Less Said The Better
भौतिक पदार्थों की चकाचौंध में फंसकर आदमी महत्वाकांक्षी होकर आपाधापी के भंवरजाल में भटकता रहता है और दुःखों को प्राप्त करता है । भावनाओं में सन्तुष्टि नही होती है ।और और कि आपाधापी सुख औरशान्ति को लील जाती है । अजीब विडंबना है की भौतिकवाद और उपभोक्तावादी चकाचौंध मे लोग जितनी चादर उससे अधिक पैर पसार तुलना की होड़ में लग गए। मे सेर तो अगला सवा सेर अगर सच्चा सुख चाहिए तो बस
ना किसी से ईर्ष्या , ना किसी से होड़ , मेरी अपनी मंजिलें , मेरी अपनी दौड़ । आज भी बेचैन सांसे चढ़ती या उतरती है तो पल में पलको के चिलमन से अश्कों का प्रवाह शुरू हो जाता है।ना मिट्टी की ख़ुशबू.है । ना कोयल की कूकूं । ना घरों में फुदकती चिड़ियों ।पंखे ,ए सी, कूलर होते हुए भी बेचैन से रहते है। घरौंदों की रौनक़ तक काफ़ूर हो गयी। कहते फिरते है हम क्या ज़माना आ गया है । पर मानते नही हम ही लाए अपने स्वार्थ के लिए। मनुष्य जन्म अनमोलरे मिट्टी में मत रोल रे ।अब जो मिला है फिर ना मिलेगा,कभी नही-कभी नही । फिर भी इच्छा पूर्ति के लिए आदमी समुद्र पार दौड़ रहा है । समझ ही नही रहा और स्वर्ग पाताल राज करो तिसना अधिकी अति आग लगेगी ।इस मानव जन्म रूपी स्वर्णथाल का उपयोग धूल फेंकने के लिए व अमृत का उपयोग पैर धोने के लिए । उत्तम हाथी का उपयोग लकड़ियों की ढुलाई के लिए तथा चिंतामणिरत्न क़ौआ उड़ाने के लिए फेंकने वाला कर रहा हैं। मानव भव मिला।ज्ञानी संतो की वाणी मिली। सत्य और अहिंसा की शक्ती मिली। फिर भी भौतिकवाद और उपभोक्तावादी चकाचौंध मे हम फँस गये है । क्यों इतना जानने के बाद समझने के बाद हम जीवन में दिशाहीन है।क्योंकि
ख़ुद को हमने जकड़ लिया संसार की इस क्षणभंगुरता में कोई डर-भय नही है । कहने को तो बातें और भी बहुत हैं पर जितना कम कहा जाए उतना ही ठीक है। LESS SAID THE BETTER ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )