तकनीकी तबाही तबाही की बढ़ती आशंकाएं
विजय गर्ग
आज की दुनिया तकनीक की है। कंप्यूटर, इंटरनेट, कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे उपायों ने हमारा कामकाज कई मायनों में आसान किया है। कोविड महामारी के दौर में दुनिया ने देखा था कि इन सुविधाओं के कारण उसकी चाल में कोई बड़ा व्यवधान नहीं आया। मगर तकनीक पर निर्भरता का यह एक पहलू है दूसरा पहलू वह है जो 19 के सामने पेश हुआ। ‘माइक्रोसाफ्ट विंडोज’ पर जुलाई, 2024 को दुनिक 5 लाख कंप्यूटर एक दोषपूर्ण तकनीकी अद्यतन चलने वाले दुनिया भर (अपडेट) के कारण ठप पड़ गए। इसका असर हवाई अड्डों पर विमानों के संचालन से लेकर बैंकों, शेयर बाजारों, आपातकालीन सेवाओं से लेकर टीवी प्रसारण तक पर पड़ा सवाल है कि ऐसा क्यों हुआ और क्या दुनिया ऐसे तकनीकी हादसों से बच सकती है।
आखिर ऐसा क्या हुआ कि एक मामूली अपडेट कंप्यूटरों के संचालन के लिए परेशानी का सबब बन गया। यह आंकड़ा खुद माइक्रोसाफ्ट कंपनी ने जारी किया है कि 19 जुलाई को पैदा समस्या ने कम से कम 85 लाख कंप्यूटरों पर ‘ब्लू डेथ ऑफ स्क्रीन’ (बीडीओएस) नामक समस्या उत्पन्न की। इससे काम कर रहे हे कंप्यूटरों की पूरी स्क्रीन अचानक आसमानी नीले रंग की हो गई और उन पर एक त्रुटि (एरर) का संदेश आने लगा। वैसे तो कंप्यूटरों पर विभिन्न गतिविधियों के कारण त्रुटियों के ऐसे संदेश स्थानीय स्तर पर रहते हैं, लेकिन इस बार यह समस्या विश्वव्यापी थी। ऐसा इसलिए । र हुआ क्योंकि माइक्रोसाफ्ट कंप्यूटरों को साइबर हमलों से बचाने के लिए एक अन्य कंपनी क्राउडस्ट्राइक ने सभी माइक्रोसाफ्ट कंप्यूटरों के लिए स्वतः चालू होने वाला एक ‘साफ्टवेयर अपडेट’ जारी किया था, जिसमें पर आते रहते कुछ दोष रह गए थे। जैसे यह साफ्टवेयर अपडेट शुरू हुआ, माइक्रोसफ्ट विंड पर चलने वाले कंप्यूटरों संचालन रुक गया। चूंकि ये
कंप्यूटर किसी अंदरूनी (जैसे कि हार्डवेयर या मदरबोर्ड में दिक्कत ) या बाह्य समस्या (जैसे कि वायरस हमला या साइबर अटैक) पैदा होने संचालन रोकने की स्वतः व्यवस्था से लैस होते हैं, इसलिए दोषपूर्ण साफ्टवेयर अपडेट शुरू होते ही ही उन्होंने काम करना बंद कर दिया। खासकर ‘क्लाइड नेटवर्क’ से जुड़े लाखों कंप्यूटरों के नीले स्क्रीन ने साफ कर दिया कि उनका ‘सिस्टम क्रैश हो गया है। क्राउडस्ट्राइक फाल्कन नामक यह साफ्टवेयर अपडेट दरअसल एक साइबर सुरक्षा उपकरण है, जो कंप्यूटरों को विभिन्न साइबर हमलों से बचाने के लिए बनाया गया है। मगर इसमें तकनीकी खामी थी। इसलिए माइक्रोसाफ्ट विंडोज से लैस कंप्यूटरों का संचालन एक झटके में रुक गया।
इस पर विचार करने की जरूरत है कि मौजूदा दुनिया में जब सारे कामकाज इंटरनेट पर आधारित तकनीकों और उपकरणों के हवाले करने की बात हो रही है, ऐसे में अगर नौबत किसी तात्कालिक ‘शटडाउन’ की आती है तो दुनिया का क्या होगा। जिस कृत्रिम बुद्धिमता को हर मर्ज की दवा बताया जा रहा है, वह कोई आसमान से टपकी नियामत नहीं है बल्कि वह भी इसी इंटरनेट और कंप्यूटरों के संजाल पर टिकी व्यवस्था है, जिसे ਤੁਕੀ ਵੀਂ ਕਿ ਰਣ’ ਵੀ ‘ ਧਾ ਧਾਵਨਾ ਵਧਣਾ ਢੰਗ ਹਰਾ ਹੈ। ਬਲ ਵੀ ਸਰਗ है कि उसके अंदर स्वतः संचालित होने वाली कोई दोषपूर्ण व्यवस्था ही ऐसा कारनामा कर दे और दुनिया ठगी रह जाए। आज जिस तरह पूरी दुनिया में इंटरनेट से जुड़े कंप्यूटरों के संजाल से अस्पताल चलाए जा रहे हैं, ट्रैफिक नियंत्रण किया जा रहा है, शेयर बाजार, आरक्षण प्रणालियां और यहां तक देशों के सुरक्षा तंत्र उन पर कायम हैं- ऐसे में कोई