अंतर्मन की आवाज
हम जमाने में जो कुछ करते हैं, कितना सही और कितना गलत करते हैं, यह कोई जान पाए या नहीं जान पाए, लेकिन हम पक्के तौर पर जानते हैं कि आखिर हमारी अपनी वास्तविकता क्या है। दरअसल, हमारी अंतरात्मा हर बात की गवाही देती है । इसलिए परिस्थितियां कैसी भी हो, हमें तटस्थ भाव से अपनी अंतरात्मा की आवाज सुननी चाहिए। उसके अनुसार किसी निर्णायक स्थिति पहुंचकर अपना कदम निर्धारित करना चाहिए। इसके चलते हम अंतर्मन में असीम आनंद की दिव्य अनुभूति कर सकते हैं। अन्यथा आकुल-व्याकुल मन के चलते गलत और गलत हो जाता है। सही भी सही रूप में जमाने के सामने नहीं आ पाता । परिणामस्वरूप हमारा चित्त अशांत हो उठता है और एक अजीब प्रकार की बेचैनी मन में घर कर जाती है। यही नहीं, हम अपनी प्रामाणिकता भी खो बैठते हैं ।
इसका दुष्परिणाम यह होता है कि हम ऐसी समस्याओं में उलझकर रह जाते हैं जो किसी विषय पर हमारे एकतरफा विचार के चलते उत्पन्न होती है । यों हर कोई हर किसी को पूर्ण रूप से संतुष्ट नहीं कर सकता, लेकिन प्रयास यह रहना चाहिए कि हमारी अंतरात्मा यह गवाही दे कि हम अपनी जगह एकदम सही हैं। निश्चित रूप से ऐसा होने पर हमारे आत्मबल में वृद्धि होगी, जिसके चलते हम बड़ी से बड़ी उलझनों से पार पा सकते हैं। अन्यथा मानसिक तनाव की अधिकता के कारण साधारण समस्या को सुलझाने की दिशा में भी हम असमर्थ रह सकते हैं। इसकी वजह से मानसिक और शारीरिक व्याधियां भी घर कर सकती है। इसलिए बेहतर यही है कि हम अनिर्णय की स्थिति में अपने अंतस की आवाज के अनुरूप कदम उठाएं।
वास्तव में किसी समस्या का लंबे समय तक समस्या बने रहना, मूल समस्या को और भी अधिक उलझा कर रख देता है । अनेक अवसरों पर ऐसी स्थिति की अति जिंदगी से हाथ धोने का कारण भी बन जाती है। दरअसल, जब हम किसी विषय को लेकर निर्णायक स्थिति तक नहीं पहुंच पाते, दिल और दिमाग में एक अजीब-सा धर्मसंकट उत्पन्न हो जाता है। ऐसे में अंतरात्मा की आवाज ही हमारा सही मार्गदर्शन कर सकती है । जटिल समस्याओं के दौर में अपनों का साथ बहुत संबल देता है, लेकिन इसके चलते केवल सहानुभूति मिल सकती है, निर्णय पर तो हमें ही पहुंचना होता है । इन हालात में अंतरात्मा की आवाज हमारा पथ प्रदर्शित करती है, जिसके चलते अंतर्मन में वैचारिक दृढ़ता का भाव जागृत होता है और मन को काफी सुकून मिलता है।
नीति और व्यवहार की समझ आम जनमानस में स्वाभाविक रूप से होती है। तकनीकी विषयों को छोड़कर अन्य सभी व्यावहारिक मुद्दों में अंतरात्मा की आवाज दूध का दूध और पानी का पानी करने में पूर्ण रूप से सक्षम होती है। वास्तव में जिंदगी में आने वाली तमाम समस्याओं का समाधान कहीं न कहीं होता ही है। जरूरत महज इस बात की होती है कि ऐसी समस्याओं के समाधान के लिए हम किसी उचित निष्कर्ष पर पहुंच सकें । इसके लिए कहीं और भटकने की आवश्यकता नहीं है। हमारे अपने जीवन की हर एक समस्या का समाधान हमारे भीतर ही है। अंतरात्मा की आवाज विपरीत परिस्थितियों में भी हमें अकेला नहीं छोड़ती। बस हमारी अंतर्दृष्टि जागृत रहनी चाहिए, जो गलत को गलत और सही को सही करार दे सके। फिर हमें केवल उसका अनुकरण करने की दिशा में ही कदम बढ़ाना है। निश्चित रूप से जब ऐसी मानसिकता बन जाती है तो मन निराकुल हो जाता है। इसका परिणाम यह होता है कि फिर जीवन में जो कुछ घटित होता है, वह पूर्ण रूप से सकारात्मक होता है । अनावश्यक रूप से उत्पन्न होने वाली राग द्वेष की भावना का शमन होने लगता है। एक प्रकार से व्यक्ति अजातशत्रु की श्रेणी में आ जाता है। ऐसा होने पर जीवन में अनुकूल परिस्थितियों का स्वतः ही सृजन होने लगता है, जिसकी वजह से हमारी मानसिक और
शारीरिक श्रम शक्ति में अभूतपूर्व वृद्धि होने लगती है। फिर हमारे लिए असंभव कुछ भी नहीं होता । इस स्थिति तक पहुंचने के लिए अंतरात्मा की आवाज पर विश्वास एक आवश्यक शर्त है।
आवश्यकता केवल इस बात की रहती है कि हम अपनी अंतरात्मा की आवाज को सुनने और समझने की दिशा में गंभीर रहें। इस आवाज को सुनने के लिए किसी विशेष प्रकार के ज्ञान या कौशल की कोई आवश्यकता नहीं होती । साधारण व्यक्ति भी अपने भीतर की आवाज को सुन सकता है। जब हम आत्म की आवाज के अनुरूप किसी दिशा में कोई कदम उठाते हैं, तब हमारे आसपास का संपूर्ण परिवेश हमें हमारे वांछित लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक सिद्ध होने लगता है और सकारात्मक परिस्थितियों का सृजन करता है। इसकी वजह से बड़ी से बड़ी बाधा को पार करना सहज, सरल हो जाता है।
अनेक अवसर पर अपने भीतर से निकली आवाज की अनसुनी हमें गंभीर परिस्थितियों की ओर धकेल देती है। जब हम अपनी आवाज के उलट किसी क्रिया / प्रतिक्रिया को मूर्त रूप देते हैं, तब निश्चित रूप से अपनी मानसिक और शारीरिक क्षमता का उपयोग नहीं कर पाते । तमाम तरह की आशंकाओं के बादल हमारे मनोमस्तिष्क पर मंडराने लगते हैं। इसकी वजह से नकारात्मक परिणाम ही हमारे सम्मुख आते हैं। इसलिए बेहतर यही है कि अपने भीतर से निकली आवाज को नजरअंदाज न करें। एक प्रकार से यही निराकुल जिंदगी जीने का एकमात्र मार्ग है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्राचार्य शैक्षिक स्तंभकार गली कौर चंद एमएचआर मलोट