फागुन माह आतेही प्रकृति मैं एक नई उमंग के सथसुहावना मौसम आ जाता है। आमके कोमल कोमल पत्तों की डाली फल देने के लिए बोराने लगती है। महकी महकी सुगंध प्रकृति में मनोहारी छटा बिखेर स्थित देती है ।जो मानव जाति में नई उमंग उत्साह पैदा कर देती है। यही होली त्यौहार की पहचान बन जाती है। मथुरा की होली रंग अबीर बिखरते हुए मथुरा की होली चर्चा बन जाती है। रंग अबीर उड़ाते हुए बच्चों आदमियों की टोली मथुरा के होली गेट से द्वारिका धीश मंदिर तक जाती है तो बाजार की दुकानों के समने पड़ी टीनों के नीचे रंग अबीर से बचने के लिएआदमी औरतेबच्चेआ जाते है फिर भी रंग अबीर की बाछारों से बच नहीं पाते है। किशोर कांत टीन की भीड़ के पास खड़ा था। तभी उसकी एक युवती पर निगाह जा पड़ी। देखते ही किशोर कांत उस युवती को पहचान गया । युवती के पास जाकर बोला -अरे शकुंतला तुम यहा कैसी ? मथुरा की होली देखने आई हो । युवती ने पलटते हुए देखा और बोली- मैं यही डैंपियर नगर कॉलोनी मैं रह रही हूं। तुम यहां कैसे किशोर कांत आए हो,?किशोर ने जवाब दिया। मैं भी मथुरा के कृष्णा नगर कॉलोनी में मे रह रहा हूं और यहां पंजाब नेशनल बैंक में मैनेजर हूं। जब शकुंतला और कृष्णकांत आपस बात कर रहे थे ।तभी कुछ युवकों ने आकर उन पर रंग अबीर डाल दिया। शकुंतला बच्चों की हरकत से नाराज होने लगी। तभी कृष्णा कांत ने कहा –स्कूली लाइफ में तुम तो जमकर होली खेलती थी। अब रंग अबीर से यह कैसा परहेज करने लगी ।इतना कहकर किशोर कांत ने एक युवक से अबीर लेकर शकुंतला के गालों पर अबीर लगाते हुए गुलालअबीर की पूरी थैली को शकुंतला के ऊपर उडेर दियाऔर हंसते हुए होली की शुभकामनाएं दी ।शकुंतला दुखी स्वर से बोली – तुम्हें पता नहीं है कि मैं विधवा हूं ।अभी 1 साल पहले मेरे पति प्रोफेसर कमल श्रीवास्तव की दुर्घटना में मौत हो गई है । मैं जब घर पहुंचूंगी तो लोग क्या कहेंगे ? किशोर कांत ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा –क्या विधवा को जीने का हक नहीं। शकुंतला बोली -विधवा औरत को वास्तव में कोई जीने का अधिकार नहीं होता है ।समाज की निगाहों में मैं होली नहीं खेल सकती हू । कृष्ण कांत ने शकुंतला से कहा -अगर तुम्हें मैं पसंद हूं तो मैं तुमसे शादी करना चाहूंगा । तुम्हारे माता-पिता सास ससुर से बात करूंगा। शकुंतला बोली– क्या तुम्हारे माता
पिता इस शादी को स्वीकार करेंगे। पहले छोटी सी बात सक्सेना श्रीवास्तव पर शादी करने से मना कर दिया था। क्या वह मान जाएंगे ? कृष्णा कांत बोला -अब यह पुरानी बातें हो गई है। सक्सेना श्रीवास्तव में आपसमे शादी होने लगी है । कायस्थ एकता लाने के लिए रूढ़वादी बातें सब खत्म कर दी गई है। आज कल तुम क्या माता-पिता के पास रहती हो या सास ससुर के पास? शकुंतला बोली ~मैं अपने माता-पिता के पास रह रही हू ।क्योंकि सास ससुर चाहते थे कि मेरे पति की नौकरी के एबज मैं उनके लड़के को नौकरी मिले। लेकिन मेरे माता-पिता ने यह नहीं चाहा और मुझे पति की नौकरी की एबज मुझे प्रोफेसर की नौकरी मिल गई ।तभी से ससुराल वाले नाराज है। किशोर कांत बोला- मैं अभी तुम्हारे घर चलूंगा ।तुम्हारे माता-पिता की अपने माता-पिता से बात कराऊंगा। मेरे माता-पिता की स्वीकृति मिलने के बाद तुमसे धूमधामसे शादी करूंगा । मुझे विश्वास
है ।मेरे माता-पिता मेरे हित में मेरी बात मानेंगे। कृष्णकांत शकुंतला केसाथ शकुंतला के घर पर पहुंचा और शकुंतला के माता पिता को पूरी बात बताई। शकुंतला के माता-पिता से बातकरने के बाद अपने माता-पिता को पूरी बातें बताई। फिर शकुंतला के माता-पिता से अपने माता-पिता से बातें कराई। दोनों परिवारों की राजा बंदी से शादी होना तय हो गई। शकुंतला के परिवार मेखुशी छा गई।
