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उत्तराखंडलेख

साझा भविष्य के लिए आर्द्रभूमियों का संरक्षण आवश्यक 2 फरवरी दिवस विशेष आलेख

admin
Last updated: फ़रवरी 1, 2025 8:30 अपराह्न
By admin 20 Views
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11 Min Read
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प्रति वर्ष 2 फरवरी को ‘विश्व आर्द्रभूमि दिवस’(वर्ल्ड वैटलैंड डे) पर्यावरण में आर्द्रभूमि के महत्व और भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है। वास्तव में, यह दिवस धरती पर जैव विविधता(बायो डायवर्सिटी) , जलवायु और जल विनियमन के लिए महत्वपूर्ण आर्द्रभूमि की रक्षा और पुनर्स्थापित करने के क्रम में जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से हर साल मनाया जाता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि वेटलैंड्स वाटरशेड की पारिस्थितिकी में एक अभिन्न भूमिका निभाते हैं। जानकारी के अनुसार उथला पानी उच्च स्तर के पोषक तत्त्वों का संयोजन जीवों के विकास के लिये आदर्श है जो खाद्य वेब का आधार बनाते हैं और मछली, उभयचर, शंख व कीड़ों की कई प्रजातियों को भोजन प्रदान करते हैं। वास्तव में,दलदली भूमि, बाढ़ के मैदान, नदियां, झीलें, मैंग्रोव, प्रवाल भित्तियां और अन्य समुद्री क्षेत्र जो कि कम ज्वार पर 6 मीटर से अधिक गहरे न हो- सब वेटलैंड्स की श्रेणी में आते हैं। इतना ही नहीं,मानव निर्मित तालाब या अपशिष्ट-जल को उपचारित करने वाले तालाब या जलाशय भी इसमें शामिल हैं।सच तो यह है कि वेटलैंड्स की जैविक संरचना में पानी में रहने वाली मछलियां, पानी के आसपास रहने वाले प्रवासी पक्षी सब शामिल हैं। पाठकों को बताता चलूं कि आर्द्रभूमि ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ जल पर्यावरण और संबंधित पौधे व पशु जीवन को नियंत्रित करने वाला प्राथमिक कारक है। यदि हम वैटलैंड की परिभाषा की यहां बात करें तो ‘स्थलीय और जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के बीच संक्रमणकालीन भूमि जहाँ जल आमतौर पर सतह पर होता है या भूमि उथले पानी से ढकी होती है।’ सरल शब्दों में कहें तो आर्द्रभूमि (वैटलैंड) ऐसा भूभाग होता है जहाँ के पारितंत्र का बड़ा हिस्सा स्थाई रूप से या प्रतिवर्ष किसी मौसम में जल से संतृप्त (सचुरेटेड) हो या उसमें डूबा रहे। आर्द्रभूमियों में क्रमशः तटीय आर्द्रभूमियों, उथली झीलों और तालाबों, दलदल, स्वैंप्स,बॉग्स और मुहानों को शामिल किया जाता है। गौरतलब है कि वर्तमान में विश्व में 2400 से अधिक रामसर स्थल हैं जो 25 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले हुए हैं। यदि हम यहां भारत की बात करें तो फरवरी 2022 तक भारत में 49 रामसर स्थलों का एक नेटवर्क है। यह 10,93,636 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करता है, जो दक्षिण एशिया में सबसे अधिक है। उल्लेखनीय है कि भारत में लगभग 4.6% भूमि आर्द्रभूमि के रूप में है, जो 15.26 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करती है। गौरतलब है कि भारत में आर्द्रभूमि ठंडे एवं शुष्क इलाकों से लेकर मध्य भारत के कटिबंधीय मानसूनी इलाकों तथा दक्षिण के नमी वाले इलाकों तक फैली हुई है। दूसरे शब्दों में कहें तो भारत में गंगा, ब्रह्मपुत्र के बाढ़ वाले मैदान से लेकर समुद्र किनारे मैंग्रोव तक, भांति-भांति प्रकार के वेटलैंड्स देखने को मिलते हैं।