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दुनिया में आज भी अजूबा है पोलाही जनजाति, बेटा अपनी मां को बना लेता है पत्नी, जानिए ऐसे ही 15 विचित्र राज़

admin
Last updated: अक्टूबर 1, 2022 9:34 अपराह्न
By admin 6 Views
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वर्ल्ड न्यूज. दुनिया में तमाम जनजातियां(tribes) पाई जाती हैं, जिनकी जीवनशैली, खान-पान आदि हमारी दुनिया को हैरान करते हैं। ऐसी ही एक जनजाति इंडोनेशिया के गोरोन्तालो के माउंटेन में गहरे और घने जंगलों में रहती है। पोलाही जनजाति आज भी रहस्य बनी हुई है। इस जनजाति पर लगातार रिसर्च जारी हैं। ऐसे ही एक रिसर्च के जरिये जानते हैं, आखिर ये हैं कौन? पढ़िए

1. आपको जानकर ताज्जुब होगा कि इंडोनेशिया में जिन जनजातियों को आदिम यानी प्राचीन(primitive in Indonesia) माना जाता है पोलाही जनजाति(Polahi tribe) उनसे भी काफी पीछे है। कह सकते हैं कि मौजूदा बाहरी दुनिया से कोसों दूर। मतलब दूसरी अन्य आदिम जनजातियां अब जंगलों से निकलकर कुछ हद तक बाहरी जीवन में घुलने-मिलने लगी हैं, लेकिन पोलाही अभी भी इनसे दूर है।

2. इंडोनिशिया के गोरोन्तालो प्रांत(Gorontalo Province) की राजधानी और एक सिटी है गोरोन्तालो। पोलाही जनजाति यही के अंदरुनी जंगलों में निवास करती है। इनमें भाई-बहन, मां-बेटोंऔर पिता-बेटियों के साथ भी फिजिकल रिलेशन बनते हैं। यानी ये लोग इनब्रीडिंग ट्रेडिशन( tradition of inbreeding) को निभाते आ रहे हैं। मतलब ये लोग रक्त-संबंधियों से भी शादी करने को स्वतंत्र होते हैं। इनके बीच यह मैरिज सिस्टम डच औपनिवेशिक काल(Dutch colonial era) से चला आ रहा है। 

3. पोलाही जनजाति ने लाइफस्टाइल में बदलाव (घुमंतू) को एक जंगल से दूसरे जंगल में बदल दिया है। यानी वे सिर्फ एक जंगल से निकलकर दूसरे जंगल में शिफ्ट ही हुए हैं। वे अभी भी कपड़ों से फैमिलियर नही हैं। उन्हें नहीं पता कि कपड़े कैसे पहनते हैं? उनका कोई धर्म भी नहीं हैं। 

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4. पोलाही अपना पूरा जीवन-हर दिन, हर समय जंगल में बिताते हैं। केवल एक छोटी घास-फूस की एक टेम्परेरी झोपड़ी में समय गुजारते हैं। जिसमें दीवारों और दरवाजों जैसा कुछ नहीं होता। पोलाही दीवारों के बिना पत्तों पर भरोसा करते हैं।

5. अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पोलाही जनजाति आमतौर पर जंगली सूअर, हिरण और सांप का शिकार करते हैं। इसके अलावा वे प्रतिदिन भोजन पत्तियों, कंदों और जड़ वाली फसलों(tubers and root crops) का भी सेवन करते हैं। अगर उन्हे कुछ पकाना होता है, तो बांस की डंडियों को कंटेनर की तरह इस्तेमाल करते हैं। 

6. इनका भोजन बिना किसी मसालों(seasoning  spices) के 100% ऑरिनल होता है। यानी भोजन में  हल्दी, धनिया, मिर्च, जीरा, लौंग, इलायची, काली मिर्च, नमक आदि का इस्तेमाल नहीं करते। वजह, ये लोग मसालों से परिचित नहीं हैं।

7. इनके खाने पकाने की तौर-तरीका भी बेहद सरल है। ये चिमनी( fireplace) यानी जहां आग जलाई है, उसके ऊपर बांस की छड़ों( bamboo rods) पर सारी चीजें, जिन्हें पकाना हैं, (groceries) रख देते हैं। जब आग से जलकर बांस टूट जाता है, तब ये मानकर चलते है कि भोजन पक गया।

8. पोलाही के बारे में एक अन्य बात और दिलचस्प है कि इनकी ड्रेस कैसे तैयार होती है? जैसा कि हम जानते हैं कि इंडोनेशिया के सबसे पूर्वी प्रांत पापुआ में कुछ जनजातियां कोटेका(Koteka) को नग्नता कवर करने के लिए उपयोग करती हैं। तो पोलाही जनजाति अपने लंगोट के रूप में लकड़ी की बड़े पत्तों(wood biscuits) को रस्सी से बांधकर उपयोग करती हैं। महिलाएं भी इसी तरह के लंगोट पहनती हैं। पोलाही महिलाएं ब्रेस्टप्लेट यानी ब्रा(breastplate aka Bra) से फैमिलियर नहीं हैं। इसलिए ये महिलाएं अर्धनग्न(half naked) हैं। आपको बता दें कि कोटेका को होराम या लिंक गार्ड(horim or penis gourd) कहते हैं। इसे लिंग म्यान भी कहते हैं, जिसे पुरुष अपने लिंग( penises) को ढंकने के लिए पहनते हैं।

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9. रुचि की एक और अनूठी बात यह है कि पोलाही कैसे तैयार की जाती है। यदि हम जानते हैं कि पापुआ में कुछ जनजातियाँ कोटका को नग्नता के रूप में उपयोग करती हैं, तो पोलाही जनजाति अपने लंगोटी का उपयोग लकड़ी के बिस्कुट के बंधी रस्सी के पत्तों से करना पसंद करती है। महिलाओं द्वारा लंगोटी का भी उपयोग किया जाता है। वे ब्रेस्टप्लेट उर्फ ​​ब्रा से परिचित नहीं हैं। इसलिए महिलाएं अपने दैनिक पोलाही स्पेयर कनस्तर उर्फ ​​में अर्ध नग्न हैं।

10. जनजातियों में पोलाही का मैरिज सिस्टम सबसे यूनिक है। यह इंडोनेशिया में एकमात्र जनजाति हो सकती है, जो इनब्रीडिंग का पालन करती हैं। मतलब अगर किसी परिवार में बच्चे-महिला और पुरुष हैं, तो वे आपस में शादी कर सकते हैं, जबकि ये रिश्ते में भाई-बहन होते हैं। यहां तक कि मां भी अपने बेटे से शादी कर सकती थी और पिता अपनी बेटी से शादी कर सकता था।

11. एक स्टडी के अनुसार करीबी रिश्तेदारों से सेक्सुअल रिलेशन बनाने वालों से जन्मे बच्चे में जन्म दोष विकसित(birth defects) होने का खतरा बढ़ जाता है। अक्सर मनोवैज्ञानिक स्थितियों(psychological conditions) से पीड़ित होते हैं। जैसे कि सामाजिकता में कठिनाई( difficulty socializing), आत्मसम्मान मे कमी(low self-esteem), मानसिक विकार(psychotic disorders), अवसाद(depression), किसी हादसे को लेकर तनाव विकार(post-traumatic stress disorder) और सीमा रेखा व्यक्तित्व(borderline personality) यानी मानसिक बीमारी जो किसी व्यक्ति की भावनाओं को नियंत्रित करने की क्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित करती है। लेकिन इस जनजाति में ऐसा कुछ भी नजर नहीं आया है।

12. अगर इंडोनेशिया के गोरोंटालो प्रांत के जंगलों में रहने वाले पोलाही के लोगों के जीवन को देखें, तो शायद हम यह निष्कर्ष निकालेंगे कि यह सबसे अलग-थलग समुदाय है। यह कभी भी आधुनिक सभ्यता के संपर्क में नहीं आया है।

13. कहते हैं कि पहाड़ी जंगलों में निवास करने वाले पोलाही डचों द्वारा उपनिवेश( colonized by the Dutch) नहीं बनना चाहते थे। जब गोरोंटालो में इयाटो(King Eyato) राजा बने, तो उन्होंने उपनिवेशवाद के खिलाफ विद्रोह किया। हालांकि उन्हें जंगलों में भागकर अपनी जान बचानी पड़ी। चूंकि इनका अतीत बेहद कठिन दौर से गुजरा है, लिहाजा उन आघातों( past trauma) के कारण ये असामाजिक रवैया रखते हैं। यही कारण है कि उठान पोलाही से संबंधित रिसर्च लिट्रेचर अभी भी दुर्लभ है।

14. इतिहास में लिखा है कि डचों के खिलाफ लंबी लड़ाई के बाद किंग बिया( King Biya) को पराजय का सामना करना पड़ा था।1690 में डचों के कब्जे के बाद राजा बिया और उनके अनुयायियों को दक्षिणी अफ्रीका में सीलोन इस्नेनी में निर्वासित कर दिया गया। इस बीच बिया के दो अन्य योद्धा और इलतो मेंगिहिलंग अपिटलौ(mengihilang Apitalau) गायब हो गए। माना जाता है कि ये सभी सैनिकों के साथ जंगल में भाग गए और फिर पोलाही बन गए।

15. गोरोन्तालो, सुलावेसी द्वीप(Gorontalo, Sulawesi Island), पोलाही के अस्तित्व का बड़ा गवाह है। यह एक ऐसे निवासियों का एक समूह है, जिन्होंने डच औपनिवेशिक प्रशासन द्वारा लगाए गए करों से बचने के लिए 17वीं शताब्दी में अपने घर छोड़कर जंगल मे शरण ली थी। अब यह समुदाय समुद्र तल से 2,065 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बोलियोहुतो पर्वत श्रृंखला( Boliyohuto mountain range) के जंगलों में पीढ़ियों से प्रकृति में रह रहा है। पोलाही का शाब्दिक अर्थ है-भगोड़ा। समुदाय की आबादी पर कोई सटीक डेटा नहीं है, लेकिन इसके घटते रहने की भविष्यवाणी की गई है, क्योंकि समुदाय के कुछ सदस्यों ने स्थानीय ग्रामीणों के साथ मिलने या शादी करने का विकल्प चुना है। 

कलप्रिट तहलका (राष्ट्रीय हिन्दी साप्ताहिक) भारत/उप्र सरकार से मान्यता प्राप्त वर्ष 2002 से प्रकाशित। आप सभी के सहयोग से अब वेब माध्यम से आपके सामने उपस्थित है।
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