एक समय था कि व्यक्ति अतिमितव्यता में भी अपने परिवार का लालन-पालन बड़े प्रेम से कर लेता था और अपनी आमदनी में से कुछपैसे बचा कर अपने बच्चों के लिये गहने और जायदाद आदि भी आराम से जोड़ लेता था।वो समय था सादा जीवन उच्च विचार केजीवन का जिससे उस समय इंसान बहुत सुखी और खुशहाल था।
बड़ा और भरा पुरा परिवार होने के बावजूद मन में कभी किसी के किसीभी चीज़ की कमी नहीं लगती थी।बड़ों के प्रति आदर और पारिवारिक सदस्यों में बहुत प्रेम आदि था। अब जमाना तो बदला ही पर साथमें इंसान की सोच भी वैसे ही इस प्रवाह में बदल गयी ।
इस आर्थिक उन्नति के पीछे भागते – भागते हुये इंसान रिश्तों की सारी मर्यादाभूल गया। आज हमको देखने को मिलता है कि अमुक व्यक्ति ने अपने पिता की जायदाद हासिल करने के लिए बाप-बेटे के रिश्ते कोतार-तार करते हुये स्वयं को जन्म देने वाले और उसकी परवरिश करने वाले माँ-बाप को एक मिनिट में मौत के घाट उतार देता है।इंसानने भौतिक सम्पदा बहुत इकट्ठा की होगी और करेंगे भी पर उनकी साथ में भावनात्मक सोच का स्तर भी उसी तेजी से लगातार गिरते जारहा है।
जो प्रेम-आदर अपने परिवार में बड़ों – छोटो आदि के प्रति पहले था वो आज कंहा है ? आज के युग में इंसान का यही सोच सबजगह होते जा रहा है कि बाप बड़ा ना भैया सबसे बड़ा रुपैया । अगर हमारी सीखने की इच्छा हो और हमारा नजरिया सही हो तो हरचीज से हमे जीवन में शिक्षा मिलती है ।घड़ी को ही देखिये वह रुकती नहीं है अगर रूक गरी तो खटारा है वैसे ही समय भी रूकता नहीं हैसमय के साथ चलते रहिये ।
समय पिछले पर का भूतकाल वह अगला पर भविष्य होगा।जिंदगी में समय व नियम के अनुरूपआध्यात्मिकता के साथ चलिये सफलता हमको अवश्य मिलेगी और आत्मा का अन्तिम लक्ष्य मोक्ष को जल्द से जल्द प्राप्त करेंगे ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
जीवन के दिलचस्प तथ्य