यह भी गौरतलब है कि आर्द्रभूमि संरक्षण के लिए समर्पित रामसर कन्वेंशन को 2 फरवरी 1971 को अपनाया गया था, जिसने विश्व आर्द्रभूमि दिवस के लिए मंच तैयार किया और पहली बार वर्ष 1997 में यह मनाया गया था। विश्व आर्द्रभूमि दिवस 2025 का विषय या थीम ‘हमारे साझा भविष्य के लिए आर्द्रभूमियों का संरक्षण’ रखी गई है। यह भी उल्लेखनीय है कि पिछले साल यानी कि वर्ष 2024 में विश्व आर्द्रभूमि दिवस की थीम ‘आर्द्रभूमि और मानव कल्याण’ रखी गई थी। यह विषय मानव कल्याण के लिए इन प्राकृतिक आवासों की रक्षा हेतु साहसिक कार्रवाई की आवश्यकता को रेखांकित करता है ताकि भावी पीढ़ियां आर्द्रभूमियों से लाभ उठा सकें। उल्लेखनीय है कि मानव कल्याण के सभी पहलू जैसे कि शारीरिक, मानसिक और पर्यावरणीय कहीं न कहीं आर्द्रभूमि के स्वास्थ्य से जुड़े हुए हैं। आज संपूर्ण विश्व में जैव-विविधता, जलवायु और जल विनियमन के लिए महत्वपूर्ण आर्द्रभूमि की रक्षा और इसे पुनर्स्थापित(रि-एस्टेबिलिस) करने की आवश्यकता है। गौरतलब है कि आर्द्रभूमि विभिन्न प्रकार की प्रजातियों का घर हैं और जल शुद्धिकरण और बाढ़ नियंत्रण जैसी आवश्यक पारिस्थितिकी सेवाएं(इकोलॉजी सर्विसेज)प्रदान करती है विश्व वेटलैंड दिवस धरती पर मानव को इन प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा और रख-रखाव के लिए प्रोत्साहित करता है और शिक्षा इसमें महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती है। आज बदल रही जलवायवीय परिस्थितियों के बीच आर्द्रभूमियों का संरक्षण बहुत ही आवश्यक व जरूरी हो गया है।यह दिवस जहां एक ओर आर्द्रभूमि के महत्व पर प्रकाश डालता है और दुनिया भर में उनके संरक्षण को प्रोत्साहित करता है, वहीं पर दूसरी ओर यह दिवस वैश्विक आर्द्रभूमि संरक्षण और टिकाऊ प्रबंधन के लिए विश्व के विभिन्न देशों को एकजुट करने में भी महत्वपूर्ण व अहम् भूमिका निभाता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज धरती पर बढ़ते प्रदूषण यथा वायु,जल, मृदा से आर्द्रभूमियां लगातार प्रभावित होती चली जा रही है और इससे जैव-विविधता पर भी व्यापक असर पड़ रहा है। वर्ल्ड वैटलैंड डे प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन जैसे खतरों से निपटने की आवश्यकता पर विशेष जोर देता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि यह पर्यावरणीय महत्व पर विशेष ध्यान केंद्रित करके, विश्व समुदायों और सरकारों को आर्द्रभूमि संरक्षण को प्राथमिकता देने के लिए प्रोत्साहित करता है। पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि आर्द्रभूमि पृथ्वी के जलवायु को नियंत्रित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इतना ही नहीं, यह जल शुद्धिकरण और हमारी धरती की पारिस्थितिकी को भी संतुलित करती हैं। आर्द्रभूमियाँ बाढ़, सूखे और तूफान के खिलाफ बफर के रूप में कार्य करती हैं। वे कार्बन की भारी मात्रा संग्रहित करके जलवायु परिवर्तन को कम करते हैं। आर्द्रभूमियाँ सांस्कृतिक, मनोरंजक और सौंदर्य मूल्यों में योगदान करती हैं। बहुत कम लोगों को ही यह जानकारी होगी कि वेटलैंड्स अत्यधिक उत्पादक पारिस्थितिक तंत्र हैं जो दुनिया को मत्स्य उत्पादन का लगभग दो-तिहाई हिस्सा प्रदान करते हैं। उल्लेखनीय है कि जैव-विविधता की दृष्टि से आर्द्रभूमियाँ अत्यंत संवेदनशील होती हैं, क्योंकि विशेष प्रकार की वनस्पति व अन्य जीव ही आर्द्रभूमि पर उगने और फलने-फूलने के लिये अनुकूलित होते हैं।