पहाड़ों पर बादलों के अनगिनत टुकड़े
जमे हैं।
पशु-पक्षी सहमे,दुबके
न जाने कहां-कहां बैठे हैं ?
बारिश से सहमे ढ़ोर
छप्परों में खड़े हैं !
मंद-मंद बारिश,
तन-मन दोनों को बराबर भिगो रही है !
वो दूर पहाड़ों की चोटियों पर
धवल बर्फ की चादर मुस्कुरा रही है !
यहां मैदानों की तरह
सरसों के लहलहाते खेत नहीं हैं।
मैदानों की तरह
यहां नहीं है धुंध-कोहरा !
वनस्पतियां, पेड़ों पर बिखरी है अजीब सी शांति!
केवल टीन के छप्परों पर लगातार गिर रही
बारिश की बूंदों से
वातावरण की चुप्पी टूट रही है।
गेंदे के पीले-नारंगी फूलों का
चटख रंग भारी ठंड से थोड़ा फीका सा पड़ रहा है !
भगवान मार्तंड बादलों की ओट में
न जाने कहां छिपे हैं ?
सीलन, ठंडी बर्फीली हवाओं से फिज़ाओं का बदला है
रंग !
अनगिनत देवदारों की फुनगियों पर
असंख्य फाहे से चमक उठे हैं !
पगडंडियों पर भूरी-हरी मटमैली घास पर पाला जमा है !
वो दूर बस्तियों में वीरानी-खामोशी फैली है
घरों में ठंड से दुबके-दुबके, सहमे-सहमे से लोग
भीगे हुए से हैं
जैसे सभी कपड़े-लत्ते, मौजे और कोट,
नहीं मिलती तेज हवाओं से ओट !
सीलन-गीलन से ओतप्रोत है यहां वातावरण
चमड़े के जूतों में भी निकलने लगीं हैं सिसकारियां !
वो दूर पहाड़ों में
एक घर से निकल रहा है अंगीठी-चूल्हे से धुंआ !
शायद
चाय-कॉफी की चुस्कियां, लुटातीं रहीं होंगी मस्तियां !
उस दूसरे घर में जला है अलाव,
अलाव का शोला
भड़क कर जैसे बोल उठा है
कठिन है पहाड़ों का सफ़र !
कुछ लोग अलाव की अग्नि में गुज़रे हुए लम्हों के
पत्ते तोड़ रहे हैं !
मत भूलो कि पहाड़ ऊंचे होते हैं, और जो जितना ऊंचा होता है
वह उतना एकाकी होता है !
रईसों को पहाड़ों में अक्सर सौंदर्य नजर आता है,
वे फोटोग्राफी करते हैं
बनाते हैं विडियो !
कवियों को भी अक्सर दिखता है प्राकृतिक सौंदर्य
पहाड़ों का
तभी लिखी जाती हैं पहाड़ों के सौंदर्य,
प्राकृतिक छटाओं पर अनगिनत कविताएं !
लेकिन
पहाड़ों में जीजिविषा के लिए
टक्कर लेनी पड़ती है इनकी दुर्गमता से,
सफ़र है कठिन काफी !
ठंड में पहाड़ों में एक-एक पल पहाड़ सा होता है भारी !
सच में
पहाड़ में जीने के लिए मनुष्य को
होना होता है पहाड़ सा विशाल हृदय वाला !
जगानी पड़ती है प्रबल इच्छाशक्ति,
जगानी पड़ती है
जीवन में रागात्मकता !
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।