निशांत ने आईएएनएस को बताया, मैंने पिछले दो वर्षों में अंतिम उत्पाद का अनुकूलन करते हुए कई चुनौतियों और असफलताओं का सामना किया। इसमें सैकड़ों बड़े और छोटे बदलाव शामिल थे। अपने नवाचारों (नई खोज ) के लिए कई पुरस्कार जीत चुके निशांत ने कहा, नवीनतम संस्करण संभवत: हमारे द्वारा तैयार किया गया सबसे कुशल है, जो मूल प्रोटोटाइप की तुलना में पांच गुना छोटा, 10 गुना तेज है और निर्माण में केवल आधा खर्च आता है।
बुनकरों की समस्याओं पर जनवरी 2020 में निशांत और उनके कॉलेज के सीनियर प्राणेश के बीच एक अनौपचारिक बातचीत ने उन्हें इसका समाधान निकालने के लिए प्रेरित किया। अगले दो साल में, उन्होंने जैक्वार्ड लूम की कार्यप्रणाली को डिजिटाइज करने के लिए नोवाटेक्स इलेक्ट्रिकल सिलिंडर की परिकल्पना की और उसमें सुधार किया।
निशांत ने तमिलनाडु के सलेम स्थित सोना कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी से मेक्ट्रोनिक्स में बीटेक की पढ़ाई पूरी की है। सोना ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के वाइस चेयरमैन चोको वल्लियप्पा ने कहा, इस नई खोज को कपड़ा उद्योग में बड़ी जगह मिलेगी और फैशन डिजाइनरों के साथ-साथ छोटे बुनकरों को भी कम लागत पर अधिक डिजाइन तैयार करने में मदद मिलेगी।
निशांत का स्टार्टअप नोवाटेक्स टेक्नोलॉजी अगले साल सोना इन्क्यूबेशन फाउंडेशन और आईआईटी-एम के प्रोफेसर डॉ. अशोक झुनझुनवाला की अध्यक्षता वाली आईआईटी मद्रास इनक्यूबेशन सेल (आईआईटीएमआईसी) के साथ मिलकर लूम के डिजीटल संस्करण का निर्माण करने के लिए तैयार है। आईआईटीएमआईसी ने पिछले आठ वर्षों में 5,200 से अधिक रोजगार सृजित करने के अलावा, 241 स्टार्टअप्स को आज तक इनक्यूबेट किया है, जिनकी कीमत 11,000 करोड़ रुपये है।
आईआईटी-मद्रास रिसर्च पार्क के अध्यक्ष झुनझुनवाला ने कहा, सोना ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस आरएंडडी और इंडस्ट्री एकेडेमिया पार्टनरशिप पर मुख्य फोकस के साथ इंजीनियरिंग टैलेंट तैयार कर रहा है। हम आईआईटी-एम आईसी में सोना कॉलेज के पूर्व छात्र निशांत की अभिनव उद्यमशीलता परियोजना को बढ़ावा देकर खुश हैं।
वर्तमान में, सामान्य 7-बाई-3 इंच पंच कार्ड, जिसे मोटे कार्ड बोर्ड का एक टुकड़ा के रूप में वर्णित किया गया है, जो पूर्वनिर्धारित स्थितियों में होल्स की उपस्थिति या अनुपस्थिति द्वारा काम करता है, बिजली और हथकरघा क्षेत्र में विशिष्ट पैटर्न निर्धारित कर विशेष रूप से साड़ियों और धोती पर डिजाइन बनाने में मदद करता है। हालांकि, पूरी प्रक्रिया महंगी और बोझिल है।
नए डिजाइन के लिए 2,000 पंच कार्ड की आवश्यकता होती है, प्रत्येक की कीमत 4 रुपये प्रति कार्ड होती है, तो कुल खर्चा 8,000 रुपये होता है। बरसात के मौसम में, कार्ड नमी से अवशोषित होते हैं जिससे परेशानी होती है। यदि अधिक विस्तृत पैटर्न को प्राथमिकता दी जाती है तो लागत बढ़ जाती है।