कुदरत की लीला कुछ अजीब होती है। शकुंतला कृष्णकांत की हनुमान मंदिर में वैदिक रूप ढंग से दोनों परिवारों के बीच बर माला पहन कर शादी हो गई । शादी की शुभ मुहूर्त निकाल कर शादी धूमधाम से करना सुनिश्चित हुआ। कृष्णकांत के पिता रमा कांत सक्सेना ने जहां पहले कृष्णकांत की शादी होना तय हुई थी उस परिवार को पूरी बात बताते हुए शादी कैंसिल की। जब बात बताई तो लड़की परिवार के मुखिया पिता सुमेर श्रीवास्तव ने धमकी देते हुए कोर्ट कचहरी की बात कही फिर कोतवाली में रिपोर्ट कर दी ।शहर कोतवाल ने दोनों परिवारों को बुलाया और दोनों परिवारों से बात कर के पूरी जानकारी
ली । फिर सुमेर सिंह श्रीवास्तव को समझाया और कहां -एक विधवा की शादी मे अडचन मत डालिए ।विधवा को अच्छाजीवन जीने के लिए सहयोग करिए। तुम्हारी लड़कीकी कहीं ना कहीं अच्छे घर में शादीहुय जाएगी। लड़की के पिता सुमेर श्रीवास्तव ने कोतवाल की बात को नहीं माना और कोर्ट में मुकदमा दायर कर दिया। जज ने शहर ्कोतवाल की रिपोर्ट के आधार पर अपनी दया सहानुभूति दिखाते हुए जज ने मुकदमा खारिज कर दिया । सुमेर श्रीवास्तव ने हाई कोर्ट में मुकदमा दायर कर दिया। जब यह बात शकुंतला के पिता को पता चली तो वह बहुत चिंतित हो उठे और सोचने लगे अब शकुंतला की शादी होना कठिन है। शकुंतला ने अपने पिता को समझाते हुए कहा- एक बार सुमेर सिंह श्रीवास्तव लड़की के पता तथा उनकी लड़की से बात करके देखी जाए । लड़की के पिता एक बार बात न माने लेकिन उनकी लड़की को अवश्य दया आएगी। औरत औरत की पीड़ा को आवश्य समझती है। मैं सुमेर सिंह श्रीवास्तव के घर जरूर जाऊंगी और उनसे तथा उनकी लड़की से बात अवश्य करूंगी। शकुंतला ने सुमेर सिंह के घर जाकर लड़की और उसकेपिता से अपनी दर्दभरी कहानी बताई की कष्णा कांत साथ-साथ पढ़ते थे और हमदोनों प्यार हो गया था लेकिन कृष्णकांत के पिता श्रीवास्तव में शादी करने को तैयार नहीं हुए क्योंकि मैं श्रीवास्तव थी और कृष्णा कांत सक्सेना थे। बाद में मेरे पिताजीथीने मेरी शादी एक कॉलेज केप्रोफेसर से दी मैं सुख दे जिंदगी की रही थी। तभी मार्ग दुर्घटना में मेरे पति कीमौत हो गई। जब शकुंतला अपनी करुणा कथा कह रही थी तभीआंखों में आंसू भरकर बीच मेसुमेर सिंह श्रीवास्तव बोल उठे बेटे तुमभी मेरी बेटी समान हो। तुम्हारी शादी कृष्णकांत से ही होगी। इतना सुनकरशकुंतला आंखों मेंखशी के आसू भर कर बोली आपमेरे पिता के समान है अच्छा हो आपही मेरा कन्यादान करें मैं जीवन भर आपकी बेटी के समान रहकर अपना फर्ज पूरा करूंगी। विधवा शकुंतला की अपनात्वभारी बातें सुनकर सुमेर सिंह श्रीवास्तवकी बेटी कल्पना शकुंतला से चिपट गई और बोली तुम मेरी बड़ी बहन हो पिताजी कोपहले ही समझा चुकी थी और पिताजी को अपने दिल की बात बता दी।एक नारी की पीड़ा एक नारी अच्छी तरह से जान सकती है अगर नारी संवेदना शीलहै।
विधवा शकुंतला श्रीवास्तव खुशी खुशी अपने घर आई और अपने माता-पिता को पूरी बात बताई घर में खुशी फैल गई नवदुर्गा मे शुभमुहूर्त शुभ महूर्त निकाल कर कृष्णकांत सक्सेना और शकुंतला श्रीवास्तव की शादी बड़े धूमधाम से हुई ।दोनों परिवारों के माता-पिता रिश्तेदार शुभचिंतक सम्मिलित हुए सुमेर सिंह और उनकी बेटी कल्पना
भी आई। सभी ने वर वधु को आशीर्वाद दिया। शकुंतला श्रीवास्तव दुल्हनिया हो गई।
ब्रजकिशोर सक्सेना (किशोर इटावी)
कचहरी रोड मैनपुरी