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यह दुनिया का सच है

यह दुनिया का सच है

आधा ज्ञान होना भी अच्छा नहीं होता है । जीवन व्यवहार में हम कई क्षेत्रों में देख सकते है कि किसी विषय या काम आदि की पूर्ण जानकारी नहीं हुई उस काम में हमने हाथ डाल दिया तो उसका परिणाम जो अपेक्षित होता है वह नहीं मिलता हैं । कोई भी पूर्ण नहीं होता जितना भी पा ले हम ज्ञान ।हमारा अहंकार हमारी अज्ञानता हमें उस उचित अवसर पर पूछने समझने आदि से रोक कर हमें पीछे धकेलता है जिसका नुकसान हमें सारी उम्र चुकाना पड़ता है ।हमारी समझदारी इसीमें है कि हम विनम्र होकर शालीनतापूर्वक अपने न समझ आये विषय को उसी समय दूसरी बार ,तीसरी बार बार- बार पूछ समझ आदि लें जब तक अच्छे से न समझ जाएं । क्योंकि जीवन मर्यादित है और उसका जब अंत होगा तब इस लोक की कोई भी वस्तु साथ में नही जाएगी । जब हमारे अगले भव में जाने का समय आता हैं तो हैसियत-वसीयत आदि सब बे-अर्थ हो जाती हैं। जीवन का और महत्प्रयासों से कमाए हुए धन का आनंद लेने में हमारा वक्त निकल चुका होता है। नेपोलियन क्या,? सिकंदर क्या ..?ओढ़कर मिट्टी की चादर, बेनिशान हो गये, एक ना एक दिन हम सब भी दास्तान हो जाएँगे।कहाँ पर ,क्या , कहाँ , कितना सही है ये ज़ज्बात , जिसके अंदर है कदम बढे हमेशा सद्दकार्य ओर सोचो यही ज्ञान का समंदर है । जो लक्ष्य निर्धारित कर आगे बढे आज वही सिकंदर है । सच में यह दुनिया का सच है कल भी था और आज भी यही सच है ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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