उत्तराखंड के एक छोटे से पहाड़ी गांव की लड़की कृतिका भले ही एक सामान्य ग्रामीण जीवन जीती थी, पर उसकी सोच असाधारण थी। उसके पिता कैप्टन पीयूष भारतीय सेना से रिटायर्ड थे, जिनके किस्से-कहानियों, बातों से कृतिका का मन और आत्मा देशभक्ति से बचपन से ही ओतप्रोत हो गया था। हर तीज-त्योहार उसके लिए सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि देश की सरहद के रक्षकों को याद करने का अवसर भी होता। इस बार सावन पूर्णिमा का पवित्र त्योहार राखी नजदीक आ चुका था। गांव के नजदीक ही एक पहाड़ी पर सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) की एक यूनिट अस्थाई तौर पर तैनात थी। वहां लगभग पचास जवान तैनात थे, जो पिछले दो-तीन सालों से राखी के त्योहार पर अपने घर परिवार से मिलने नहीं जा पाए थे। चूंकि, स्वयं कृतिका के पिताजी सेना से रिटायर्ड कैप्टन थे और उसने घर-परिवार में रहते हुए अक्सर यह महसूस किया था कि उसके पिताजी अनेक बार त्योहार के अवसर पर उनसे मिलने घर पर नहीं आ पाते थे।कृतिका को पता चला कि एसएसबी के जवान भी आपदा प्रबंधन ड्यूटियों के कारण राखी के अवसर पर अपने घर नहीं जा पाए होंगे। यह बात उसके अंतर्मन को छू गई और उसने ठान लिया कि इस बार वह इन वीर जवानों के लिए ऐसा कुछ करेगी जो उनके दिल को छू जाए। राखी से दो दिन पहले, कृतिका ने गांव की अन्य लड़कियों और महिलाओं से मिलकर ‘रक्षाबंधन सेवा अभियान’ शुरू किया। सभी ने मिलकर राखियां बनाई, मिठाइयाँ पकाई, कुछ ने तो अपने बच्चों की तस्वीरों और चिट्ठियों के साथ राखियां भेजीं—मानो अपने ही सगे भाइयों के लिए। जिस दिन का इंतजार कृतिका व उसकी सभी सहेलियां कर रही थी, आज वह दिन आ गया था। कृतिका उस दिन बहुत ही खुश व प्रसन्न नजर आ रही थी। रक्षाबंधन के दिन सुबह-सुबह, कृतिका अपने हाथों में फूलों, रंगीन मोतियों तथा गोटा-पट्टी से सजा थाल लिए रोली,मौली, अक्षत-चावल, चंदन, हल्दी, नारियल, दीपक, और खील-बताशों से भरपूर , साड़ी में सजी-संवरी, अपने व सहेलियों के हाथ से बनीं दर्जनों राखियां, मां के हाथ से बने लड्डुओं के डिब्बे और कुछ सहेलियों को लेकर कैंप पहुंची। पहले तो सुरक्षा कारणों से उन्हें रोका गया, लेकिन जब उन्होंने अपना उद्देश्य बताया और जवानों के लिए लाए गए राखी के उपहार दिखाये, तो कमांडिंग ऑफिसर(सीओ) की आंखें भी भीग गईं। कृतिका और उसकी सहेलियों ने एक-एक जवान की कलाई पर राखी बांधी, उनको अक्षत-चावल रौली-चंदन से तिलक किया, आरती उतारी और मिठाई खिलाई। हर राखी के साथ जैसे वे सब मन ही मन यही गा रही थी—’बहना ने भाई की कलाई से प्यार बांधा है, प्यार के दो तार से संसार बांधा है, रेशम की डोरी से संसार बांधा है…!’ वह हर जवान के राखी बांधती और कहती-‘आप सिर्फ देश के रक्षक ही नहीं, हमारे भी भाई हैं। आज आपकी सगी बहनें भले ही आपसे दूर घर पर हैं, लेकिन हम हैं न!’ सभी जवान आज बहुत प्रसन्नचित्त नजर आ रहे थे और बच्चों की तरह मुस्कुरा रहे थे। किसी ने कहा, ‘बहना, आज पूरे चार साल बाद राखी बंधवाई है, मां कसम दिल भर आया।’ दूसरे ने चुपचाप अपनी आंखें पोंछते हुए यह कहा, ‘आज घर की बहुत याद आ रही थी… लेकिन अब नहीं।’ कमांडिंग ऑफिसर भी तब तक आ गये थे, उन्होंने भी कृतिका से राखी बंधवाई, मिठाई खाई। जवानों और कमांडिंग ऑफिसर ने सभी बहनों को ढ़ेर सारे उपहार और रूपए भी भेंट किए। बहनों के स्वागत के लिए साउंड सिस्टम और एक छोटा टैंट/शामियाना भी लगाया गया था, रिफ्रेशमेंट की व्यवस्था भी वहां थीं। सच में उस दिन वह कैंप, एक रक्षा चौकी से बदलकर एक बड़ा सा परिवार बन गया था। कमांडिंग ऑफिसर ने कृतिका से कहा, ‘आपने आज हमें भाई से ज्यादा इंसान बना दिया। बहुत लोग सीमा प्रहरियों की तारीफ तो बहुत करते हैं, पर आज वह दिन आया है जब, हमें किसी ने दिल से अपना माना है।’ शाम को जब कृतिका व उसकी अन्य सहेलियां जब घर लौटी, तो उनके हाथों में खाली थाल थे, लेकिन उनके दिल गर्व, खुशी और आत्मसंतोष से भरे थे। कृतिका की मां ने देखा तो वह मुस्कुरा कर बोलीं, ‘आज तूने देश की असली रक्षा की है बेटी।’ कृतिका के पिताजी अपने सेवाकाल को याद कर रहे थे और उनकी आंखों में भी आज खुशी के आंसू छलक पड़े थे, उन्हें अपनी बेटी कृतिका पर गर्व महसूस हो रहा था, वे स्वयं को धन्य महसूस कर रहे थे। कृतिका ने आज साबित कर दिया था कि बहनें सिर्फ राखी नहीं बांधतीं, वे भावनाओं की डोर से देश के वीरों को भी जोड़ सकती हैं।
(कहानी पूर्णतया मौलिक और अप्रकाशित है।)
सुनील कुमार महला, फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।
