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विषय आमंत्रित रचना – अपने आप को सर्वोपरि समझना

विषय आमंत्रित रचना – अपने आप को सर्वोपरि समझना ।

यह आज की बहुत भयंकर समस्या है की मानव जन्म लेता
है वह थोड़ी सी समझ से विकसित होता है तो वह अपने आप को सर्वोपरिसमझने लग जाता है । मैं ही हूँ की सोच समूल खराब करने वाली होती हैं । सब कुछ समझ कर अपने आपको सर्वोपरि मानना बिनाअहंकार के कुछ हद तक सही हो सकता है । लेकिन मैं इसको हर स्थिति में कही भी सही नहीं देखता हूँ । अनेकान्तवाद का सिद्धांतजीवन विकास में महत्वपूर्ण है । मानव में वो शक्ति है जो हिला सकता हैं पर्वत बस ध्यान लगा के ही या वह अन्वेषण कर सकता हैं ।प्रकृति के छिपे गूढ़ रहस्य भी बिन संकल्प के जीवन होता गाजर मूली सा ही जो आए उखाड़ दे जब कभी । तक़दीर भी साथ उसीका देतीजो ठान लेता है मन में जो चाहे वही ।देख लो भिक्षु के साहस को ही ।अभिष्क्रमण किया जब थे मुट्ठी भर ही आज देखलो तेरापंथ का वटवृक्ष हराभरा और पुष्पित भी ।सपने नहीं संकल्प पुरे होते हैं कहते हैं धर्माचार्य सही । शेखचिल्ली के सपने नही होते पुरे कभी । होते पुरेमहापुरुषों के संकल्प ही ।संकल्प शक्ति है चिंतामणी । पा सकते जो चाहो दिल में हो वही । वैचारिक मतभेदों, उलझनों, झगड़ो आदिसे बचने के लिए व शांति की स्थापना के लिए भगवान् महावीर के अनेकान्तवाद का सिद्धांत बहुत महत्वपूर्ण है । अनेकान्तवाद वस्तु केविषय में उत्पन्न एकांतवादियों के विवादों को उसी प्रकार दूर करता है जिस प्रकार हाथी को लेकर उत्पन्न जन्मान्धों के विवादों को नेत्रवाला व्यक्ति दूर कर देता है।इसे संसार जितना जल्दी व अधिक अपनाएगा विश्व शांति उतनी ही जल्दी संभव है। जब एकांगीदृष्टिकोण विवाद और आग्रह से मुक्त होंगे तभी भिन्नता से समन्वय के सूत्र परिलक्षित हो सकेंगे। जीवन का संपूर्ण विकास इससे संभवहै। अनेकांत के दर्पण मे ही होते सदा सत्य के हमको दर्शन हैं । तप से निश्चित तेज निखरता हैं इसका साक्षी स्वयं सूर्य का हर कण – कण हैं । नहीं विकल्प दूसरा कोई उङने को आकाश चाहिए पर बंधन मिट जाते सारे श्रद्धामय हो अगर समर्पण। अलग-अलग दृष्टि सेदेखने पर सत्यता अलग-अलग हो सकती है।एक ही वस्तु या विचार में कई गुण होते हैं जो हमारे अलग दृष्टिकोण से किसी को कुछदिखाई देता है और दूसरे को कुछ अलग दिखाई देता है। वस्तु या विचार की वास्तविकता और सत्य भिन्न हो सकते हैं।इसमे एक हाथीका और उदाहरण लिया जा सकता है जिसे आठ अंधे छूकर अनुभव कर रहे किसी को उसकी पूंछ सांप जैसे तो किसी को सूंड अजगरजैसे किसी को गिलास भरा दिखाई देता है किसी को आधा खाली तो किसी को आधी हवा ।हम जैनी है सौभाग्यशाली है कि भगवानमहावीर का शासन मिला जिन्होंने अनेकान्तवाद का सूत्र दिया । यानी की – प्रत्येक वस्तु का भिन्न-भिन्न दृष्टि से विचार करना , परखना, देखना। उदाहरण के लिए हम एक फल को ही ले लें , उसमें रूप भी है , रस भी है , गंध भी है , स्पर्श भी है , आकार भी है , भूख मिटानेकी शक्ति है , अनेक रोगों को दूर करने की शक्ति और अनेक रोगों को पैदा करने की शक्ति भी है।प्रत्येक पदार्थ को अलग-अलग दृष्टिसे देखना , समझना और सत्यता ये अनेकान्तवाद है ।इसमें वाद विवाद को प्रश्रय नही हैं ।
प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)

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