क्रोध के बारे में कुछ बोध
चिंतन चले हमने क्या खोया इस क्रोध में ,
जीवन में क्रोध के कितने अवसर आये
कितनों पर हमने कब किया क्रोध ?
अहंकार ने हमे कब कब फुफकरा
कब कब दिया उसको क्रोध में ?
माया तो है भीतर छुपी रुस्तम
पता न चलता कब हो जाती सवार ।
लोभ को है लाभ बढ़ाता फिर
चाहे परिग्रह हो या सम्मान।
कितने किए राग द्वेष को प्रतनु ,
इसमें रत रहकर हमने किये
क्रोध को कब -कब उजागर ?
आगे का है हमारा क्या प्लान ?
मैत्री भाव का विकास कितना ?
कितना भाया हमको प्रमोद भाव ?
भव पीड़ित प्राणी (स्वयं) पर क्या आई करुणा ?
कितने रहे हम हर परिस्थिति में सम,
और भाया माध्यस्थ भाव।
करें स्वयं अवलोकन ,
चिंतन करें ,
अनुचिंतन करें
कहाँ कहाँ हुई है हमारे से भूलें ?
कहाँ पर किया जा सकता है सुधार ?
आ जाए , आध्यात्मिक जागृति ,
भाव विशुद्धता की ओर करें प्रयाण ।
समता रस का पान करें,
करना है भव सागर पार ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड )