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लेख

संयुक्त परिवार: जीवन की सजीव पाठशाला

admin
Last updated: मई 11, 2025 11:38 पूर्वाह्न
By admin 16 Views
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6 Min Read
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संयुक्त परिवार: जीवन की सजीव पाठशाला
 
संयुक्त परिवार केवल साथ रहने की व्यवस्था नहीं, बल्कि जीवन मूल्यों की एक जीवंत पाठशाला है। यहाँ बच्चे रिश्तों के बीच रहकर अनुशासन, सहनशीलता, त्याग और सहयोग जैसे गुणों को स्वाभाविक रूप से सीखते हैं। बुज़ुर्गों का अनुभव और युवाओं की ऊर्जा मिलकर एक समृद्ध पारिवारिक वातावरण बनाते हैं। त्योहारों से लेकर संकटों तक, हर क्षण में सामूहिकता का भाव झलकता है। आधुनिक एकल जीवनशैली के दौर में संयुक्त परिवार मानसिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से सशक्त जीवन जीने का मार्ग दिखाते हैं। यह परंपरा केवल हमारी पहचान नहीं, बल्कि हमारी स्थायी शक्ति भी है।
 
-प्रियंका सौरभ
 
आज जब समाज तेजी से एकल परिवारों की ओर अग्रसर हो रहा है, ऐसे समय में संयुक्त परिवारों का महत्व फिर से समझना अत्यंत आवश्यक हो गया है। संयुक्त परिवार केवल एक छत के नीचे कई पीढ़ियों का साथ नहीं होता, बल्कि यह जीवन के वास्तविक पाठों की एक सजीव पाठशाला होता है, जहाँ हर दिन कुछ नया सिखने को मिलता है — बिना किसी पाठ्यक्रम और परीक्षा के।
 
संयुक्त परिवार में दादा-दादी, माता-पिता, चाचा-चाची, भाई-बहन और बच्चे सभी मिलकर एक ऐसा वातावरण रचते हैं जहाँ रिश्तों की गर्माहट, आपसी सहयोग और जीवन के मूल्यों का सहज अभ्यास होता है। यह वह स्थान है जहाँ बच्चे केवल किताबों से नहीं, अनुभवों और संबंधों से सीखते हैं। वे बड़ों का सम्मान करना, छोटों से स्नेह करना, कठिनाइयों में धैर्य रखना और खुशियों को मिलकर बाँटना, ये सब आचरण अपने आप सीख जाते हैं।
 
संस्कारों की पहली पाठशाला
 
संयुक्त परिवार बच्चों के लिए संस्कारों की पहली पाठशाला होता है। जब बच्चा देखता है कि उसके पिता अपने माता-पिता को आदर देते हैं, चाचा अपने भतीजे को लाड़ करते हैं, और दादी सबको भोजन पर बुलाकर मिल-बैठने का आग्रह करती हैं — तो वह बिना किसी औपचारिक शिक्षा के जीवन के मूल्यों को आत्मसात करता है। उसे यह समझ आता है कि केवल ‘मैं’ नहीं, ‘हम’ का भाव ही समाज और जीवन का आधार है।
 
समझदारी और सहनशीलता का व्यावहारिक अभ्यास
 
संयुक्त परिवार में रोज़ कुछ न कुछ ऐसा होता है जो हमें सहनशील बनाता है। कभी किसी की पसंद का खाना नहीं बना, तो कभी किसी की नींद बच्चों की शरारत से टूट गई — लेकिन परिवार इन छोटी-मोटी बातों को नज़रअंदाज़ करना, माफ़ करना और सबके लिए सोचना सिखाता है। यह जीवन में आगे चलकर एक व्यक्ति को हर परिस्थिति में संयमित और समझदार बनाता है।
 
संघर्ष और सहयोग की मिसाल
 
संयुक्त परिवार उस समय भी एकजुट खड़ा रहता है जब जीवन में समस्याएँ आती हैं। किसी सदस्य की बीमारी हो या आर्थिक संकट — पूरा परिवार एक टीम की तरह काम करता है। वहाँ एक-दूसरे की कमजोरी को ढँकने और ताकत को आगे बढ़ाने की परंपरा होती है। यह भावनात्मक सुरक्षा और मानसिक मजबूती की ऐसी नींव रखता है जिसे कोई संस्थान नहीं दे सकता।
 
साझा जिम्मेदारियाँ, साझा आनंद
 
संयुक्त परिवारों में घर की जिम्मेदारियाँ बंटती हैं, लेकिन खुशी दुगनी हो जाती है। त्योहारों की रौनक, शादियों की चहल-पहल और रोज़मर्रा की बातचीत — यह सब एक ऐसा सामाजिक और भावनात्मक संबल प्रदान करता है, जो अकेलेपन और अवसाद के खतरे को बहुत हद तक दूर कर देता है। यही कारण है कि संयुक्त परिवारों में पलने वाले बच्चे सामाजिक रूप से अधिक आत्मविश्वासी और भावनात्मक रूप से अधिक संतुलित होते हैं।
 
वर्तमान समय की चुनौतियाँ और संयुक्त परिवार
 
आज के दौर में, जब भागदौड़, करियर की दौड़ और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्राथमिकता दी जा रही है, तब संयुक्त परिवारों का ढाँचा टूटता जा रहा है। एकल परिवारों में सुविधाएँ तो अधिक हैं, परंतु सामाजिक शिक्षा और संबंधों की गहराई की कमी भी उतनी ही तीव्र है। बुज़ुर्ग अकेलेपन से जूझ रहे हैं, और बच्चे भावनात्मक पोषण के अभाव में डिजिटल दुनिया के गुलाम बनते जा रहे हैं।
 
 परंपरा और आधुनिकता का संतुलन
 
समस्या यह नहीं कि लोग एकल परिवारों में रह रहे हैं, बल्कि यह है कि संयुक्त परिवार के मूल्यों को छोड़ते जा रहे हैं। अगर हम अपने परिवार के बुज़ुर्गों से जुड़ाव बनाए रखें, बच्चों को उनके साथ समय बिताने दें, और ‘मैं’ से ऊपर ‘हम’ को स्थान दें — तो चाहे हम एक ही घर में न भी रहें, संयुक्त परिवार की आत्मा फिर भी ज़िंदा रह सकती है।
 
संयुक्त परिवार केवल रहने का ढाँचा नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक शैली है। यह एक ऐसी ‘यूनिवर्सिटी’ है जहाँ कोई डिग्री नहीं मिलती, पर जो सीख मिलती है, वह व्यक्ति को एक बेहतर इंसान बनाती है। आज जब समाज सामाजिक विघटन और मानसिक तनावों से जूझ रहा है, तब संयुक्त परिवार एक समाधान बनकर उभर सकता है। यह समय है, जब हम फिर से इस परंपरा की ओर लौटें — आधुनिकता के साथ उसका संतुलन बनाकर — ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियाँ केवल सफल नहीं, संस्कारी भी बन सकें।
 
 
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