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उत्तराखंडलेख

हर दीप में पर्यावरण का दीप जलाएं

admin
Last updated: अक्टूबर 12, 2025 8:59 अपराह्न
By admin 13 Views
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6 Min Read
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‘हर दीप में पर्यावरण का दीप जलाएं।’

सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।

दीपावली हमारे देश का सबसे सुंदर,बड़ा और हंसी-खुशी का त्योहार है। यह केवल दीप जलाने का ही पर्व नहीं है, बल्कि यह पर्व अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई और अज्ञान पर ज्ञान की विजय का प्रतीक है। भगवान श्रीराम के वनवास से अयोध्या लौटने की खुशी में जब पूरे नगर को दीपों से सजाया गया था, तभी से यह पर्व मनाया जा रहा है।समय के साथ अब धीरे धीरे दीपावली का स्वरूप बदल गया है। पहले लोग मिट्टी के दीये जलाकर, पकवान बनाकर और अपनों से मिलकर हंसी खुशी से यह पर्व मनाते थे। आज मिट्टी के दीपों की जगह बिजली की लाइटें, झालरें आ चुकीं हैं और खुशी की जगह पटाखों का शोर ले चुका है। दूसरे शब्दों में कहें तो प्राचीन समय में दीपावली सरलता-सादगी, पूजा, और आत्मिक प्रकाश का प्रतीक थी, जबकि आज यह दिखावे और उपभोग का माध्यम बन गई है। आज से बीस पच्चीस बरस पहले दीपावली मिट्टी के दीये, घर के बने पकवान और मिलन का उत्सव होता था, अब बाजारू चीजें और सोशल मीडिया पोस्ट हावी हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि पहले दीपावली आत्मसुधार और धर्म के प्रति आस्था का पर्व थी, आज यह खर्च और फैशन का उत्सव बन गया है। संक्षेप में कहें तो प्राचीन दीपावली में सादगी थी, अपनापन था, लेकिन आधुनिक दीपावली में आडंबर अधिक है- भावना वही, अभिव्यक्ति बदल गई है।हर वर्ष करोड़ों रुपये के पटाखे जलाए जाते हैं, जिससे वातावरण में धुआं और जहरीली गैसें फैलती हैं। इससे हवा की गुणवत्ता गिरती है और सांस की बीमारियां बढ़ती हैं।पटाखों पर खर्च होने वाला धन व्यर्थ चला जाता है, जिससे बचत प्रभावित होती है। बहुत बार तो आगजनी और दुर्घटनाओं से जान-माल का भारी नुकसान तक होता है। प्रदूषण बढ़ने से स्वास्थ्य पर असर पड़ता है, जिसका आर्थिक बोझ समाज पर पड़ता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि पटाखों का सबसे अधिक नुकसान हमारे पर्यावरण और जीव-जंतुओं को होता है। तेज आवाज से पशु-पक्षी डर जाते हैं, कई बार घायल हो जाते हैं। छोटे बच्चे और बुजुर्ग भी इससे परेशान रहते हैं। इसलिए यह बहुत ही जरूरी व आवश्यक है कि हम दीपावली को उसके असली अर्थ में मनाएं।

यह त्योहार रौशनी का है, धुएं का नहीं। हमें ग्रीन पटाखों का प्रयोग करना चाहिए, जो कम प्रदूषण फैलाते हैं। यहां पाठकों को बताता चलूं कि ग्रीन पटाखे सामान्य पटाखों की तुलना में 30% तक कम प्रदूषण फैलाते हैं।इनमें सल्फर और हानिकारक रसायनों की मात्रा बहुत कम होती है।पर्यावरण में धुआं और कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर घटता है। इतना ही नहीं, पशु-पक्षियों और बुजुर्गों के स्वास्थ्य पर कम दुष्प्रभाव पड़ता है। यहां तक कि इनसे ध्वनि प्रदूषण भी सीमित रहता है, जिससे बच्चों को राहत मिलती है। और तो और इनसे जलने और आगजनी की घटनाओं की संभावना घटती है। वास्तव में, ग्रीन पटाखे पर्यावरण-अनुकूल त्योहार मनाने की नई पहल हैं।इससे ‘ग्रीन दीवाली’ का संदेश समाज में व्यापक रूप से फैलता है।सबसे अच्छा तरीका है कि हम मिट्टी के दीये जलाएं, घर के बने पकवान बनाएं और जरूरतमंदों की मदद करें। आज मिट्टी के दीपक कम, चाइनीज लड़ियां, झालरें दीपावली पर जलाई जाती हैं, इससे बिजली की खपत होती है, देश की अर्थव्यवस्था पर भी इसका असर पड़ता है। हमें हमारे बच्चों को स्वदेशी उत्पादों के बारे में जानकारी देनी चाहिए और दीपावली जैसे पर्व पर विशेष रूप से स्वदेशी अपनाओ के लिए उनको प्रोत्साहित करना चाहिए, क्यों कि विदेशी चीजें अपनाकर हम अपने देश की अर्थव्यवस्था को कहीं न कहीं बट्टा लगा रहे होते हैं। हमें बच्चों को मिट्टी के दीपकों का महत्व बताना चाहिए कि मिट्टी के दीपक पर्यावरण के अनुकूल होते हैं, और इनमें प्रदूषण नहीं होता। हमें उन्हें बताना चाहिए कि ये आसानी से नष्ट होकर मिट्टी में मिल जाते हैं, जिससे पर्यावरण सुरक्षित रहता है।हम अपनी युवा पीढ़ी को बताएं कि मिट्टी के दीपक स्थानीय कुम्हारों की आजीविका को बढ़ावा देते हैं।इनमें घी या तेल जलाने से वातावरण शुद्ध होता है। इतना ही नहीं ये परंपरा, सादगी और भारतीय संस्कृति के प्रतीक हैं।

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वास्तव में यही दीपावली का सच्चा संदेश है। अंत में यही कहूंगा कि अगर हर व्यक्ति यह निश्चय करे कि वह इस दीपावली पर पटाखे नहीं जलाएगा, तो हमारा आकाश साफ रहेगा, हवा शुद्ध रहेगी और पृथ्वी मुस्कुराएगी। हमें अपने बच्चों को भी यही सिखाना चाहिए कि त्योहारों का असली आनंद प्रेम, सहयोग और पर्यावरण की रक्षा में है।दीपावली का अर्थ केवल बाहर रोशनी फैलाना नहीं, बल्कि अपने मन के अंधकार को भी मिटाना है- क्रोध, लोभ और स्वार्थ के अंधकार को। जब हम अपने भीतर और आसपास दोनों में उजाला फैलाएंगे, तभी यह पर्व अपने सच्चे अर्थ में मनाया जाएगा।तो आइए ! इस दीपावली संकल्प लें —मिट्टी के दीये जलाएं, हृदयों में प्रेम की रोशनी फैलाएं, प्रकृति को बचाएं और खुशियों की सच्ची दीपावली मनाएं।

 

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