सामाजिक सामंजस्य
सामाजिक सामंजस्य
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं । पर सामाजिक से पहले वह एक पारिवारिक प्राणी हैं । परिवार समाज की एक मूलभूत ईकाई हैं जोपरिवार के विभिन्न सदस्यों की इकाई से यह बनती है । अतः समाज की स्वस्थता के लिए जरुरी है पारिवारिक पारस्परिक संबंधों कीस्वस्थता , आपसी पारस्परिक व्यवहार की आत्मीयता, मधुरता आदि । जिसको झुकना आ गया उसका जीवन ही बदल गया।झुकने कादूसरा अर्थ है अपने अहंकार को समाप्त करना।झुकने का मतलब वादविवाद को तूल देने से बचना।झुकने का एक और अर्थ है कि जोझुकता है वो जीवन में सफलता पाता है।जैसे-एक बाल्टी कुँए में उतरती है और उसमें पानी तभी भरता है जब वो झुकती है।जब हमपहाड़ों पर या व्यापार में तभी शिखर पर पहुँचते हैं जब झुककर आगे बढ़ते हैं।
एक झुका हुआ पैड़ कितने लोगों को ठंडी छाँव देता है जैसे पीपल और बरगद।वंहि दूसरी और नारियल और खजूर के पेड़ लम्बे ज़रूरहोते हैं पर वो छाँव किसी को नहीं देते।अकड़ने वाला जल्दी गिरता है और झुका हुआ पेड़ तेज हवाओं का झोंका भी सहन कर लेता है।और अंत में जंहा बिना बात के वाद विवाद होता है वंहा दोनो में से एक व्यक्ति विनम्र होकर झुक जाता है वंहा रिश्ते ख़राब होने से बचजाते हैं। इसलिए परिवार में चेतना जिसने जागृत की है कि जिसको झुकना आ गया उसको परिवार के साथ जीवन जीने की कला आगयी। अतः हमे परिवार के साथ – साथ सामाजिक सामंजस्य भी रखना चाहिये ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )