मनसा देवी में भगदड़ में आठ लोगों की मौत हो गई और 45 लोग घायल हो गए,यह बहुत ही दुखद है। जानकारी के अनुसार, पैदल मार्ग पर बिजली का तार टूटने के बाद करंट फैलने की अफवाह से हादसा हुआ।यह पहली बार नहीं है, जब भगदड़ से हादसा हुआ है, इससे पहले भी अनेक हादसे हमारे देश में हो चुके हैं। दरअसल, हमारे यहां भीड़ प्रबंधन के लिए कोई ठोस व पुख्ता योजनाएं नहीं बनाई जातीं हैं और न ही भीड़ प्रबंधन पर ज्यादा ध्यान ही दिया जाता है। लापरवाही, बदइंतजामी और जागरूकता की कमी के कारण अक्सर ऐसे हादसे घटित हो जाते हैं। जानकारी के अनुसार मनसा देवी में भीड़ प्रबंधन सुधारने की फाइल ही लापता बताई जा रही है, यह बहुत बड़ी बात है। आज सीसीटीवी निगरानी प्रणाली से, दिशा सांकेतिक बोर्ड, पैदल मार्गों पर आपातकालीन निकासी योजना तथा स्थानीय प्रशासनिक समन्वय को प्रभावी बनाकर ऐसे हादसे घटित होने से रोके जा सकते हैं। वास्तव में, सार्वजनिक स्थानों पर विशेषकर धार्मिक स्थलों पर भीड़ के लिए क्षमता तय होनी चाहिए और अफवाहों को रोकने के लिए साउंड सिस्टम बनाया जाना चाहिए। सभी स्थानों की रियल टाइम मोनिटरिंग की भी जरूरत महत्ती है।मनसा देवी हादसे के बाद आम आदमी यह सोचने पर विवश हो गया हैं कि आखिर धार्मिक स्थलों पर इस तरह की भगदड़ बार-बार क्यों मचती है ? सवाल यह भी उठता है कि आखिर भगदड़ के दौरान होने वाली इन मौतों के लिए किसे जिम्मेदार माना जाए? यक्ष प्रश्न यह भी है कि आखिर प्रशासन, पुलिस अधिकारी, व्यवस्थापक पूर्व में हुई घटनाओं से सबक क्यों नहीं लेते ? पाठकों को बताता चलूं कि इसी साल कर्नाटक के बेंगलुरु में आरसीबी की विक्ट्री परेड के दौरान भगदड़ मच गई थी। बेंगलुरु में मची इस भगदड़ का सबसे बड़े कारण ओवरक्राउडिंग व संवाद की कमी रहे और 11 लोगों की मौत हुई। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ उत्सव के दौरान भी मौनी अमावस्या की रात भगदड़ मची और जानकारी के अनुसार इस हादसे में 30 लोगों की दर्दनाक मौत हुई और 60 से ज्यादा लोग घायल हुए। इतना ही नहीं, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर महाकुंभ के दौरान भारी भीड़ की वजह से भगदड़ मची थी और इसमें 18 लोगों की मौत हुई थी। दरअसल, ट्रेन के प्लेटफॉर्म नंबर को लेकर कन्फ्यूजन हुआ और भगदड़ मच गई। इतना ही नहीं, इसी साल 8 जनवरी को तिरुपति मंदिर में भी भगदड़ मची और इस हादसे में 6 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई। पिछले साल हुआ हाथरस हादसा भी लोगों को याद होगा,जब भोले बाबा के पैर की धूल छूने के लिए भक्तों में ऐसी होड़ मची लोग एक दूसरे के ऊपर गिर गए थे। बहरहाल, यहां पाठकों को बताता चलूं कि बेंगलुरु में आरसीबी के इवेंट में हुए हादसे के बाद कर्नाटक सरकार क्राउड कंट्रोल(भीड़ नियंत्रण) पर एक बिल लेकर आई है, जिसमें जिम्मेदारियां तय की गई हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि ऐसे कानून की आज हर जगह जरूरत है, विशेष कर भीड़भाड़ वाले स्थलों पर। साथ ही, ऐसे हादसों से बचने के लिए आयोजकों, पुलिस-प्रशासन और जनता को समन्वय में काम करना होगा। वास्तव में, आज बड़े पैमाने पर जन-जागरूकता की जरूरत है। इतना ही नहीं, अफवाहों से निपटने के लिए हमारे पास ठोस रणनीतियां होनी चाहिए। प्रशासन और प्रबंधन से जुड़े लोगों को गहन व अच्छा प्रशिक्षण भी दिया जाना चाहिए। सार्वजनिक स्थानों पर चिकित्सा सुविधाएं भी सुनिश्चित की जानी चाहिए।इसके अलावा प्रशासन को यह भी चाहिए कि वह सभी प्रमुख धार्मिक स्थलों पर सुरक्षा ऑडिट और आपदा प्रबंधन की योजनाओं का पुनर्मूल्यांकन कराए। बहरहाल, यह कह सकते हैं कि बदइंतजामी के कारण इस तरह की घटनाएं हो रही हैं। इससे बचने के लिए सतर्कता बहुत ही जरूरी है। सर्तकता ही वास्तव में सबसे बड़ा बचाव है।
सुनील कुमार महला, टिप्पणीकार, पिथौरागढ़, उत्तराखंड।
मोबाइल 9828108858/9460557355
