ढाईं अक्षर “प्रेम “का पंथ
प्रेम का व्यवहार
स्नेह भरा दुलार
प्रेम व्यवहार से
खुशियाँ आये द्वार
प्रेम हैं जहाँ दिलों
से पूर्ण नफ़रत
मिटती हैं ।
छोड़ दो राग द्वेष
को क्यों बनाते
हो उसे अपना
कैसे भी हिस्सा
यह जग की रीत
हैं पराये व
अपने प्रेम से
जीत जाते है ।
प्रेम मिठास हैं
जब दिलों से
मिटे यह सारी
खटास तब होगा
प्रेम आनन्द हैं ।
सुख व शान्ति हैं ।
संजीवनी बुटी हैं ।
स्वर्ग का द्वार हैं ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )