पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच 19वीं सदी के समाज सुधारक ईश्वरचंद्र विद्यासागर की जयंती पर उनकी विरासत को लेकर जुबानी जंग छिड़ गई। विद्यासागर की जयंती पूरे पश्चिम बंगाल में मनायी गई, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता समिक भट्टाचार्य ने कहा, ‘‘यह पश्चिम बंगाल के लिए शर्म की बात है कि ऐसे में जब हम ईश्वरचंद्र विद्यासागर की जयंती मना रहे हैं, तो हम ऐसी स्थिति देख रहे हैं, जहां शिक्षकों की नौकरियां बेची जा रही हैं और स्कूल भर्ती घोटाला हुआ है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘विद्यासागर ने अपने जीवन भर के संघर्ष के माध्यम से पूर्वाग्रह मुक्त समाज के निर्माण के लिए सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ाई लड़ी।’’ टीएमसी ने पलटवार करते हुए कहा कि ‘विद्यासागर की धरती’ पर ‘गुजरात से आयातित नफरत की राजनीति’ के लिए कोई जगह नहीं है। टीएमसी सांसद सौगत रॉय ने कहा, ‘‘भाजपा नेताओं को ईश्वरचंद्र विद्यासागर द्वारा बताए गए मूल्यों और सिद्धांतों पर हमें सीख नहीं देनी चाहिए। भाजपा के कार्यकर्ता 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान कोलकाता में विद्यासागर की प्रतिमा को क्षति पहुंचाने में शामिल थे।’’
उन्होंने कहा, ‘‘उनके मन में विद्यासागर या नेताजी सुभाष चंद्र बोस के लिए कोई सम्मान नहीं है। यह सिर्फ सस्ती राजनीति है।’’ साल 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के रोडशो के दौरान उत्तरी कोलकाता के विद्यासागर कॉलेज में विद्यासागर की एक प्रतिमा को क्षति पहुंचायी गई थी। इसके लिए तृणमूल कांग्रेस और भाजपा ने एकदूसरे पर आरोप लगाया था। इस बीच, राष्ट्रवादी संगठन बांग्ला पोक्खो ने मांग की कि विद्यासागर की जयंती को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए। बांग्ला पोक्खो के एक नेता कौशिक मैती ने कहा, ‘‘हम मांग करते हैं कि विद्यासागर की जयंती को पश्चिम बंगाल में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए। हमने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी पत्र लिखकर अनुरोध किया है।
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