अहं किस बात का
अहं किस बात का
कुँए का मेंढक यही सोचता हैं की दुनिया उतनी ही बड़ी हैं और वह दुनिया के चक्कर लगा आया। यह उसके ज्ञान का अभाव हैं दुनिया तो बहुत बड़ी हैं एक से एक ज्ञानी, योग्य, धानाड्य यह पर हैं फिर में ही क्यों किस बात का मेरा किस बात का ??
अहंकार की टंकार से विनय विवेक नम्रता की विदाई हो जाती हैं और क्रोध की परिणिति होती हैं । अहंकार मनुष्य का शत्रु है। आचार्य हरीभद्र अनेक विशेषताओं के धनी थे उन्हें अपने बुद्धि पर भारी गर्व था किसी के द्वारा उच्चारित वाक्य या पद्य का अर्थ समझ में ना आने पर उनका अस्तित्व स्वीकार करने के लिए प्रतिज्ञा- बद्ध थे। साध्वी संघ की प्रवर्तिनी महत्तरा याकिनी संग्रहिणी गाथा का स्वाध्याय कर रही थी। उस गाथा का अर्थ न समझ आने के कारण उनका अहंकार टूट गया और उन्होंने
महत्तरा याकिनी को गुरु मानकऱ झुककर,विनम्र होकर ज्ञान प्राप्त किया। अहं जाति,कुल,बल,रूप और तप का भी हो सकता है। ज्ञान, लाभ, ऐश्वर्य का अहं भी आदमी को डूबो सकता है।
पर जागृत कर विवेक को,जो बच जाता है इस मोहपाश से
वही व्यक्ति सबके लिए श्रद्धेय, पूजनीय,वन्दनीय हो सकता है।
विनम्रता तो मोहिनी- मंत्र है, व्यक्ति उसके द्वारा सब को अपनी वश में कर लेता है, हर स्थान पर मान सम्मान एवं प्रेम पाता है किंतु अहंकारी व्यक्ति को कोई नहीं चाहता है। हमें कभी अपने पद, प्रतिष्ठा एवं धन पर अभिमान नहीं करना चाहिए क्योंकि जब संसार को छोड़कर जाते हैं तो अपने साथ कुछ भी नहीं ले जा सकते हैं केवल अच्छे कर्म ही साथ जाते हैं,इसलिए इन सभी सांसारिक विषयों पर घमंड करना नहीं करना चाहिए।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)