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पेन ड्राइव बनाम मस्तिष्क

पेन ड्राइव बनाम मस्तिष्क

आज के इस वैज्ञानिक युग में हर कोई नवीनतम से नवीनतम तकनीक को अपनाने की होड़म-होड़ में लगा हुआ है । इसी श्रृंखला में वहअच्छी-अच्छी बातों को मस्तिष्क की बजाय पेन
ड्राइव में स्टोर करने की दौड़ में लगा हुआ हैं । भगवान ने अद्धभूत रचना की है इंसान की।उसके शरीर काएक छोटा सा भाग होता हैउसका मस्तिष्क।यह हमारे पर निर्भर करता है कि हम उसमें क्या इकट्ठा करते हैं। जीवन में विभिन्न मोड़ो पर अनेक घटनाएँ घटित होती हैउन्हें हम देखते हैंऔर सुनते भी हैं।उस दौरान हमारा कईयों से प्रेम और कईयों नफ़रत भी हो जाती है।कभी-कभी तो हम दूसरों की निंदाऔर कमियाँ आदि बड़े रस लेकर सुनते हैं।और दूसरों के जीवन से हमारा लेना देना ही नहीं फिर भी उनकी कमियाँ हम अपने मस्तिष्क मेंस्टोर रखते हैं ।हमारी समझदारि इसी में है कि बिना ज़रूरत की नकारात्मक बातें किसी के प्रति नफ़रत और ग़लत विचार अगर आयें हैंतो रात में सोने से पहले मन से निकाल दे । अच्छी बातें,अच्छे लोगों की अच्छी और प्रेरणा दायक बातें और हर प्राणी के प्रति प्रेम काभाव रहे।उनको याद रखे और संग्रह करे क्योंकि जैसा सोच आपके दिमाग़ में रहेगा उसी अनुरूप हमारे दैनिक व्यवहार में आएगा। जैसेहम सुबह उठते ही घर का कचरा बाहर फेंकते हैं मोबाइल को सही चलने के लिए बिना ज़रूरत के मेसेज डिलीट करते हैं।ठीक वैसे हीइंसान को ग़लत विचार या बातें मन से निकाल दें। इनकी पोजिशन परिवर्तित कर ले यानी मन मस्तिष्क में अच्छी-अच्छी बातें भर ले औरपेन ड्राइव को कचरा भरने के उपयोग में ले ले। तो हमारा जीवन भी सरल और स्वच्छ रहेगा।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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