एक जानकारी के अनुसार आर्द्रभूमि के जीवाणु, पौधे व वन्यजीव, पानी, नाइट्रोजन और सल्फर के वैश्विक चक्रों का हिस्सा हैं। आर्द्रभूमि कार्बन को अपने पादप समुदायों व मिट्टी के भीतर कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में वातावरण में छोड़ने के बजाय संग्रहीत करती है। वैटलैंड जानवरों और पौधों के लिये आवास प्रदान करते हैं।इतना ही नहीं, आर्द्रभूमियाँ सतही जल, वर्षा, भूजल और बाढ़ के पानी को अवशोषित करती हैं और धीरे-धीरे इसे फिर से पारिस्थितिकी तंत्र में छोड़ती है और इस तरह से वैटलैंड एक ‘नैचुरल बैरियर’ की भूमिका का निर्वहन करती है। आर्द्रभूमि (वैटलैंड) में पैदा होने वाली वनस्पतियां बाढ़ के पानी की गति को भी धीमा कर देती है, जिससे मिट्टी के कटाव(मृदा अपरदन) में कमी आती है। तात्पर्य यह है कि यह बाढ़ जैसी आपदा को रोकने में सहायक या मददगार साबित होती है। आर्द्रभूमियां न केवल मानव बल्कि जीव-जंतुओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। धरती के पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में तो इनकी भूमिका है ही। एक आंकड़े के अनुसार एक अरब से अधिक लोग जीवन यापन के लिये वैटलैंड्स पर निर्भर हैं और दुनिया की 40% प्रजातियाँ आर्द्रभूमि में निवास करती हैं एवं प्रजनन करती हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि आर्द्रभूमि बाढ़ सुरक्षा, स्वच्छ जल, जैव-विविधता और मनोरंजन के अवसरों,परिवहन, पर्यटन(जैसा कि वैटलैंड प्राकृतिक सुन्दरता के क्षेत्र होते हैं) और लोगों की सांस्कृतिक संरक्षण एवं आध्यात्मिकता में योगदान करती हैं, जो मानव स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए बहुत ही आवश्यक व जरूरी हैं। वैटलैंड आदिवासी लोगों के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्र होते हैं क्यों ये क्षेत्र उन्हें जीने के लिए बहुत सी चीजें प्रदान करते हैं यथा कच्चा माल(रा मैटिरियल) मछलियां, पानी, जड़ी-बूटियां आदि। अंत में यही कहूंगा कि वेटलैंड्स धरती के लिए गुर्दे का काम करते हैं, क्यों कि ये गंदे पानी को स्वच्छ पानी में तब्दील करने की क्षमताएं रखते हैं।सच तो यह है कि जल-चक्र को बनाए रखने के लिए वेटलैंड्स का काफी महत्व है। जल संग्रहण, भूजल स्तर को बनाए रखने और पानी की सफाई तक में इसकी भूमिका है। बाढ़ का पानी अपने में समटेकर यह हमें बाढ़ से बचाने में बहुत ही मददगार है। मौसम परिवर्तन की घटनाएं जैसे बाढ़ और सूखे से निपटने में कई वेटलैंड्स सहायक हैं। आंकड़े बताते हैं कि आज विश्वभर के 87 प्रतिशत वेटलैंड्स खत्म हो चुके हैं। वर्ष 1970 के बाद दुनिया के 35 प्रतिशत वेटलैंड्स खत्म हो गए। भारत में एक तिहाई वेटलैंड्स शहरीकरण और कृषि भूमि के विस्तार, बढ़ती जनसंख्या की भेंट चढ़ गए। जानकारी के अनुसार पिछले कुछ दशकों में ही ऐसा हुआ है।आज शहरों में प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है, ऐसे में शहरों के आसपास या शहरों में ही कचरे के ढेर पहाड़ जैसे बनते जा रहे हैं, जिससे वेटलैंड्स के पाटे जाने का खतरा बना रहता है। कई जलस्रोत अपशिष्ट जल के भरने की वजह से तबाह हो गए। प्राकृतिक संसाधनों के बेजा दोहन से भी आज जलीय जीवन लगातार खतरे में है। संविधान के मुताबिक पर्यावरण का संरक्षण, संवर्धन हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है। हमें यह चाहिए कि हम जंगल, वन्यजीव, नदी और झील और वैटलैंड सबको बचाएं।
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।

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