तकनीकी खामी सारे प्रबंध को एक ही पल में तबाह कर सकती है। गौरतलब है कि आज ऐसी तकनीकी खामियां पैदा करने वाले कारकों की कोई कमी नहीं है। समुद्र के नीचे बिछी इंटरनेट सेवाएं देने वाली ‘केबल’ कटने से ऐसा हो सकता है। बिजली जाने से सर्वर ठप पड़ने की दशा में यह स्थिति बन सकती है। साफ्टवेयर की गड़बड़ी का उदाहरण तो ताजा है, लेकिन किसी कंप्यूटर वायरस के हमले और दुश्मन देश के साइबर हमले की वजह से भी ऐसा हो सकता है। यह मुमकिन है कि जिन उपग्रहों (सैटेलाइट्स) के जरिए इंटरनेट या क्लाउड इंटरनेट सेवाएं मिल रही हैं, उन उपग्रहों के सौर तूफान की चपेट में आने से हालात बिगड़ जाएं। कहने के लिए कंप्यूटरों को ‘वायरस’ से बचाने के लिए ‘एंटी-वायरस’ उपलब्ध हैं, साइबर हमलों की रोकथाम के ढेरों प्रबंध हैं, लेकिन साफ्टवेयर अपडेट जैसी मामूली गतिविधि ही जब इतना बड़ा संकट पैदा कर सकती शेष तकनीकी आपदाओं के बारे में क्या कहा जाए।
ताजा डिजिटल सुनामी तब आई, जब एक कंपनी ने साफ्टवेयर अपडेट जैसी वैध और संभवतः जारी करने से पहले कई बार आजमाई गई तकनीक को लागू किया था पर सोचिए, जब कोई शत्रु देश, हैकर या आतंकी समूह जान-बूझकर दुनिया में कोई तकनीकी आपदा लाने में में जुट जाए तो अंजाम क्या होगा! यह एक अजीब विडंबना है कि माइक्रोसाफ्ट विंडोज नामक ‘आपरे आपरेटिंग सिस्टम’ से चलने वाले लाखों-करोड़ों कंप्यूटरों को साइबर हमलों से बचाते हुए उन्हें सुचारु रूप से संचालित रखने का जिम्मा टेक्सास (अमेरिका) स्थित क्राउडस्ट्राइक नामक जिस साइबर सिक्योरिटी कंपनी का है, उसी के एक साफ्टवेयर अपडेट ने हाल में इतनी बड़ी डिजिटल आपदा पैदा कर दी। इस कंपनी को साइबर सुरक्षा में माहिर माना जाता है। दावा किया जाता है कि बड़ी कंपनियों, एयरलाइनों, आपातकालीन सेवाओं के कारपोरेट नेटवर्क और क्लाउड नेटवर्क को एक-दूसरे से जोड़ने वाले उपकरणों आदि को कंप्यूटर वायरस, मालवेयर और हैकिंग से बचाने में इसी कंपनी की अहम । खासकर क्लाउड नेटवर्क की सेवाएं लेने वाली कंपनियां अपने सर्वर को साइबर हमलों और हैकिंग से सुरक्षित रखने के उद्देश्य से क्राउडस्ट्राइक की सेवाएं लेती हैं। दुनिया भर में साइबर हमलों की जांच में इस कंपनी की महत्त्वपूर्ण भूमिका बताई जाती है।
मगर ताजा घटना से क्राउडस्ट्राइक कंपनी के साथ-साथ माइक्रोसाफ्ट की साख पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। इसी तरह 2010 में एंटीवायरस बनाने वाली कंपनी मैक्फी की एक गलती से अनजाने में दुनिया भर में विंडोज एक्सपी पीसी का संचालन बंद हो गया था।
उस समय भी ऐसी ही हलचल मची थी। ऐसा नहीं कि इंटरनेट पर आश्रित साइबर नेटवर्क के बैठ जाने की यह अकेली घटना है। छोटे-मोटे तकनीकी हादसे तो अक्सर होते रहते हैं। कभी वाट्सऐप इंस्टाग्राम, फेसबुक आदि संचालित करने वाली कंपनी ‘मेटा’ का सर्वर ठप्प पड़ जाता है, तो कभी गूगल की चाल मंद पड़ जाती है। साइबर हमलों और हैकिंग ने दुनिया को अलग से हैरान परेशान कर रखा है। यह ठीक है कि इंटरनेट और कंप्यूटर से बहुत से कामकाज सुविधापूर्ण बन गए हैं, लेकिन जैसे-जैसे चुनिंदा तकनीकी कंपनियों पर हमारी निर्भरता बढ़ रही है, उसमें हमें ऐसी तकनीकी आपदाओं के लिए तैयार रहना होगा। तकनीकी प्रबंधों के बल र जो दुनिया एक टापू में बदल गई है, उसको कोई तकनीकी तूफान कैसे तबाह कर सकता है- इस सबक को याद रखने और इससे बचने के प्रबंध करने का वक्त अब आ चुका है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार मलोट पंजाब