उज्जैन. इस बार श्राद्ध पक्ष का समापन 25 सितंबर, रविवार को हो जाएगा। यानी ये श्राद्ध पक्ष का अंतिम दिन रहेगा। श्राद्ध में तर्पण का विशेष महत्व होता है। बहुत से लोगों ने तर्पण के बारे में सुना होगा, लेकिन ये कैसे करते हैं, इसके बारे में कम ही लोगों को पता है। ये श्राद्ध की ही एक प्रक्रिया है। मान्यता है कि तर्पण करने से इंसान पितृदोष से मुक्त हो जाता है और मृत परिजनों की आत्मा को शांति प्राप्त होती है। शाब्दिक रूप में माने तो पितरों को जल देने की विधि को तर्पण कहा जाता है।
कैसे करते हैं तर्पण? (Tarpan Ki Vidhi)
तर्पण श्राद्ध के अंतर्गत ही किया जाता है। इसके लिए दो बर्तनों लिए जाते हैं। इसमें से एक बर्तन में पानी भरकर उसमें काले तिल और दूध मिलाते हैं। इसके बाद दोनों हथेलियों की अंजुली बनाकर और कुशा (एक प्रकार की घास) लेकर अपने पूर्वज का नाम लेकर अंजुली का पानी दूसरे बर्तन में अंगूठे के माध्यम से डालना चाहिए। ऐसा बार-बार करतना चाहिए। ऐसा कहते हैं ये पानी पितरों को तृप्त करता है और वे प्रसन्न होते हैं।
ये मंत्र बोलें (Tarpan Ka Mantra)
तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः। (जिसका श्राद्ध आप कर रहे हैं, उनका नाम और गोत्र का नाम पहले ले लें और फिर मंत्र का जाप करें)
तर्पण करते समय अंगूठे से छोड़ते हैं जल
– तर्पण में अंगूठे के माध्यम से ही जल छोड़ा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि अंगूठे से पितरों को जल देने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
– पितरों को अंगूठे के माध्यम से जल देने के पीछे भी एक खास बात है। हस्तरेखा शास्त्र के अनुसार, पंजे के जिस हिस्से पर अंगूठा होता है, वह हिस्सा पितृ तीर्थ कहलाता है।
-इस प्रकार अंगूठे से चढ़ाया जल पितृ तीर्थ से होता हुआ पितरों तक जाता है। इसलिए तर्पण करते समय अंगूठे का उपयोग विशेष रूप से किया जाता है।
– ऐसी मान्यता है कि पितृ तीर्थ से होता हुआ जल जब अंगूठे के माध्यम से पिंडों तक पहुंचता है तो पितरों की पूर्ण तृप्ति का अनुभव होता है।
– यही कारण है कि हमारे विद्वान पूर्वजों ने पितरों का तर्पण करते समय अंगूठे के माध्यम से जल देने की परंपरा बनाई।
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