कहानी :रिश्ते की एक नई शुरुआत
मेरी शादी एक ऐसे लड़के से हुई थी, जिसे मैं नहीं चाहती थी। वह सीधा-सादा इंसान था और उसके परिवार में सिर्फ उसकी मां थी। शादी में मेरे घरवालों ने दहेज के रूप में गाड़ी, गहने और पैसे दिए थे, लेकिन मेरा दिल किसी और के लिए धड़कता था। मजबूरी में ससुराल आना पड़ा, पर मन कहीं और ही अटका हुआ था। हर दिन बस उसी के बारे में सोचते हुए गुजर जाता था।
सुहागरात के दिन जब मेरा पति दूध का गिलास लेकर आया, तो मैंने तंज कसते हुए कहा, “एक पत्नी की मर्जी के बिना पति उसे छुए तो इसे हक कहेंगे या बलात्कार?” उसने मेरी बात पर कोई गुस्सा जाहिर नहीं किया, बस शांत स्वर में कहा, “आप इतनी गहरी बातें सोचने की जरूरत नहीं, बस दूध पी लीजिए। शुभ रात्रि।” और कमरे से बाहर चला गया। मुझे झगड़ा चाहिए था ताकि इस शादी से बाहर निकलने का बहाना मिल सके, लेकिन उसकी शांति और परिपक्वता ने मुझे रोक दिया।
मैंने ससुराल में कोई भी काम नहीं किया। दिनभर फोन में व्यस्त रहती, सोशल मीडिया पर समय बिताती और अपनी सासू मां को अकेले ही घर के सारे काम निपटाने देती। उन्होंने कभी कोई शिकायत नहीं की। मेरे पति भी ज्यादा बात नहीं करते थे, लेकिन हर रात अपनी डायरी जरूर लिखते थे। शादी के एक महीने बीत गए और हम साथ नहीं सोए। एक दिन मैंने खाने की बुराई करते हुए उसे गुस्से में फेंक दिया। इस बार मेरे पति ने गुस्से में हाथ उठा लिया, लेकिन सासू मां ने तुरंत उन्हें रोक दिया। हालांकि, मुझे यह मौका मिल गया था घर छोड़ने का।
मैं स्कूटी लेकर अपने पुराने प्यार से मिलने चली गई। जब मैंने उससे कहा कि मैं उससे शादी करना चाहती हूं, तो उसने साफ शब्दों में कहा, “अगर भागने का प्लान है तो कुछ पैसे और गहने भी साथ लाना।” उसकी इस बात ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया, लेकिन फिर भी मैं उससे जुड़ी रही और वापस घर लौट आई।
शाम को मैंने जानबूझकर अपने पति से झगड़ा किया और कमरे में जाकर खुद को बंद कर लिया। कुछ देर बाद वह दरवाजे के बाहर खड़े होकर बोले, “अलमारी की चाबी देना,” लेकिन मैंने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया। जब काफी देर तक उन्होंने दरवाजा नहीं खटखटाया, तो मैंने अलमारी खोली और उसमें मेरी पासबुक, एटीएम कार्ड और गहने रखे हुए देखे। साथ ही, एक डायरी भी थी, जिसे देखकर मैं चौंक गई।
डायरी में मेरे पति ने लिखा था कि मेरे पिता ने कभी उनकी मां की जान बचाई थी, और इसलिए उन्होंने मेरे पापा का एहसान चुकाने के लिए यह शादी की थी। उन्होंने यह भी लिखा था कि उन्होंने मेरी खुशी के लिए घर की सारी संपत्ति मेरे नाम कर दी है। डायरी में आखिरी कुछ पंक्तियां थीं – “तुम आजाद हो, जब चाहो जा सकती हो। तलाक के पेपर तैयार हैं। मगर जब तुम सच्चे दिल से मेरे पास आओगी, तब तुम्हारा स्वागत करूंगा।”
उन शब्दों ने मुझे अंदर तक झकझोर कर रख दिया। मुझे एहसास हुआ कि मैं किस तरह का अन्याय अपने पति और सासू मां के साथ कर रही थी। मैंने उसी वक्त फैसला कर लिया कि अब मैं इस रिश्ते को एक नया मौका दूंगी। अगले दिन मैंने साड़ी पहनी, लंबी सिंदूर लगाई और सासू मां को साथ लेकर पति के ऑफिस पहुंच गई। वहां सबके सामने मैंने कहा, “मैं इनकी पत्नी हूं और हम एक महीने की छुट्टी पर जा रहे हैं।” मेरे शब्द सुनकर पति मुस्कुरा दिए और हमने अपने रिश्ते की एक नई शुरुआत की।
यह कहानी सिखाती है कि प्यार और समझदारी से रिश्तों को नया जीवन दिया जा सकता है। माता-पिता के फैसलों का सम्मान करना चाहिए, क्योंकि वे हमेशा हमारे भले के लिए ही सोचते हैं। रिश्तों को निभाने के लिए त्याग, समर्पण और सच्चे मन से प्रयास करना जरूरी होता है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब