बसंत ऋतु –
हमारे जीवन में हर पल प्रवृतियों का आगमन होता रहता है ।हम अपने भीतर शुभ प्रवृतियों को विवेक से प्रवेश कराते हुए सही से अपने जीवन में सदुपयोग कर सदाबहार बसंत की तरह अपने भीतर हमेशा प्रसन्नता रख सकते हैं । हम बसंत पंचमी पर हमारे सकारात्मक चिंतन से,विधेयात्मक भावों आदि से हर परिस्थिति में सम रहकर प्रसन्ता रूपी बसन्त जीवन मे हर समय व्यतीत कर सकते है क्योंकि हम देखते है कि बाहरी ऋतुएं तो साल में एक ऋतु के रूप में एक बार आती है लेकिन भीतरी ऋतु तो हर पल हमारे विचारों के साथ मन मे प्रवेश करती रहती है और सिर्फ प्रसन्नतारूपी बसन्त ही बसन्त हो , वह हमारे इस मानव जीवन में सुख दुख व अनूकूल प्रतिकूल परिस्थितियों आदि का संगम चलता रहता है । हम देखते है कि सृष्टि के इस चले आ रहे रूल का कभी उल्लंघन नहीं हो पाता है । हम अपने जीवन में देखते है कि सुबह सूरज के प्रकाश के बाद रात को अंधकार आता है ठीक इसी तरह पतझड़ के बाद बसन्त का मेल है । हमारे जीवन में इसी तरह से सदा समस्या और समाधान का खेल चलता रहता है हमको दोनों स्थितियों में समता रखना चाहिए । हर स्थिति में वही हर क्षण – क्षण का स्वाद मानव चखता है । वह इस मानव जीवन में सदैव प्रसन्नता के भाव तनाव को हमसे दूर रखता हैं ।
यह हमारे शुध्द मनोयोग पूर्वक भावक्रिया से सम्भव है , जिसके सही सदुपयोग से हमारा जीवन बसन्त की तरह हरपल अप्रमत्त रहकर प्रसन्नता से खिल उठता है या खिला – खिला रहता हैं । हम वर्तमान युग में देखते है कि हर मानव प्रायः अनेक भय और तनाव से ग्रस्त है । हम शरद ऋतु के चंद्रमा की भांति सदैव प्रशस्त हो । मेरे मन में चिन्तन से एक बात यह आती है कि हम इस प्राकृतिक परिवर्तित होने वाले ऋतुचर्या का जो सही से आनंद है वह हमारे में सदैव व्याप्त रहे । यह तभी संभव हैं जब हम सबके हृदय में स्वस्थता से सदैव नैतिकता और मानवता एक – दूसरे के प्रति प्रेम व्यापत रहे । हमारा यह देश फिर से विश्वगुरु और सोने की चिड़िया का दुनिया में सितारा हो । वह चहुँदिक् प्रसरित , घृणा, हिंसा आदि का यह घोर अँधियारा मिटे और मेरी यह आशा फलीभूत हो , वर्धमान हो ।यही हमारे लिए काम्य है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
बसंत ऋतु
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