क्या मंडरा रहा है हम पर ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ़्लड का खतरा?
सुनील कुमार महला
ग्लोबल वार्मिंग आज भारत ही नहीं , संपूर्ण विश्व की एक बड़ी समस्या है। आज धरती पर ग्रीन हाउस गैसों में निरंतर बढ़ोत्तरी हो रही है। प्रदूषण में भी बढ़ोत्तरी का क्रम लगातार जारी है। ग्रीन हाउस गैसों की अधिकता, बढ़ते प्रदूषण से धरती पर कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सीएफसी की मात्रा लगातार बढ़ रही है और धरती के तापमान में लगातार इजाफा हो रहा है। तापमान में वृद्धि के कारण देश में बारिश का पैटर्न प्रभावित हुआ है और आज लगातार जलवायु में अनेक परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं। बारिश के पैटर्न में बदलाव से जहां चक्रवाती तूफानों का जन्म हो रहा है वहीं पर धरती पर भूस्खलन जैसी घटनाओं में भी इजाफा हुआ है। जलवायु परिवर्तन के कारण आज कहीं सूखे की स्थितियां उत्पन्न हो रहीं हैं तो कहीं अतिवृष्टि की।
हाल फिलहाल चिंता की खबरें हिमालयन ग्लेशियल लेक्स से आ रही हैं। ग्लेशियन लेक्स के कारण आज पड़ोसी चीन की सीमा से बाढ़ का खतरा बढ़ा है। यह चिंताजनक इसलिए है क्यों कि पिछले एक दशक में 544 ग्लेशियल झीलों और 358 जल निकायों में 10.81% के कुल क्षेत्रफल वृद्धि देखने को मिली है। इस संबंध में सबसे ज़्यादा वृद्धि चीन में देखी गई है, भारत में भी इसी तरह के पैटर्न उभर रहे हैं, जहां 67 झीलों के आकार में वृद्धि हुई है। उल्लेखनीय है कि हाल ही में केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) की सितंबर 2024 की रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है कि अब भारतीय क्षेत्र में ग्लेशियल झीलों के बढ़ने से बहुत बड़ा खतरा पैदा हो गया है। इस खतरे का मुख्य कारण ग्लोबल वार्मिंग को बताया गया है। यह बहुत ही गंभीर और संवेदनशील है कि हिमालयी क्षेत्रों में ग्लेशियर झीलों में 13 साल के अंतराल में 33.7 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी देखने को मिली है।
उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य समेत पांच राज्यों में हालात और ज्यादा चिंताजनक व गंभीर नजर आ रहे हैं। यहां ग्लेशियर झीलों का आकार 40 प्रतिशत से अधिक बढ़ा है। उल्लेखनीय है कि केंद्रीय जल आयोग ने हिमालयी ग्लेशियर झीलों के क्षेत्रफल में बदलाव के आकलन के लिए वर्ष 2011 से सितंबर 2024 तक की स्थिति का अध्ययन किया, जिसमें चौंकाने वाले खुलासे में यह पता चला है कि भारत में ग्लेशियर झीलों का क्षेत्रफल 1,962 हेक्टेयर था, जो सितंबर 2024 में बढ़कर 2,623 हेक्टेयर हो गया है, जो 33.7 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी है। ग्लेशियर लेक्स का दायरा बढ़ने के कारण अन्य जल निकायों में भी पानी की मात्रा में बढ़ोतरी हुई है। क्या यह गंभीर और संवेदनशील नहीं है कि वर्ष 2011 में ग्लेशियर झीलों समेत अन्य जल निकायों का कुल क्षेत्रफल 4.33 लाख हेक्टेयर था जो अब बढ़कर 10.81 प्रतिशत बढ़कर 5.91 लाख हेक्टेयर हो गया है। भारत ही नहीं पड़ौसी नेपाल, चीन और भूटान में भी खतरा बढ़ा है। यहां उल्लेखनीय है कि चीन में, 50 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल वाली दो झीलों और 14 जल निकायों में 40% से अधिक की वृद्धि हुई है जिससे सीमा पर खतरा पैदा हो गया है। सीवीसी रिपोर्ट में सामने आया है कि 67 झीलों के सतही क्षेत्र में 40 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोत्तरी हुई है।उत्तराखंड समेत लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में यह सर्वाधिक है। वास्तव में ऐसी लेक्स से ‘ ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड’ यानी कि जीएलओएफ का खतरा सर्वाधिक है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि ग्लेशियल झील के फटने से आने वाली बाढ़ को ही ग्लेशियल झील विस्फोट बाढ़ (GLOF) कहते हैं। इसके कारण 1833 से अब तक हिंदूकुश हिमालयी क्षेत्र में 7,000 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। यह एक बहुत ही विनाशकारी बाढ़ होती है जिसमें जान-माल दोनों को ही भारी नुकसान हो सकता है और आम जनजीवन के साथ ही बुनियादी ढांचे पर व्यापक असर पड़ सकता है। अतः इनकी गहन निगरानी की संस्तुति की गई है।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि पिछले 50 वर्षों में GLOF(ग्लेशियल झील विस्फोट बाढ़) की संख्या में वृद्धि हुई है। इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट के एक विश्लेषण के अनुसार, 1833 से अब तक दर्ज 700 GLOF घटनाओं में से 70% से अधिक पिछले 50 वर्षों के दौरान हुई हैं। यह प्रवृत्ति ग्लेशियल गतिशीलता पर जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव को रेखांकित करती है। बहरहाल, यहां यह उल्लेखनीय है कि भारतीय सीमा में सिर्फ 7,570 ग्लेशियल लेक्स हैं, तथा बाकी दूसरे देशों की सीमाओं में स्थित हैं, लेकिन ये सभी ग्लेशियल लेक्स भारत के लिए कभी भी फ़्लैश फ्लड जैसा बड़ा खतरा पैदा कर सकते हैं, फिर चाहे वह गंगा हो, सिंधु हो या फिर ब्रह्मपुत्र हो, क्योंकि ये सभी ऊंचाई पर स्थित हैं। हमें यहां यह कदापि नहीं भूलना चाहिए कि पिछले साल अक्टूबर 2023 में भारत के पूर्वोत्तर राज्य सिक्किम की तीस्ता नदी में अचानक आई बाढ़ से भारी तबाही मची थी और इसमें कई लोग मारे गए थे। उस समय बांधों, नदियों और लोगों पर काम करते आ रहे दक्षिण एशिया नेटवर्क ने अपने एक लेख में बताया था कि 4 अक्तूबर, 2023 के तड़के 12 बजकर 40 मिनट पर दक्षिण लोनाक ग्लेशियल झील से पैदा हुए एक ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ़्लड (जीएलओएफ़) ने यह तबाही मचाई है।
इसलिए आज जरूरत इस बात की है कि हिमालयन ग्लेशियन लेक्स पर सतत् निगरानी रखी जाए तथा साथ ही साथ हमें यह चाहिए कि हम विकास और पर्यावरण के मध्य एक संतुलन स्थापित करके हमारी प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा के प्रति कृतसंकल्पित हों, तभी यह धरती बच सकती है।
(लेख मौलिक और अप्रकाशित है।)
सुनील कुमार महला