किसी ने नहीं देखा है
जो आज तक कभी हमने नहीं देखा है वो समय की यात्रा के साथ – साथ हमको बदलाव में दिखता रहता है । हम देख रहे है कि मकान , दुकान , बाजार , राजमार्ग आदि बड़े – बड़े हो रहे है लेकिन उसी रफ्तार से हमारी सोच संकीर्ण होती जा रही है सिर्फ और सिर्फ धन के इर्दगिद के पैमाने के आधार पर जो हर समय हर किसी के लिये हमारी जीवन प्रणाली सी हो गई है जिसकी हम सही से कल्पना भी नहीं कर पा रहे हैं । ठीक इसी तरह हमारे पास नित भौतिक संग्रह तो बढ़ते जा रहे है लेकिन हमारे जीवन का मूल्य भी उसी तेजी से घटते जा रहे है । हम बाहरी चकाचौंध में तो खुश हो रहे है लेकिन भीतर की और हमारा ध्यान भी नहीं जाता हैं । जीवन में देख – देखकर सम्पन्नता में आदमी मदहोश तो होता जा रहा है लेकिन जीवन का असली सुख किसमे है इस और उसका ध्यान ही नहीं जाता है । ऐसी -ऐसी हैं अनेक बातें जिन पर हम भौतिकता के नशे में ध्यान ही नहीं देते हैं । साथ में जानते समझते सब है परन्तु अभी नहीं फिर कभी के फेर में हर समय उलझते रहते हैं। हम यह भी नहीं सोचते कि क्या भविष्य हमारे हाथ में है। हम तो यह भी नहीं जानते हैं कि अगला क्षण भी हमारा होगा कि नहीं तो फिर अभी नहीं और कभी का भ्रम हम किस बुते पर पालते हैं ।हम यह वक्यों सोचें कि अभी नहीं फिर कभी। कौन जानता है वह फिर कभी हमारे जीवन मे आएगा भी कभी? यह सोच क्यों नहीं हम आत्म-चिन्तन करे कि आज तक नहीं देखा है किसी ने वह फिर कभी होगा ।
प्रदीप छाजेड़
(बोरावड़ )