई भी बात हो, न अपनी राय देती,न पसंद बताती. माया सोचती यह तो अभी नवविवाहिता ही है, कहां हैं इस के सारे शौक, एक मूवी भी अपनी पसंद की नहीं देखती. अनिल जब चाहे,रिमोट ले कर चैनल बदल दे. वह कुछ भी न कहती. बस, मुसकरा कर रह जाती.

एक दिन सब घर से ही काम कर रहे थे. लंच के बाद माया थोड़ी देर आराम करती थीं. उस दिन लेट कर उठीं तो देखा, सुधीर डाइनिंग टेबल पर हमेशा की तरह फोन पर हैं. अनिल के रूम से जोरजोर से हंसने की आवाज़ आई, तो माया ने झांका, अनिल किसी दोस्त से गपें मार रहा था. किचन में जा कर देखा, तनु फर्श पर लैपटौप लिए बैठी थी और किसी मीटिंग में होने का इशारा माया को दिया.
माया चुपचाप अपने रूम में आ कर बैठ गईं. पौन घंटे बाद तनु उन के कमरे में आई और लैपटौप एक तरफ रख, उन के बैड पर पड़ गई. उस के मुंह से एक आह सी निकल गई, इतना ही कहा, “ओह्ह, मां, फर्श पर तो कमर अकड़ गई.”
माया आज और चुप न रह पाईं, बोलीं, ”एक बात करनी है तुम से.”

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”हां मां, कहो न.”

”तुम किचन में नीचे बैठ कर काम क्यों कर रही थीं?”

”अनिल ने कहा, वह अपने रूम में ही रहेगा, उसे वहीं आराम मिलता है.”

”तुम ने उसे बताया नहीं कि तुम्हारी जरूरी मीटिंग है.”

”बताया तो था, पर वह बोला, मैं कहीं और बैठ कर अपना काम कर लूं. आप सो रही थीं, तो मैं किचन में ही बैठ गई.”
”सुनो तनु, अपनी बात क्यों नहीं कहतीं तुम?”
”मां, मैं चाहती हूं कि मैं एक अच्छी पत्नी और बहू बन कर रहूं. मेरे मम्मीपापा में जब किसी बात पर झगड़ा होता था तो मुझे अच्छा नहीं लगता था. मैं सोचा करती थी कि मैं अपनी शादी के बाद घर में कोई झगड़ा कभी होने ही नहीं दूंगी.”
माया मुसकराईं, ”तुम्हारे मम्मीपापा झगड़े के बाद नौर्मल हो जाते थे न?”
”हां मां, पर मुझे उन के झगड़े अच्छे नहीं लगते थे.”
”देखो तनु, तुम आदर्श पत्नी या बहू बनने की कोशिश भी न करना, उस से अच्छा होगा कि एक आम बहू या पत्नी बन कर अपने मन की भी कभी करो. सिर्फ हमारे मन से नहीं, कभी अपने मन से भी चलो और अगर कभी किसी से झगड़ा हो भी जाए तो डरना कैसा, हम साथसाथ रहते हैं, कितनी देर तक झगड़ा चलेगा. थोड़ा मनमुटाव कभी हो भी जाए तो रिश्ते टूट थोड़े ही जाते हैं. मैं तो कहती हूं कि उस के बाद का प्यार बड़ा प्यारा होता है.

“कोई बहस न हो, कोई झगड़ा न हो, इसी कोशिश में लगी रहोगी, तो खुद के लिए कैसे जियोगी, कितने दिन ऐसे खुश रह लोगी, मन ही मन कुंठित होती रहोगी. फिर जो नुकसान होगा उसे कौन भरेगा. कल बच्चे हो जाएंगे, फिर तो उन की ही इच्छाएं सर्वोपरि हो जाएंगी. अपने लिए कब जियोगी? फिर आदर्श मां बनने के चक्कर में पड़ जाओगी.
“अपनी बात कहना, फिर उसे पूरा करना सीखो. मैं ने भी यह गलती की है, हमेशा वही किया जो सास, ससुर, ननद, देवर, सुधीर, अनिल को पसंद रहा. जो हमें खुद को अच्छा लगता था, वह किया ही नहीं. अब इतनी उम्र बीतने पर अफ़सोस होता है कि अपने लिए तो मैं जी ही नहीं

“सो, आदर्श बनने के चक्कर में बिलकुल मत पड़ो. मैं तो कहती हूं कि मुझ पर भी गुस्सा आए, तो मुझ से भी लड़ लो. मन मार कर जीने से फ़ायदा नहीं होगा, कुछ नहीं मिलेगा. उलटे, दिनोंदिन कमजोर होती जाओगी.‘’

तकिये के सहारे लेटी तनु मंत्रमुग्ध सी अपनी सासुमां का चेहरा देखे जा रही थी, सोचने लगी, ये कैसी सासुमां हैं जो मुझे इस तरह से समझा रही हैं, ये तो निराली ही हैं.
माया ने पूछा, ”अब किस सोच में हो?”
”मुझे तो लगता था आप खुश होंगी कि मैं घर में सब का ध्यान रखती हूं, जो कुछ कहा जाता है, मैं वही करती हूं. मैं सच में एक आदर्श बहू और पत्नी बनना चाहती थी, मां.”
”कोई जरूरत नहीं है, मुझे एक आम इंसान अच्छा लगता है जो खुद भी जीना चाहे, जिस की खुद भी इच्छाएं हों और जो उन्हें भी पूरा करना चाहे. वैसे भी, हमारा समाज पुरुषप्रधान है, एक लड़की ही क्यों आदर्श बनने के चक्कर में अपना जीवन होम करे. अनिल और सुधीर क्यों नहीं करते ऐसा कुछ कि हमारी इच्छाओं के लिए अपनी इच्छाएं कभी छोड़ दें, कभी तो कहें कि चलो, आज वह बनाओ जो तुम्हें पसंद हो. ऐसा तो कभी नहीं होता.
“कभी उस की सुनो, कभी वह तुम्हारी सुने, पर ऐसा होता नहीं है. ऐसे में दुख होता है. और मैं यह बिलकुल नहीं चाहती कि मेरी बहू कभी अपना मन मारे. आज भी मेरे मन में कितनी कड़वी यादें हैं जबजब मैं अपने मन का नहीं कर पाई. एक उम्र के बाद तुम्हें यह दुख नहीं होना चाहिए कि कभी तुम ने अपने मन का कुछ किया ही नहीं. आम इंसान की तरह ही जी लो, बहूरानी,‘’ कहतेकहते माया ने तनु के सिर पर हाथ रख दिया. तनु ने उन की हथेली चूम ली. इतने में अनिल अंदर आया, वहीं पलंग पर वह भी लेट गया, बोला, ”तनु, आज मंचूरियन और फ्राइड राइस बनाओगी?

”नहीं अनिल, आज नहीं, फिर कभी.”
अनिल को जैसे एक झटका लगा, उठ कर बैठ गया, ”क्या?”
”हां, मीटिंग किचन में फर्श पर बैठ कर अटेंड की है, कमर अकड़ गई. आज शौर्टकट मारूंगी, बस, पुलाव ही बना सकती हूं, बहुत थक गई हूं. मां ने भी आज सुबह से बहुत काम कर लिया है, ठीक है न?”

विवाह के बाद यह पहला मौका था जब तनु ने किसी बात के लिए मना किया था. अनिल कभी पत्नी का मुंह देखता, कभी मां का. फिर उस ने इतना ही कहा, ”ठीक है, जैसी तुम्हारी मरजी.”
अनिल का कोई फोन आ गया तो वह बाहर निकल गया. माया ने तनु का हाथ सहलाते हुए कहा, ”शाबाश, यह हुई न बात.”
सुधीर ने अंदर आते हुए पूछा, ”किस बात की शाबाशी दी जा रही है, भाई, हमें भी बताओ.”

”पर्सनल बात है सासबहू की, पापा,” हंसती हुई कह कर तनु रूम से बाहर निकलने लगी, माया ने उसे देखा, तो उस ने माया को आंख मार दी. माया जोर से हंस पड़ीं. सुधीर कुछ समझे नहीं, बस, माया के मुसकराते चेहरे को देखते रह गए.

विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब

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