जीएँ उद्येश्यपूर्ण जीवन
हमारे जीवन को हमने वर्तमान समय में इस अतिरिक्त की सदैव चाह रखकर पेचीदा बना दिया है अन्यथा हमारे जीवन का रास्ता तो वास्तविकता में एकदम सीधा-साधा है । हमारे जीवन में तृष्णा अधिक से और अधिक में जब जग जाती है तो फिर एक ही धुन दिमाग में और -और- और चाहे रात हो या भोर छाई रहती है ।वह हमारे जीवन की असली डोर इस और अतिरिक्त की क्षुधा में छूट जाती है। हम मानव अपने कर्म अनुसार इस धरा पर जन्म लेते है ।शैशव से बचपन, किशोर, युवा, प्रौढ़,व अंतिम पड़ाव वृद्धावस्था पार कर हम कर्मों के साथ अपना आयुष्य पूरा कर लेते हैं। हम मानव में से अधिकांशतः कोई विशेष उपलब्धि भरा सार्थक जीवन जीने की ओर ध्यान ही नहीं देते हैं। हमारे द्वारा सार्थक जीवन का तात्पर्य केवल पैसा कमा कर समृद्ध होना ही नहीं है अपितु सही से कुछ उद्देश्यपूर्ण जीवन जीना है। वह उस हेतु हर दिन हमको कुछ सीखते रहना चाहिए । हमको हर रोज अवश्य अपना सही से अंतरावलोकन कर आगे बढ़ते रहना चाहिए । वह इससे रोज हमारे अपने कर्मों को परिष्कार करने का उत्साह बढ़ेगा । हमारा जीवन रोज सही से निर्धारित लक्ष्य की ओर पहुँचता जाएगा। यही सार्थक जीवन होगा। वो जीवन ही क्या जिसमें उतार-चढ़ाव ना आये।हम जीवन में जब प्रतिकूल समय का सामना करेंग़े और उस दर्द को सहने की हिम्मत जुटायेंगे तब ही अनुकूल समय की ख़ुशियाँ महसूस कर पायेंगे। हम देखते है कि इस जीवन में हर वस्तु परिवर्तन शील है।जैसे पानी वो ही होता है पर फ्रिज़र में रख देंगे तो बर्फ़ बन जाती है और फ़्रीज़ के बाहर रख देंगे तो वापिस पानी आदि – आदि । भगवान ने मनुष्य को वो समझ दी है कि जब समय विपरीत हो तो थोड़ा संयम धारण करे।वह मन में हम यही चिंतन करे कि जब एक दिन उदय होने से लेकर वापिस दूसरे दिन उदय तक कितने पहर देखता है ,ठीक वैसे ही जीवन में बदलाव आये तो यही चिंतन रहे कि यह भी स्थायी नहीं रहेगा।हर अमावस्य की घोर अंधेरी रात आयी है तो कुछ दिनो बाद पूनम की चाँदनी भी दिखायी देगी। हमारे द्वारा लक्ष्यहीन जीवन जीना तो ऐसा है जैसे
किसी जहाज का बिना नक्शे के समुद्र में भटकना। अतः हम मानव ! इस अमूल्य जीवन को लक्ष्यहीन रख कर यूँ ही व्यर्थ में न गवाँ दे।हम उद्येश्यपूर्ण जीवन जीएँ। यही हमारे लिए काम्य है।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
जीएँ उद्येश्यपूर्ण जीवन
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